PM मोदी एग्रीकल्चरल सब्सिडी का अमेरिका ने किया विरोध, जानिए क्यों

वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन यानी WTO की बैठक जेनेवा में हुई। इस सम्मेलन में अमेरिका और यूरोपीय देशों ने भारतीय किसानों को दी जाने वाली एग्रीकल्चरल सब्सिडी का विरोध किया। PM नरेंद्र मोदी किसानों को सालाना जो 6 हजार रुपए देते हैं, यह भी एग्रीकल्चरल सब्सिडी में शामिल है। ऐसे में इसे रोकने के लिए अमेरिका और यूरोप ने पूरी ताकत झोंक दी है। भारत ने भी इस मुद्दे पर ताकतवर देशों के आगे झुकने से इनकार कर दिया है।

WTO में इन मुद्दों पर छिड़ी बहस

12 जून से 15 जून 2022 तक जेनेवा में WTO की बैठक हुई। 164 सदस्य देशों वाले WTO के G-33 ग्रुप के 47 देशों के मंत्रियों ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया। भारत की ओर से केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल शामिल हुए। इस साल होने वाली WTO की बैठक में इन 3 अहम मुद्दों पर प्रस्ताव लाने की तैयारी की गई।

  1. कृषि सब्सिडी को खत्म करने के लिए।
  2. मछली पकड़ने पर अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने के लिए।
  3. कोविड वैक्सीन पेटेंट पर नए नियम लाने के लिए।

अमेरिका, यूरोप और दूसरे ताकतवर देश इन तीनों ही मुद्दों पर लाए जाने वाले प्रस्ताव के समर्थन में थे, जबकि भारत ने इन तीनों ही प्रस्ताव पर ताकतवर देशों का जमकर विरोध किया। भारत ने ताकतवर देशों के दबाव के बावजूद एग्रीकल्चरल सब्सिडी को खत्म करने से इनकार कर दिया है। अब इस मामले में भारत को WTO के 80 देशों का साथ मिला है।

अमेरिका के अनाज की बिक्री घटी, इसलिए भारत का विरोध
एग्रीकल्चरल सब्सिडी: अमेरिका और यूरोप चाहते हैं कि भारत अपने यहां किसानों को दी जाने वाली हर तरह की एग्रीकल्चरल सब्सिडी को खत्म करे।

इसमें ये सारे एग्रीकल्चरल सब्सिडी में शामिल हैं

PM किसान सम्मान निधि के तहत दिए जाने वाले सालाना 6 हजार रुपए
यूरिया, खाद और बिजली पर दी जाने वाली सब्सिडी
अनाज पर MSP के रूप में दी जाने वाली सब्सिडी
अमेरिका जैसे ताकतवर देशों का मानना है कि सब्सिडी की वजह से भारतीय किसान चावल और गेहूं का भरपूर उत्पादन करते हैं। इसकी वजह से भारत का अनाज दुनिया भर के बाजार में कम कीमत में मिल जाता है।

अमेरिका और यूरोपीय देशों के अनाज की कीमत ज्यादा होने की वजह से विकासशील देशों में इसकी बिक्री कम होती है। यही वजह है कि दुनिया के अनाज बाजार में दबदबा कायम करने के लिए ताकतवर देश भारत को एग्रीकल्चरल सब्सिडी देने से रोकना चाहते हैं। भारत इसे मानने के लिए तैयार नहीं है।

मछली पालन

ताकतवर देशों का मानना है कि भारत जैसे विकासशील देश सरकारी मदद के दम पर ज्यादा मछली उत्पादन करते हैं। इससे ग्लोबल मार्केट में दूसरे देशों को कॉम्पिटिशन का सामना करना पड़ता है। यही वजह है कि अमेरिका जैसे देश मछुआरों को सब्सिडी दिए जाने से रोकना चाहते हैं। साथ ही मछली पकड़ने पर अंतरराष्ट्रीय कानून भी बनाना चाहते हैं।

भारत ने इसका कड़ा विरोध दर्ज कराया है। इसके पीछे भारत का तर्क यह है कि ऐसा हुआ तो भारत के 10 राज्यों के 40 लाख मछुआरों की रोजी-रोटी पर संकट खड़ा हो जाएगा।सबसे ज्यादा सब्सिडी पाने वाले पंजाब के किसान सबसे ज्यादा संपन्न भारत के किसानों को सरकारी मदद या सब्सिडी की कितनी जरूरत है, इसे पंजाब के उदाहरण से समझ सकते हैं।

सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक एक औसत भारतीय किसान परिवार की सालाना आय 77,124 रुपए है। जबकि पंजाब के किसान परिवार की औसत सालाना आय 2,16,708 रुपए है। पंजाब के किसानों की मजबूत आर्थिक स्थिति इस बात का प्रतीक है कि सरकारी मदद कितनी मददगार हो सकती है।

यही वजह है कि भारत सरकार देश के किसानों को बीज से लेकर पानी और बिजली तक पर सब्सिडी देती है। खेती में बढ़ती लागत को देखते हुए किसानों की आय बढ़ाने के लिए मिनिमम सपोर्ट प्राइस यानी MSP और बिजली, उर्वरक पर मिलने वाली सब्सिडी ही एक तरीका नजर आता है।

WTO में भले ही अमेरिका और दूसरे ताकतवर देश विकासशील देशों के किसानों को सब्सिडी देने से मना करते हों, लेकिन खुद अमेरिका अपने देश के समृद्ध किसानों को सब्सिडी देने में दूसरे देशों से कहीं आगे है। वो भी तब, जब अमेरिकी किसानों की सालाना आय भारतीय किसानों से 52 गुना ज्यादा है।

WTO में भारत को चीन का साथ मिला

भले ही सीमा विवाद को लेकर LAC पर भारत और चीन की सेना आमने-सामने हों, लेकिन WTO में सब्सिडी के खिलाफ पेश प्रस्ताव के मामले में भारत और चीन दोनों साथ आ गए हैं। इस मामले में भारत को WTO के 80 सदस्य देशों का साथ मिल रहा है।

यह पहली बार नहीं है, जब WTO के नियमों के खिलाफ एशिया के दो बड़े देश चीन और भारत साथ आए हैं। इससे पहले 17 जुलाई 2017 को भी दोनों देशों ने मिलकर किसानों के सब्सिडी मामले में पश्चिमी देशों का विरोध किया था। दरअसल, चीन भी अपने किसानों को सालाना 17 लाख रुपए से ज्यादा की सरकारी मदद, यानी सब्सिडी देता है।

भारत को दी मुकदमा की धमकी

जेनेवा में शुरू होने वाले WTO की बैठक से पहले 28 अमेरिकी सांसदों ने राष्ट्रपति जो बाइडन को पत्र लिखकर भारत के खिलाफ WTO में मुकदमा करने की मांग की थी। इन सांसदों ने भारत सरकार पर किसानों को तय नियम से ज्यादा सब्सिडी देने का आरोप लगाया था।

अमेरिकी सांसदों ने अपने पत्र में लिखा था कि भारत सरकार WTO के तय नियम के मुताबिक अनाजों को उत्पादन मूल्य पर 10% से ज्यादा सब्सिडी दे रही है। इससे वैश्विक बाजार में कम कीमत पर भारत का अनाज आसानी से उप्लब्ध हो जा रहा है। ये अमेरिकी किसानों के हित में नहीं है।

यही वजह है कि अमेरिकी सांसदों ने भारत के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग राष्ट्रपति जो बाइडन से की है।

अब आखिरी में जानते हैं कि WTO में कोविड वैक्सीन पेटेंट पर चर्चा क्यों?
WTO के G-33 बैठक में कोविड वैक्सीन के पेटेंट को लेकर भी बैठक हुई है। दरअसल, अमेरिका और कई यूरोपीय देशों का मानना है कि कोविड वैक्सीन का पेटेंट होना चाहिए। इसका मतलब यह हुआ कि जो कंपनी वैक्सीन बनाएगी, उसे बनाने और बेचने का अधिकार सिर्फ उसी के पास हो। दूसरी ओर, भारत जैसे विकासशील देशों का मानना है कि महामारी के दौर में वैक्सीन चाहे जो कंपनी भी बनाए, लेकिन उस तकनीक को हर देश के साथ साझा किया जाना चाहिए। इससे महामारी को रोकने में मदद मिलेगी।

COVID-19 के खिलाफ दुनिया की 70% आबादी को पूरी तरह से टीका लगाने के लिए लगभग 1100 करोड़ वैक्सीन खुराक की आवश्यकता है। रिपोर्ट के मुताबिक अब भी 40% दुनिया की जनसंख्या को वैक्सीन की पहली डोज नहीं लगी है। ऐसे में भारत कोविड वैक्सीन पेटेंट का विरोध कर रहा है।

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