केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग की परीक्षा में हुई धांधली को लेकर एक प्राथमिक जांच की कार्यवाही आरंभ की है वर्ष 2010 के दौरान अपर निजी सचिव पद के लिए आयोजित परीक्षा के दौरान यह धांधली हुई थी और इस बाबत राज्य सरकार ने पिछले सितंबर में सीबीआई जांच की अनुशंसा की थी। मामले में आरोप है कि आयोग के कुछ अधिकारियों ने कुछ उम्मीदवारों की मदद की, जिसके चलते काबिल उम्मीदवार नियुक्ति से वंचित रह गए। उल्लेखनीय है कि इस दौरान राज्य में मायावती की सरकार थी। हालांकि मायावती के खिलाफ सीबीआई स्मारक घोटाले की भी जांच कर रही है। इस बाबत उच्चतम न्यायालय ने मायावती को इस परियोजना में खर्च की गई राशि को वापस करने की टिप्पणी की थी।
आरोप के मुताबिक
इन भर्तियों में न्यूनतम योग्यता न होने के बावजूद 250 लोगों को भर्ती कर लिया गया. भर्ती किए गए ज्यादातर लोग अफसरों के करीबी रिश्तेदार थे. नई दिल्ली स्थित सीबीआई मुख्यालय ने गुरुवार को इस मामले की प्रारंभिक जांच (पीई) दर्ज कर ली. असल में, समाजवादी पार्टी (सपा) सरकार में यूपीपीएससी द्वारा की गई भर्तियों की जांच कर रही सीबीआई को इन भर्तियों में भी बड़े पैमाने पर गड़बडि़यां की शिकायत मिली थी. इसके बाद सीबीआई ने राज्य के मुख्य सचिव को पत्र लिख इस मामले की जांच की अनुमित के लिए अनुरोध किया था. राज्य सरकार ने छह महीने पहले ही इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय से की थी.
यूपी में मायावती की सरकार में 2010 में अपर निजी सचिव की भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई थी. वहीं अखिलेश सरकार में तीन चरणों में इसकी परीक्षा कराई गई. रिजल्ट 3 अक्टूबर 2017 को जारी हुआ और कई लोगों को ज्वॉइन भी कराया गया. इस बीच, सपा सरकार के पांच सालों के दौरान उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) की भर्तियों की जांच सीबीआई से कराने की योगी सरकार ने सिफारिश कर दी और सीबीआई ने केस दर्ज कर लिया. जांच के दौरान सीबीआई को शिकायत मिली कि बसपा सरकार में शुरू हुई अपर निजी सचिव की भर्ती प्रक्रिया में भी गड़बड़ी की गई थी.