नैमिषारण्य-सीतापुर। केंद्रीय चुनाव आयोग, राज्य चुनाव आयोग और जिला प्रशासन द्वारा बृहद स्तर पर मतदाता जागरूकता अभियान संचालित किए जाने के बावजूद जिले की तीन लोकसभाओं में मतदान प्रतिशत न बढ़ पाना प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आया है, सरकारी मशीनरी कम मतदान का कारण जानने में फेल साबित हुई है और ऐसा नहीं है कि ये बात केवल सीतापुर जनपद की ही है अभी तक जिन 4 चरण के चुनाव संपन्न हुए हैं उन सभी में कमोबेश मत प्रतिशत गिरा ही है। सोमवार को जिले में संपन्न हुए तीन लोकसभा क्षेत्र के लिए मतदान में महोली में 61.42, सीतापुर में 54.36, हरगांव में 65.32, लहरपुर में 62.33, बिसवां में 64.94, सेवता में 66.95, महमूदाबाद में 64.28 व मिश्रिख में 50.92 मतदान हुआ। अगर सीतापुर जनपद से जुड़ी तीन लोकसभाओं धौरहरा, सीतापुर और मिश्रिख में वर्ष 2019 में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव की वोटिंग पर नजर डालें तो धौरहरा लोकसभा में वर्ष 2019 में 64.69 मतदान हुआ था जो इस बार 64.12 ही रह गया वहीं सीतापुर लोकसभा में वर्ष 2019 में 63.93 मतदान हुआ था जो इस बार 62.22 ही रह गया इसी तरह मिश्रिख लोकसभा में वर्ष 2019 में 57.17 मतदान हुआ था जो इस बार 55.78 ही रह गया।
ग्रामीण रहे मुखर, नगरीय ने रखी दूरी
आमतौर पर पढे लिखे व सम्भ्रांत कहे जाने वाले नगरीय वर्ग की चुनाव में कम सक्रियता लगातार चिंता का विषय बनी हुई है वही ग्रामीण वोटर मतदान के प्रति हर बार की तरह इस बार भी जागरूक दिखे और बढ़ चढ़कर मतदान का प्रयोग किया हालांकि जनपद में ही कुछ जगह मूलभूत सुविधाओं को लेकर कुछ जगह ग्रामीण मतदाताओं ने मतदान के बहिष्कार की बात कही पर कुल मिलाकर जिले में मतदान प्रतिशत की लाज ग्रामीण मतदाताओं ने ही रखी।
कहीं ये राजनीतिक दलों के बदले ट्रेड का रिएक्शन तो नही
बीते चुनाव की अपेक्षा इस बार राजनीतिक दलों का जनसंपर्क अभियान विज्ञापन और सोशल मीडिया पर ज्यादा मुखर दिखा। ऐसे में अगर हम अधिकांश मतदाताओं की जुबानी स्थलीय जनसम्पर्क अभियान की हकीकत कहें तो बड़ी संख्या में ग्रामीण लोगों के साथ-साथ अर्धनगरीय लोगों को ये शिकायत रही कि प्रत्याशी या उनके समर्थकों ने जनसंपर्क अभियान को उस तरीके से धार नहीं दी और ना ही उनका अभियान घर-घर तक पहुँच सका बाकि प्रत्याशियों के तथाकथित समर्थकों में फोटो फोबिया का प्रयोग करते हुए सोशल मीडिया में फोटो डालने की होड़ जरूर लगी रही।
राष्ट्रीय नेता पर अधिक भरोसा, प्रत्याशी बने वोट सिंबल
संसद की महत्वपूर्ण कड़ी सांसद होता है और सांसदों से ही प्रधानमंत्री का चुनाव होता है। इस प्रक्रिया में लोकसभा प्रत्याशी का चेहरा भी मायने रखता है पर पिछले कुछ लोकसभा चुनावों से राष्ट्रीय स्तर के नेताओं का चेहरा ही चुनावी ट्रेंड बना हुआ है। वहीं स्थानीय प्रत्याशी चाहे-अनचाहे केवल वोट सिंबल बन के रह गए है ऐसे में कहीं ना कहीं प्रत्याशी राष्ट्रीय नेताओं के चेहरे की बदौलत ही वोट पाने की जुगत में रहता है जिसके चलते उसकी कनेक्टिविटी मतदाताओं से उतनी बेहतर नहीं हो पाती वहीं कहीं-कहीं प्रत्याशी अपने राष्ट्रीय नेता के चेहरे पर इतना ओवर कॉन्फिडेंट होते हैं कि वे जनता से उतना कनेक्ट ही नहीं होना चाहते जिसका नतीजा कम मतदान के रूप में भी सामने आता है।