बिहार जाति सर्वे रिपोर्ट जारी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला, 6 अक्टूबर को सुनवाई, आखिर क्या है मामला

नई दिल्ली (हि.स.)। बिहार में जाति सर्वे रिपोर्ट जारी किए जाने का मामला मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उठाया गया। जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया कि बिहार सरकार ने सर्वेक्षण का डाटा जारी कर दिया है। तब कोर्ट ने कहा कि हम अभी इस मामले पर कुछ नहीं कहेंगे। कोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाई 6 अक्टूबर को तय है उसी दिन हम सुनवाई करेंगे।

बिहार सरकार ने एक दिन पहले यानी दो अक्टूबर को जाति आधारित सर्वे का आंकड़ा सार्वजनिक कर दिया। इसके पहले 6 सितंबर को कोर्ट ने सर्वे के आंकड़े जारी करने पर अंतरिम रोक का आदेश नहीं दिया था। कोर्ट ने कहा था कि मामले में विस्तार से सुनवाई की जरूरत है।

28 अगस्त को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करते हुए कहा था कि संविधान के मुताबिक जनगणना केंद्रीय सूची के अंतर्गत आता है। केंद्र सरकार खुद एससी, एसटी और सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों के उत्थान की कोशिश में लगी है। जनगणना एक विधायी प्रक्रिया है जो जनगणना अधिनियम 1948 के तहत है और केंद्रीय अनुसूची के 7वें शेड्यूल के 69वें क्रम के तहत इसके आयोजन का अधिकार केंद्र सरकार के पास है। यह अधिनियम 1984 की धारा-3 के तहत यह अधिकार केंद्र को मिला है। इसके लिए केंद्र सरकार की ओर से अधिसूचना जारी कर यह बताया जाता है कि देश में जनगणना कराई जा रही है और उसके आधार भी स्पष्ट किए जाते हैं।

18 अगस्त को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसा नहीं लगता है कि सर्वे से किसी की निजता का हनन हो रहा है। पहले याचिकाकर्ता इस बात पर दलील दें कि मामला सुनवाई योग्य है। सुनवाई के दौरान बिहार सरकार ने कहा था कि हमने जाति आधारित जनगणना पूरी कर ली है। याचिकाकर्ताओं ने इस सर्वे का आंकड़ा सार्वजनिक करने पर रोक लगाने की मांग की। इस पर कोर्ट ने कहा था कि हम अभी रोक नहीं लगाएंगे। जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा था कि दो-तीन कानूनी पहलू हैं। हम नोटिस जारी करने से पहले दोनों पक्ष दलील सुनेंगे, फिर निर्णय करेंगे।

हालांकि कोर्ट ने कहा कि निजी आंकड़े कभी सार्वजनिक नहीं होते। आंकड़ों का विश्लेषण ही जारी किया जाता है। इस पर बिहार सरकार ने कहा था कि आंकड़े दो तरह के हैं। एक व्यक्तिगत आंकड़ा जो सार्वजनिक नहीं किया जा सकता क्योंकि निजता का सवाल है जबकि दूसरा आंकड़ों का विश्लेषण, जिसका एनालिसिस किया जा सकता है जिससे बड़ी पिक्चर सामने आती है।

सात अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल सभी याचिकाओं को एक साथ सुनेगा। याचिकाकर्ता अखिलेश कुमार समेत दूसरे याचिकाकर्ताओं ने पटना हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।

उल्लेखनीय है कि पटना हाई कोर्ट ने दो अगस्त को बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित सर्वे कराने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कर दी थी। हाई कोर्ट का आदेश आने के बाद बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में केविएट याचिका दायर की। बिहार सरकार का कहना है कि अगर हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाती है तो उसका पक्ष सुने बिना कोई भी याचिका दायर नहीं की जाए।

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