
बीजिंग (ईएमएस)। जानवरों को खाने के तौर पर देखने वाले चीन में सांप, तिलचट्टे, चमगादड़ जैसे जीवों को टॉर्चर करने के बाद भालुओं को भी टॉर्चर करने का दौर चल पड़ा है। जैसे लोग गाय-भैंसों और मुर्गियों को पालते हैं, वैसे यहां भालुओं को पाला जाता है और उनके साथ जो होता है, उसकी कल्पना करके भी आपका दिल सिहर उठेगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन हुइयान प्रांत में भालुओं की खेती का चलन खूब है क्योंकि इनके पित्त का इस्तेमाल चीन की पारंपरिक दवाओं को बनाने में किया जाता है।
चीन में स्थित मार्केट रिसर्च फर्म क्यूवाई रिसर्च की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि चीन में भालू के पित्त पाउडर का बाज़ार पूरी दुनिया का 97 फीसदी है। साल 2021 में चीन ने 44.8 टन भालू पित्त पाउडर बेचा था, जबकि 2022 में उनका व्यापार 62 मिलियन डॉलर का था। हां, ये जानना ज़रूरी है कि आखिर भालू के पित्त में ऐसा क्या है, जो उसे इतने टॉर्चर को सहना पड़ता है। आपको बता दें कि इस जानवर के पित्त में यूर्सोडेक्सीकोलिक एसिड पाया जाता है, जो पथरी गलाने से लेकर लिवर, सांस, निमोनिया और ब्रोंकाइटिस के इलाज में काम आता है। चीन और वियतनाम में इससे पारंपरिक दवाई बनाई जाती है। इसके लिए भालुओं को 10 से 20 साल तक पाला जाता है और रेगुलर उनके पित्त को गॉल ब्लेडर में छेद बनाकर बाहर निकाला जाता है। ये प्रक्रिया बेहद दर्दनाक होती है।
बता दें कि जानवरों पर अत्याचार की बात आते ही सबसे पहले ज़ेहन में चीन का ही नाम आता है। आपने यहां के मीट फेस्टिवल के बारे में सुना होगा, जहां जानवरों को बेदर्दी से मारकर लोग खा लेते हैं। इसके अलावा यहां कई दुर्लभ जानवरों को भी लोग स्वास्थ्य के नाम पर मारकर मांस बेच देते हैं। चूंकि यहां एनिमल प्रोटीन खाने का बड़ा चलन है, ऐसे में इनकी नज़र में अब जानवर शायद सजीव भी नहीं रह गए हैं।















