लेखक- अक्षत नायर, सह-संस्थापक ट्रूमेड्स
मुंबई- अभी हाल ही में भारत में 7 मार्च को हमने जैनेरिक मेडिसिन डे के रूप में मनाया, ऐसे में जैनेरिक मैडिसिन के प्रभावों को समझना जरूरी हो जाता है। जैनेरिक मैडिसिन को वैकल्पिक दवाओं के रूप में भी जानते हैं जिनसे क्रानिक बीमारियों से छुटकारा पाने में मदद मिलती है। भारत की एक बड़ी आबादी इस समय क्रानिक बीमारियों का शिकार है जिनमें डायबिटिज, हाइपरटेंशन, रेसिपिटेरी डिसार्डस, और ह्दय रोगियों की संख्या सबसे अधिक है। इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, इस समय भारत में 101 मिलियन लोग डायबिटिज के शिकार हैं जबकि हाइपरटेंशन से करीब 200 मिलियन लोग ग्रसित हैं। इसके अलावा, इंडियन जर्नल आफ मेडिकल रिसर्च ने अपनी एक ताजातरीन रिपोर्ट में कहा है कि भारत में जितनी मौतें होती हैं उनमें 18 प्रतिशत मौतें कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों के कारण होती हैं।
डायबीटिज, हाइपरटेंशन, जैसी कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां न सिर्फ, देश भर के लाखों लोगों को मौत का शिकार बनाती हैं बल्कि, उनका असर निजी और पारिवारिक तौर पर लोगों के शारिरिक, आर्थिक और भावनात्मक रूप से पड़ता है। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की जरूरत है, जिसमें उपलब्धता, आर्थिक स्थिति और भावनात्मक प्रभावों को भी शामिल किए जाने की जरूरत है।
पता चला है कि क्रानिक बीमारियों का इलाज कराना किसी भी व्यक्ति के आर्थिक हालात को खस्ताहाल बना देता है। लंबे-लंबे इलाज के बिलों का दुष्प्रभाव तेजी से मासिक खर्चों पर होने लगता है, जिससे खर्चे आवक से ज्यादा बढ़ जाते हैं जिसका ज्यादा असर निम्न मध्यम वर्ग के लोगों पर पड़ता है। भारत में लोगों की प्रति व्यक्ति आय वर्ष 1922-23 में 1,72000 रूपए से कम थी और कोविड-19 के बाद सालाना मेडिकल स्फीति दर 10 से 14 प्रतिशत तक रही है। वर्ष 2023 में आवश्यक दवाओं की कीमतों में 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। ऐसी स्थिति में अगर क्रानिक मरीज के मासिक दवा खर्च 2,000 रुपए से 4000 रुपए तक हो जाता है तो, पूरे परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है। रेकार्ड बताते हैं कि हर साल होने वाले मेडिकल खर्च के कारण, लगभग 65 लाख भारतीय परिवार गरीबी की रेखा के नीचे आ जाते हैं।
इस समस्या का निदान किया जा सकता है क्योंकि भारत में उपलब्ध 95 प्रतिशत दवाएं पेटेंट से मुक्त हैं और एक ही कंपोजिशन वाले 4.7 वैकल्पिक ब्रांड अलग-अलग मूल्यों में बाजार में उपलब्ध हैं। यह वैकल्पिक ब्रांड गुणवत्ता में समान होने के साथ ही, दूसरी ब्रांडेड दवाओं से किफायती मूल्य वाले भी हैं। मूल्यों में यह अंतर कुछ हद तक आर्थिक राहत मुहैया कर देता है खासकर, उन क्रानिक मरीजों को जिन्हें अपने कुल मासिक खर्च का 20 से 30 प्रतिशत दवाओं पर खरचना पड़ता है।
वैसे, वैकल्पिक दवाओं की उपलब्धता के बावजूद, अच्छी गुणवत्ता वाले विकल्प या बिना पेटेंट वाली दवाओं की खरीद भी तमाम लोगों के लिए, किसी चुनौती से कम नहीं होती। दूरदराज के इलाकों में सीमित उपलब्धता, मरीजों के खर्च को और ज्यादा मंहगी बना देती है। कभी-कभी जानकारी का न होना या इन विकल्पों की तलाश की मुश्किलें और ज्यादा सस्ती दवाओं की तलाश, मरीज के शारीरिक तनावों को बढ़ा सकती है जो बीमारी से ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है।
फिलहाल डाक्टरों के साथ परामर्श करके सरकार ने जन औषधि योजनाएं चलाई हैं और आनलाइन प्लेटफार्मों की उपलब्धता के कारण क्रानिक बीमारियों से जूझ रहे मरीज अब वैकल्पिक दवाएं प्राप्त कर सकते हैं जिससे उन्हें कम आर्थिक और शारिरिक दिक्कतें उठानी पड़ती हैं। ट्रूमेड्स जैसे आनलाइन प्लेटफार्म हर तरह के लोगों के लिए मुफ्त चिकित्सकीय सलाह मुहैया कराते हैं और विकल्पों की सूची भी उपलब्ध कराते हैं ताकि अच्छी गुणवत्ता वाली दवाओं की जानकारी सुलभ हो सके। इसके चलते, सभी मरीजों के पास उपयुक्त दवा चुनने की जानकारी मिल जाती है।
आर्थिक और शारीरिक दिक्कतों के अलावा, निजी और पारिवारिक तौर पर भी क्रानिक बीमारी से जूझ रहे लोगों को मानसिक तनावों का भी सामना करना पड़ता है। हेल्थकेयर के खर्चों को लेकर होने वाली अनिश्चतिता और तनाव और दवाओं के मिलने को लेकर होने वाले तनाव में और ज्यादा बढ़ोतरी हो जाती है।
वैकल्पिक दवाओं का विकल्प चुनने से न सिर्फ मरीज को निजी तौर पर राहत मिलती है बल्कि उसका असर भारत के व्यापक हेल्थकेयर व्यवस्था पर पड़ता है। मरीजों के आर्थिक दबावों को कम करते हुए और जरूरी दवाओं को उपलब्ध कराते हुए हेल्थकेयर सिस्टम को ज्यादा व्यापक और लंबे समय तक चलने वाला बनाया जा सकता है।
निष्कर्ष यही है कि जैनेरिक मेडिसिन डे का दिन यह याद दिलाता है कि वैकल्पिक दवाओं में वह ताकत है जिससे क्रानिक बिमारियों से होने वाले तनावों को कम किया जा सकता है। अगर हम उपलब्धता, खरीदने की क्षमता और भावनात्मक चुनौतियों को समझ लेते हैं तो हम सामूहिक रूप से मिलकर एक अच्छा, स्वस्थ समाज बना सकते हैं जहां गुणवत्ता वाली चिकित्सा सबके लिए उपलब्ध हो सकती है भले ही किसी के आर्थिक हालात कैसे भी हों। आइए हम सब मिलकर वैकल्पिक दवाओं की ताकत को समझें और उसे अपनाएं ताकि आने वाली पीढ़ियों के सामने हम एक चमकदार, और स्वस्थ भविष्य तैयार कर सकें।