कभी शिवसेना सुप्रीमो बाला साहब ठाकरे के बेहद करीब रहे और उनके निवास मातोश्री के वफादारों में से एक संपा सिंह थापा ने भी सोमवार को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का साथ छोड़ दिया। ठाणे में नवरात्रि के मौके पर हुए एक सार्वजनिक कार्यक्रम में संपा सिंह ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का दामन थाम लिया। थापा के लिए कहा जाता है कि उन्होंने बाला साहब की परछाई बनकर 30 सालों तक मातोश्री में काम किया। बाला साहब सिर्फ संपा के हाथों से खाना और पानी लिया करते थे।
बाला साहब के निधन के बाद से उनकी और उद्धव परिवार के बीच दूरिया बढ़ने लगी थीं और मातोश्री जाने वाले शिवसेना नेताओं का कहना है कि उन्होंने संपा सिंह को पिछले कई सालों से उद्धव ठाकरे के आसपास नहीं देखा था। शिंदे गुट का दामन थामने के बाद संपा सिंह ने कहा, ‘मेरी विचारधारा एकनाथ शिंदे की विचारधारा से मिलती है, इसलिए मैंने उनका दामन थामा है।’
मीनाताई के निधन के बाद बाला साहब के करीब हुए थापा
कहा जाता है कि बालासाहेब ठाकरे की पत्नी मीनाताई ठाकरे की मृत्यु के बाद नेपाल के रहने वाले थापा बालासाहेब ठाकरे की छाया बन गए थे। बाला साहब जब कभी बाहर जाते थे तो संपा सिंह भी उनके साथ जाया करते थे। बाला साहब के निधन के बाद लोगों ने उन्हें उनकी अंतिम यात्रा के दौरान साल 2012 में शिवाजी पार्क में बिलखते हुए देखा था।
मैं एकनाथ शिंदे के साथ उनकी परछाई बनकर रहूंगा
संपा सिंह ने सोमवार को कहा, ‘बाला साहब के जाने के बाद बीच-बीच में उद्धव ठाकरे से मिलता रहा, लेकिन मेरे मन ने कहा कि मुझे एकनाथ शिंदे के साथ रहना चाहिए। इसलिए नवरात्रि के दिन यहां आया और शिंदे साहब के साथ जुड़ गया। मैं बाला साहेब ठाकरे के साथ परछाई की तरह रहा और आगे शिंदे साहब के साथ परछाई की तरह रहूंगा।’
संपा ने ठाणे में बतौर चौकीदार काम किया
संपा सिंह थापा करीब 40 साल पहले भारत-नेपाल बॉर्डर पर स्थित चिमौली गांव से मुंबई में काम के लिए नेपाल से आए थे। मुंबई से सटे ठाणे में एक बंगाली व्यवसायी पी के घोष की रॉयल सिक्योरिटी एजेंसी में बतौर चौकीदार संपा सिंह ने काम किया। वे घोष के बंगले पर बतौर चौकीदार कई साल तक रहे।
बाला साहब ठाकरे से पहली मुलाकात
गोरेगांव में छोटे-मोटे काम करते हुए वे भांडुप के नगरसेवक के.टी. थापा के साथ 1980 में पहली बार बाला साहब ठाकरे से मिले थे। उनके शांत स्वभाव और के.टी थापा द्वारा उनके खाने की तारीफ को सुनकर एक दिन बाला साहब ठाकरे ने उन्हें मातोश्री के लिए खाना बनाने को कहा।
20 साल की उम्र में बाला साहब के लिए पहली बार बनाया खाना
थापा ने बाला साहब के लिए जब पहली बार खाना बनाया तब उनकी उम्र 20 साल थी। उनका खाना बाल ठाकरे को इतना पसंद आया कि उन्होंने थापा को अपने साथ रहने के लिए कहा, जिसे संपा सिंह ने झट से स्वीकार कर लिया। इसके बाद 1985 से वे बाला साहब के साथ रह रहे थे।
बाला साहब के डेली रूटीन और दवाओं का भी रखते थे ख्याल
मीनाताई ठाकरे की असामयिक मृत्यु के बाद, थापा ने बाला साहब की दवाओं से लेकर उनके रूटीन का जिम्मा भी संभाला था। संपा सिह बताते हैं कि बाला साहब उन्हें मातोश्री यानी अपने परिवार का एक सदस्य मानते थे। उनके जिंदा रहते हुए उन्हें कभी भी किसी चीज की कमी नहीं हुई थी। मातोश्री में बाला साहब ठाकरे के कमरे के ठीक बगल में संपा सिंह का एक छोटा सा कमरा था। बाला साहब के आखिरी वक्त में भी संपा सिंह उनके बेहद करीब थे।
बाला साहब के जिंदा रहते कभी नहीं ली लंबी छुट्टी
बाल ठाकरे के जीवित रहने तक थापा ने कभी कोई लंबी छुट्टी नहीं ली, क्योंकि वह कभी भी ठाकरे को छोड़ना नहीं चाहते थे। थापा को नेपाल में अपने दूर के गांव तक पहुंचने में तीन से चार दिन लगते हैं। उन्होंने अपने बेटे की शादी के समय सात दिनों की सबसे लंबी छुट्टी ली थी। उन्होंने कुछ घंटों के लिए शादी में शिरकत की और रस्में पूरी करने के बाद तुरंत बाद मुंबई लौट आए थे। वह अपने परिवार को चिमोली में रखते हैं।
शिवसेना को नेपाल में स्थापित करने का काम किया
यह भी कहा जाता है कि शिवसेना को नेपाल में स्थापित करने में संपा सिंह का बड़ा हाथ रहा है। उन्होंने वहां युवाओं का एक बड़ा बेस बनाया था। हालांकि, बाला साहब के निधन के बाद शिवसेना वहां भी काफी कमजोर हुई है। मुंबई में भी नेपाल के रहने वाले लोगों की बहुलता है और यह माना जा रहा है कि संपा सिंह को पार्टी में शामिल कर आगामी BMC चुनावों में शिंदे गुट एक बड़ा वोट बैंक अपनी ओर करने मे कामयाब हुआ है।
संपा सिंह के बहाने भावनात्मक संदेश देना चाहते हैं शिंदे
बता दें कि शिंदे और उद्धव गुट के बीच दशहरा रैली को लेकर खींचतान जारी है। ऐसे में मातोश्री के विश्वासपात्र को अपनी ओर खींच एकनाथ शिंदे ने शिवसैनिकों के बीच एक बड़ा मैसेज देने का प्रयास किया है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि संपा सिंह को अपने साथ शामिल कर CM एकनाथ शिंदे यह साबित करना चाहते हैं कि बाला साहब के बाद उद्धव ने उनके विश्वासपात्र लोगों को साइडलाइन करने का काम शुरू कर दिया था। वे यह बताता चाहते हैं कि सिर्फ विधायक ही नहीं; सांसद, पार्षद और उनके करीबी विश्वासपात्र भी उद्धव को छोड़ रहे रहे हैं।