सीतापुर। जिले में भगवान शिव की मस्ती में झूमते हुए कांवरियों की मनमोहक कावड़ यात्रा का नजारा रविवार से दिखना शुरू हो जाएगा। इस बार सावन का पहला सोमवार 10 जुलाई को पड़ रहा है। वहीं अगर संयोग की बात करें तो इस बार करीब 13 वर्षों के बाद दो सावन का संयोग बन रहा है। जिसके चलते इस बार 59 दिनों के सावन मास में 8 सोमवार का योग बन रहा है। हर वर्ष की तरह इस बार भी इस रविवार सुबह से लेकर सोमवार देर शाम तक शिव भक्ति की धुन पर नाचते गाते अपने आराध्य का जलार्चन करने जाते कांवरियों की कावड़ यात्रा आकर्षण का प्रमुख केंद्र रहेगी। न केवल जिले बल्कि प्रदेश और देश में नैमिषारण्य तीर्थ भगवान शिव की परम प्रिय भूमि के रूप में जाना जाता है। इस भूमि पर भगवान शिव के कई पौराणिक शिवलिंग है जिनका दर्शन पूजन करने पूरे सावन मास देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु गण आते हैं। आज हम भगवान शिव की भक्ति के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध कावड़ यात्रा से जुड़ी प्रथा, नियम, विविधताओं, विशेषताओं को आपसे साझा करेंगे।
पांच प्रकार से होती है कावड़ यात्रा
कावड़ यात्रा में सबसे प्रचलित ‘बोल बम कावड़ यात्रा’ होती है। इसमें बिना जूते चप्पल पहने लोग यात्रा करते हैं। कांवड़ जमीन में न छुए इसके लिए स्टैंड रखते हैं। थकने पर थोड़ा आराम कर सकते हैं। दोबारा चलने से पहले कावड़ के सामने उठक-बैठक करते हैं। इसके बाद दूसरा प्रचलित रूप ‘खड़ी कावड़ यात्रा’ है। इस प्रारूप में कांवरिया के साथ एक सहयोगी चलता है पहले कांवरिये के थकने पर सहयोगी कांवड़ को अपने कंधे पर रख लेता है। इस कड़ी में तीसरी कड़ी ‘झूला कावड़ यात्रा’ है। इस प्रारूप में झूले के आकार की कावड़ बनाई जाती हैं।
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गंगा जल से भरे पात्र दोनो तरफ बराबरी से लटके होते हैं। आराम करते वक्त ‘कांवड़’ को किसी ऊंचे स्थान पर टांग दिया जाता है। इसके बाद इस यात्रा का अगला रूप ‘डाक कावड़ यात्रा’ का है इसमें कांवरिये यात्रा शुरू करने के 24 घंटे के अंदर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। इस यात्रा में कांवरिये कहीं नही रुकते है। मंदिरों में इनके जलाभिषेक के लिए विशेष रास्ते बनाये जाते हैं। सबसे कठिन प्रारूप ‘दंडवत कावड़ यात्रा’ होता है। इसमें भक्त नदी तट से शिवधाम तक दण्डवत करते हुए यात्रा पूरी करते है इस यात्रा में 15 से 30 दिन का समय लगता है।
इन्होंने की थी कावड़ यात्रा की शुरुवात
विष्णु पुराण और लिंग पुराण के अनुसार भगवान परशुराम ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर गंगा जी से जल लेकर बागपत स्थित पुरा महादेव में शिवलिंग पर जल अर्पित किया था। इसके बाद अपनी मातृ-पितृ भक्ति के लिए प्रसिद्ध श्रवण कुमार अपने माता-पिता को गंगा स्नान कराने हिमाचल प्रदेश स्थित ऊना से हरिद्वार तक लाये थे। वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने सुल्तानगंज स्थित अजगैबीनाथ से गंगा जल लेकर देवघर में शिवजी का जलाभिषेक किया था। वहीं भगवान शिव ने जब समुद्र मंथन से निकला हलाहल अपने कंठ में धारण किया था तो शिवभक्त रावण में भगवान शिव की भक्ति का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करते हुए घोर तप किया फिर हरिद्वार से गंगा जल ले जाकर बागपत स्थित पुरा महादेव का जलाभिषेक किया।