ऑस्ट्रेलिया में 21 मई को संसदीय चुनाव होने जा रहे हैं। यहां सरकार का कार्यकाल 3 साल है। फिलहाल, प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन हैं। वैसे तो 6 कैंडिडेट प्राइम मिनिस्टर पोस्ट की रेस में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला मॉरिसन के गठबंधन और लेबर पार्टी के नेता एंथनी अल्बानीस के बीच माना जा रहा है। ऑस्ट्रेलिया दुनिया के उन चंद देशों में शामिल है, जहां कानूनी तौर पर मतदान जरूरी है। ऐसा न करने वालों पर जुर्माना लगाया जाता है। यहां ऑस्ट्रेलिया के चुनाव से जुड़ी कुछ अहम बातें जानते हैं।
इस बार का कैसा होगा मुकाबला
ऑस्ट्रेलियाई मीडिया की रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस बार चुनावी मुकाबला काफी कड़ा है। प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन पिछले चुनाव में भी सीधी जीत हासिल नहीं कर पाए थे। उन्होंने छोटी पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। अब उनके सहयोगी ही उनकी मुखालफत कर रहे हैं। इसलिए माना ये जा रहा है कि कोई भी पार्टी सीधी जीत हासिल करके पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाएगी। सरकार बनाने के लिए छोटी पार्टियों और निर्दलियों की मदद लेनी होगी।
सरकार के अहम पदों पर पुरुष ही तैनात हैं
इस बार के चुनाव में महिलाओं के वोट काफी अहम माने जा रहे हैं। इसकी वजह से महिलाओं से भेदभाव के आरोप हैं। ऑस्ट्रेलियाई इतिहास में सिर्फ एक महिला प्रधानमंत्री हुई और वो थीं जूलिया गिलार्ड। सरकार के अहम पदों पर पुरुष ही तैनात हैं। मॉरिसन को संसद में महिला स्टाफर के यौन शोषण के मुद्दे पर देश से माफी मांगनी पड़ी थी। इस बार ज्यादातर महिलाएं उनकी सरकार के खिलाफ नजर आती हैं।
जानिए संसदीय चुनाव की ये अहम बातें
ऑस्ट्रेलिया में हमारे देश की तरह ही दो सदन हैं। ऊपरी सदन को सीनेट और निचले सदन को हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स कहा जाता है। निचले सदन में बहुमत पाने वाली पार्टी या गठबंधन का नेता ही प्रधानमंत्री बनता है। इसकी 151 सीटों के लिए 21 मई को वोटिंग होनी है।
इसके साथ ही ऊपर सदन की 50% सीटों के लिए भी वोटिंग होगी। इसका कार्यकाल 6 साल है और हर 3 साल में आधे सदस्य बदल जाते हैं। इन आधे सदस्यों के लिए भी वोटिंग होनी है। 18 साल या इससे अधिक उम्र के सभी ऑस्ट्रेलियाई नागरिक वोटिंग कर सकते हैं। प्रधानमंत्री बनने के लिए उम्र तय नहीं है। दूसरे शब्दों में कहें तो 18 साल या ज्यादा उम्र के जो लोग वोटिंग कर सकते हैं, वो चुनाव भी लड़ सकते हैं और प्रधानमंत्री भी बन सकते हैं।
कोविड दौर में इकोनॉमी रही बेहतर
कोविड के दौर में भी इकोनॉमी बेहतर रही। इस साल इसमें 4.25% की ग्रोथ की उम्मीद।
बेरोजगारी दर 4% पर ठहरी, ये 2008 के बाद से सबसे कम दर। इकोनॉमी और अनएम्प्लॉयमेंट जैसे मुद्दों पर मॉरिसन कामयाब रहे।
फ्यूल, इलेक्ट्रिसिटी और दूसरी चीजें महंगी। मॉरिसन को इस मामले पर विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
क्लाइमेट चेंज बहुत बड़ा मुद्दा। जंगलों की आग और बाढ़ को लेकर सरकार घिरती रही।
महिलाओं से भेदभाव और बराबर के मौके न मिलना भी बहुत बड़ा मुद्दा। इसको लेकर विरोध प्रदर्शन अब तक जारी।
चीन पर जोर ज्यादा
चीन ने हाल ही में सोलोमन आईलैंड्स के साथ एक सुरक्षा समझौता किया है। सोलोमन द्वीप ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्वी तट से महज 2 हजार किलोमीटर दूर है। जाहिर सी बात है कि ऑस्ट्रेलियाई लोग और सरकार चीन की हरकतों को लेकर परेशान, लेकिन सतर्क हैं। विपक्षी लेबर पार्टी का आरोप है कि मॉरिसन की फॉरेन पॉलिसी नाकाम रही और इसी वजह से चीन अब सोलोमन आईलैंड्स तक पहुंच गया है।
इसका जवाब मॉरिसन यह देते हैं कि चीन से निपटने के लिए उन्होंने क्वॉड का रास्ता चुना। इसमें भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया हैं। हाल के दिनों में ऑस्ट्रेलिया भारत के काफी करीब आया है।
जानिए कब आएंगे रिजल्ट
ऑस्ट्रेलिया में शनिवार को वोटिंग होगी। वोटिंग खत्म होने के कुछ घंटे बाद ही काउंटिंग शुरू हो जाएगी। भारत में नतीजे रविवार सुबह तक ही सामने आ सकेंगे। अगर किसी एक पार्टी को बहुमत मिल गया तो कोई दिक्कत नहीं, लेकिन मामला फंसा, यानी किसी एक दल को बहुमत नहीं मिला तो तस्वीर साफ होने में कुछ दिन लग सकते हैं। 2010 में जब जूलिया गिलार्ड PM बनीं तो सरकार के गठन में 15 दिन लग गए थे।