देहरादून (ईएमएस)। बीते दिनों चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के लिए देहरादून के टपकेश्वर महादेव मंदिर में माता वैष्णो देवी गुफा में विशेष पूजा की गई, जो 23 अगस्त को चंद्रयान की सफल लैंडिंग तक जारी रही। जम्मू की मां वैष्णो देवी से नाम की समानता के कारण बड़ी संख्या में लोगों ने पूजा से जुड़े वीडियो को जमकर शेयर किया।
इस तरह से शारदीय नवरात्र से पूर्व सोशल मीडिया पर वैष्णो देवी ट्रेंड करने लगा है। जो भक्त माता वैष्णो देवी के मंदिर नहीं जा पाते वे भक्त यहां माता वैष्णो देवी के दर्शन करते हैं।
टपकेश्वर शिव मंदिर एक प्राकृतिक गुफा है जो टोंस नदी के पास स्थित है। हजारों साल पुराना यह मंदिर प्राकृतिक रूप से बना हुआ है, इस मंदिर में भक्त प्राकृतिक रूप से बनी एक गुफा से होकर गुजरते हैं। इसके बाद भक्त माता के दर्शन करते हैं। गुफा में भक्तों को सिर झुकाना पड़ता है और इस माता वैष्णो देवी गुफा मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां आकर आपको पता चलेगा कि प्रकृति ने इस धरती पर क्या कुछ खजाना छिपा रखा है। इसलिए कहा जाता है कि उत्तराखंड में कण-कण में भगवान हैं।
यह गुफा ‘द्रोण गुफा’ के नाम से भी प्रसिद्ध है क्योंकि गुरु द्रोणाचार्य ने यहां तपस्या की थी। गुफा के अंदर एक खुद से बना शिवलिंग है, जिस पर पानी की बूंदें प्राकृतिक और नियमित रूप से गिरती हैं। इसकारण इस शिव मंदिर को टपकेश्वर कहा जाता है। मंदिर के आसपास हरियाली, नदी और झरने इस जगह को प्राकृतिक रूप से खूबसूरत बनाते हैं। टपकेश्वर मंदिर का इतिहास महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य से शुरू होता है। गुरु द्रोणाचार्य यहां भगवान शिव की तपस्या करने आए थे। उन्होंने भगवान शिव के लिए 12 वर्ष तक तपस्या की।
गुरु द्रोणाचार्य भगवान शिव से धनुष विद्या सीखना चाहते थे। जबकि गुरु द्रोणाचार्य की पत्नी को संतान की चाहत थी, तब उन्होंने फिर से भगवान शिव की पूजा शुरू कर दी। कुछ समय बाद गुरु द्रोणाचार्य की पत्नी एक बच्चे को जन्म दिया। गुरु द्रोणाचार्य ने इस बालक का नाम अश्वत्थामा रखा।