इस तरीके से मांग में सिन्दूर लगाना महिलाओ को पड़ सकता है भारी, जानिए सही तरीका

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हिन्दू धर्म पूरी तरह से संस्कृति और परम्पराओं के ऊपर निर्भर है. हिन्दू धर्म में कई ऐसी प्राचीन परम्पराएँ हैं जो सदियों से चली आ रही हैं और जिनका पालन लोग आज भी करते हैं. कहा जाता है कि इन्ही प्राचीन परम्पराओं की वजह से भारत पूरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाये हुए हैं. हिन्दू धर्म की कुछ प्राचीन का वैज्ञानिक महत्व भी है. हालाँकि बहुत कम लोग ही हैं जो इसके वैज्ञानिक महत्वों के बारे में जानते हैं. ज्यादातर लोग इसे एक रुढ़िवादी परम्परा के तौर पर देखते हैं.

बाटते चले सनातन परंपरा के तहत की जाने वाली अमूमन सभी पूजा में कुमकुम का प्रयोग अवश्य किया जाता है। सिर्फ पूजा ही नहीं बल्कि अन्य मांगलिक कार्यों में इसका प्रयोग होता है। शक्ति की साधना में तो कुमकुम का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता हैं। पूजा की थाली में विशेष रूप से रखा जाने वाला कुमकुम न सिर्फ धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक महत्व है।

कुमकुम का वैज्ञानिक महत्व 
पूजा में प्रयोग लाए जाने वाले कुमकुम एक प्रकार की औषधि भी है। जिसका प्रयोग आयुर्वेद में त्वचा संबंधी विकारों को दूर करने के लिए किया जाता है। माथे पर लगाए जाने वाले कुमकुम के प्रयोग से न सिर्फ सौंदर्य बढ़ता है बल्कि इससे मन की एकाग्रता भी बढ़ती है।

सोलह श्रृंगार से जुड़ा है कुमकुम
स्त्रियों के सोलह श्रृंगार का संबंध सिर्फ उनकी सुंदरता से नहीं बल्कि घर की सुख और समृद्धि से भी जुड़ा हुआ है। सौभाग्य को बढ़ाने वाले इन सोलह श्रृंगार में कुमकुम का विशेष महत्व है। सुहागिन स्त्रियों द्वारा कुमकुम या सिंदूर से अपने ललाट पर लाल बिंदी लगाना अत्यंत शुभ माना गया है।

शुभता और सौभाग्य से संबंध
किसी भी पूजा में कुमकुम का विशेष महत्व होता है। शक्ति की साधना में कुमकुम अनंत कांति प्रदान करने वाला पवित्र पदार्थ माना गया है, जो स्त्रियों की सभी कामनाओं को पूरा करने वाला हे। कुमकुम का लाल रंग शुभता, उत्साह, उमंग और साहस का प्रतीक है। माथे पर इसे लगाने से चित्त में प्रसन्नता आती है। रविवार के दिन तांबे के लोटे में कुमकुम और अक्षत डालकर प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य को अघ्र्य देने से आत्मविश्वास और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

शिव पूजन में नहीं होता प्रयोग
भले ही कुमकुम को शुभता और सौभाग्य का प्रतीक माना गया हो लेकिन ध्यान रहे कि शिव की पूजा में कुमकुम का निषेध है।

इस तरीके से मांग में सिन्दूर लगाना महिलाओ को पड़ सकता है भारी

दरअसल शास्त्रों में सिंदूर लगाने के महत्व के साथ उसे लगाने की सही विधि भी बताई गई है जिसके अनुसार अगर कोई विवाहिता स्त्री अपने मांग के बीचो-बीच में सिंदूर लगाता ही तो फिर उसके पति की कभी अकाल मृत्यु नहीं हो सकती है। साथ ही इस तरह से सिंदूर लगाने से पति की संसारिक संकट और भय से रक्षा होती है।

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार जो विवाहित महिला सिंदूर को बालों के निचे छिपा कर लगाती है, तो उसके पति की समाजिक पहचान भी छिप जाती है.. समाज और रिश्ते-नातों के लोग उसे दरकिनार कर देते हैं। ऐसे में जरूरी है कि सिंदूर मांग के बीचो बिच ऐसे लगाना चाहिए कि वो सभी को आसानी से दिख सकें। इससे पति के सम्मान में वृद्धी होती है।

वहीं कुछ महिलाएं अपने बीच मांग में सिंदूर लगाने की बजाय सिर के एक किनारे की तरफ सिंदूर लगाती है, जबकि प्राचीन मान्यता के अनुसार जो स्त्री इस तरह से सिंदूर लगाती है उसका पति भी उससे किनारा कर लेता है। ऐसे में पति-पत्नी में दूरियां आती है और उनके आपसी रिश्तों में मतभेद की स्थिति बनी रहती है।

इसके साथ ही ये मान्यता तो काफी प्रचलित हैं अगर महिला अपनी मांग के बीच में लम्बा सा सिंदूर लगाती है तो उसके पति की आयु भी उस सिंदूर की रेखा जैसे लंबी होती है।असल में इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी जुड़ी है वो ये कि सुग्रीव ने प्रभु श्रीराम के सहयोग बालि के वध की योजना बनाई और इस योजना के अनुसार सुग्रीव को बालि से युद्ध करना था और उसी दौरान श्रीराम को बालि का वध करना था.. ऐस में जब पहली बार सुग्रीव और बालि के बीच युद्ध हुआ तो सुग्रीव ने बालि से उस लड़ाई में काफी मार खाई .. ऐसे में जैसे तैसे सुग्रीव अपनी जान बचाते हुए प्रभु श्रीराम के पास पहुंचा और ये पुछा कि आपने बालि को क्यों नहीं मारा।

ऐसा माना जाता है सुग्रीव के इस सवाल के जबाव में प्रभु श्रीराम ने कहा कि आपकी और बालि की चेहरा एक जैसा है, ऐसे मैं भ्रमित हो गया और वार नहीं कर लेकिन वास्तव यह पूरी सच्चाई नहीं है क्योंकि प्रभु राम किसी को पहचान ना पाएं, ऐसा हो ही नहीं सकता.. उनकी दिव्य दृष्टि से कोई नहीं छिप सकता। असल में वास्तविकता ये थी कि जब श्रीराम बालि को मारने ही वाले थे तो तभी उनकी नजर थोड़ी दूर खड़ी बालि की पत्नी तारा की मांग पर पड़ गई, जो कि उस समय सिंदूर से पूरी भरी हुई थी। ऐसे में उन्होंने तारा के मांग के भरे उस सिंदूर का सम्मान करते हुए उस वक्त बालि को नहीं मारा।

लेकिन इसेक बाद जब अगली बार सुग्रीव और बालि का युद्ध हुआ तो उस वक्त उन्होने पाया कि बालि की पत्नी तारा स्नान कर रही है, ऐसे में उसके माथे में सिंदूर नहीं था तो प्रभु श्री राम ने मौका पाते ही बालि का वध कर दिया। ऐसे में इसी कहानी के आधार पर ये मान्यता प्रचलित हुई कि जो विवाहित स्त्री अपनी मांग में स्पष्ट और लम्बा सिंदूर भरती है, उसके पति की आयु भी बहुत लंबी होती है।

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