लखीमपुर : सावन भर दूर-दूर से “मेंढक मंदिर”आते हैं श्रद्धालु

लखीमपुर। लखीमपुर-खीरी में काफी सारे शिव मंदिर है। भगवान शिव हमेशा सर्पों से घिरे रहने वाले शिव जी की रक्षा मे कभी मेंढक की ज़रुरत पड़ सकती है, ये सोचकर हैरानी होती है। बात ये भी है कि भगवान् की रक्षा करने की किसे आवश्यकता है, लेकिन ये अनोखा विषय है, जिसे जानकर आपको हैरानी होगी कि शिव जी का एक मंदिर ऐसा भी है, जिसकी रक्षा बरसाती मेंढक करता है। एक अद्भुत अनोखे ‘मांडूक तंत्र’ पर आधारित यह अद्वितीय शिव मंदिर मेंढक मंदिर भारत मे उत्तरप्रदेश के लखीमपुर-खीरी जिले के ओयल कस्बें में स्थित है।

जानकार बताते हैं कि यह मंदिर करीब 200 वर्ष पुराना मंदिर है। कहा जाता है की इस मंदिर का निर्माण बाढ़ और सूखे व सभी प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए करवाया गया था। यहां शिव जी मेंढक की पीठ पर विराजमान हैं। इस मंदिर की खास बात है कि यहां एक नर्मदेश्वर महादेव का शिवलिंग है जो रंग बदलता है और यहां खड़ी एक नंदी की मूर्ति है जो आपको और कहीं देखने को नहीं मिलेगी। मेंढक का मंदिर भारत के एकमात्र मंदिरों मे से है। कहा जाता है की मेंढ़क के इस प्राचीन मंदिर मे आने वाले हर श्रृद्धालु की मनोकामना पूरी होती है।

मांडूक तंत्र पर आधारित है लखीमपुर खीरी का ओयल स्थित मेंढक मंदिर

लखीमपुर खीरी के ओयल कस्बे में इस जीव की पूजा की जाती है। मंदिर में शिवजी मेंढक की पीठ पर विराजमान हैं। इतिहासकारों का मानना है कि मंदिर राजस्थानी स्थापत्य कला पर बना है और तांत्रिक मण्डूक तंत्र पर बना है। मंदिर के बाहरी दीवारों पर शव साधना करती उत्कीर्ण मूर्तियां इसे तांत्रिक मंदिर ही बताती हैं। चाहमान वंश के राजा बख्श सिंह ने इस अद्भुत मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर की वास्तु परिकल्पना कपिला के एक महान तांत्रिक ने की थी। बताया जाता है कि पूर्व में स्थापित मंदिर का छत्र भी सूर्य की रोशनी के साथ घूमता था। पर, अब वो क्षतिग्रस्त पड़ा है। मेंढक मंदिर की एक खास बात इसका कुआं भी है। जमीन तल से ऊपर बने इस कुएं में जो पानी रहता है वो जमीन तल पर ही मिलता है। इसके अलावा खड़ी नंदी की मूर्ति मंदिर की विशेषता है।

मंदिर का शिवलिंग भी बेहद खूबसूरत है और संगमरमर के कसीदेकारी से बनी ऊंची शिला पर विराजमान है। नर्मदा नदी से लाया गया शिवलिंग भी भगवान नर्मदेश्वर के नाम से विख्यात हैं। बेहद खूबसूरत और अदभुत मेंढक मंदिर को यूपी की पर्यटन विभाग ने भी चिह्नित कर रखा है। दुधवा टाइगर रिजर्व कॉरीडोर में इस मंदिर को भी विश्व मानचित्र पर लाने के प्रयास जारी हैं। सावन माह मे जब लाखों कावड़िया फर्रुखाबाद, हरिद्वार से गंगाजल लेकर लखीमपुर खीरी के छोटी काशी गोला गोकर्णनाथ शिव मंदिर में जल चढ़ाने आते हैं तो तमाम श्रद्धालु और दूर-दूर से पर्यटक ओयल स्थित मेंढक मंदिर भी जरूर आते हैं। इसलिए यह मंदिर दूर-दूर तक अपनी प्रसिद्धि पा चुका है।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें