बहराइच : आधुनिकता की चकचौध मे लग्जरी कारों ने डोली प्रथा पर लगा दिया ब्रेक

बहराइच।“चलो रे डोली उठाओ कहार पिया मिलन की रितु आई”जैसे तमाम गीत रूपाहेले पर्दे पर देखने और सुनने को मिले होंगे पर लग्जरी गाड़ियों ने डोली प्रथा का पूरी तरह से अंत ही कर दिया है। जिस कारण शादी विवाह के मौके पर भी डोली कहीं भी दिखाई नहीं पड़ती। जबकि डोली प्रथा का इतिहास धार्मिक व ऐतिहासिक भी है पौराणिक कथा के अनुसार मिथिलांचल से डोली प्रथा की शुरुआत हुई थी उस युग मे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने स्वयंवर जीत कर मां सीता से शादी रचाई शादी के बाद डोली से ही मां सीता को अपने ससुराल अयोध्या लाए थे। इसी तरह तमाम और भी किवदंतियां और भी है।

कि पहले के राजा महाराजा बदमाशों से सुरक्षा के लिए डोली में सवार होकर अपने सैनिकों को भी भेजते थे। लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध मे डोली युग का अंत लग्जरी गाड़ियों ने पूरी तरह करके ही छोड़ा पहले शादी के बाद जब दुल्हा डोली लेकर आता था घर की महिलाए दरवाजे पर पहले से इंतजार कर दुल्हन की डोली आते ही मंगल गीत गाती थी पर समय के उतार चढ़ाव मे व्यवस्था ऐसी बदली की लग्जरी गाड़ियों मे स्वागत कर फूहड़ गानों से ही स्वागत होने सा लगा है।बताते चले धीरे धीरे समाज का फूहड़ सांग की तरफ तेजी से बढ़ता जा रहा है जिससे नई पीढ़ी अब डोली के महत्व से भी कोसो दूर है।

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