इंफाल (ईएमएस)। मणिपुर हाईकोर्ट ने मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने पर विचार करने के आदेश को रद्द कर दिया है। जस्टिस गोलमेई गैफुलशिलु की बेंच ने आदेश से एक पैराग्राफ को हटाते हुए कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट की कॉन्स्टिटयूशनल बेंच के रुख के खिलाफ था।
गौरतलब है कि 27 मार्च 2023 के इसी निर्देश के बाद मणिपुर में जातीय हिंसा भडक़ उठी, जिसमें अब तक 200 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। एसटी वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50 प्रतिशत है। राज्य के करीब 10 प्रतिशत इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90 प्रतिशत इलाके में रहते हैं।
- कैसे शुरू हुआ विवाद
मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया जाए। मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी को युद्ध लडऩे के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नागा लोगों से लडऩे के लिए आम्र्स ग्रुप बनाया।
- नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं
बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में स्ञ्ज वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा।
सियासी समीकरण मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 सीएम में से दो ही जनजाति से रहे हैं।