टाइप 2 डायबिटीज के मरीज हुए स्वस्थ, इस देश के वैज्ञानिकों ने खोजा इलाज

-मरीज की ग्यारह सप्ताह में बाहरी इंसुलिन पर निर्भरता होगी खत्म


नई दिल्ली । चीन के डॉक्टरों और शोधकर्ताओं की टीम की ने टाइप 2 डायबिटीज के साथ जी रहे मरीज को बिलकुल स्वस्थ कर दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक मरीज की उम्र 59 वर्ष है, जो 25 सालों से टाइप 2 डायबिटीज के साथ जी रहा था।मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक शंघाई चांगझेंग हॉस्पिटल, चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज के तहत सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन मॉलिक्यूलर सेल साइंस और शंघाई स्थित रेनजी हॉस्पिटल के डॉक्टरों और शोधकर्ताओं की एक टीम की ने ये सफलता हासिल की है। रिपोर्ट के मुताबिक अब मरीज की ग्यारह सप्ताह में बाहरी इंसुलिन पर निर्भरता खत्म हो गई है। मरीज ने धीरे-धीरे शुगर लेवल को कंट्रोल करने के लिए दवाइयां लेना पूरी तरह बंद कर दिया है। शोध के प्रमुख रिसर्चर, यिन के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि टैस्ट से पता चला है कि मरीज का पेनक्रियाटिक आइलेट फंक्शन पहले की तरह काम कर रहा है।

 मरीज 33 महीने से इंसुलिन से मुक्त हैं। उन्होंने आगे कहा कि यह डायबिटीज के लिए सेल थेरेपी के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण प्रगति है।नई थेरेपी में मरीज की पेरीफेरल ब्लड मोनोन्यूक्लियर सेल की प्रोग्रामिंग शामिल है। शरीर की इन सेल्स को सीड सेल्स में बदल दिया गया। इसी के साथ आर्टिफिशियल वातावरण में पेनक्रियाटिक आइलेट टिश्यू को फिर से बनाया गया। एससीएमपी रिपोर्ट के मुताबिक, इस नए प्रयोग में शरीर की रिजेनरेटिव कैपेसिटी का यूज किया जाता है। इसे एक रीजेनरेटिव मेडिसिन के तौर पर जाना जाता है।


रिपोर्ट में कहा गया है कि 59 वर्ष 2017 में मरीज का किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था, लेकिन उनके अधिकांश पैंक्रियाटिक आईलेट ने काम करना बंद कर दिया था। पैंक्रियाज का काम ब्लड ग्लूकोज लेवल को कंट्रोल करने का होता है इस वजह से मरीज को हर दिन कई इंसुलिन इंजेक्शन पर निर्भर होना पड़ा था। मरीज को जुलाई 2021 में इनोवेटिव सेल ट्रांसप्लांट किया गया। ट्रांसप्लांट के ग्यारह हफ्ते बाद उन्हें बाहरी इंसुलिन की जरूरत नहीं पड़ी। ब्लड ग्लूकोज लेवल को कंट्रोल करने के लिए मौखिक दवा की खुराक धीरे-धीरे कम कर दी गई और एक साल बाद इसे पूरी तरह से बंद कर दिया गया। ट्रांसप्लांट के बाद मरीज से फॉलो अप लिया गया, जिससे पता चला कि मरीज का पैंक्रियाटिक आइलेट फंक्शन प्रभावी ढंग से बहाल हो गया था। मरीज को अब 33 महीनों के लिए इंसुलिन से पूरी तरह छुटकारा मिल गया है।


रिसर्चर्स की टीम का कहना है कि इस अध्ययन से डायबिटीज के लिए सेल थेरेपी के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण प्रगति होगी। डायबिटीज एक क्रोनिक कंडीशन है जो हमारे शरीर की ओर से भोजन को ऊर्जा में बदलने के तरीके पर असर डालता है। हम जो खाते हैं वह ग्लूकोज में टूट जाती है और ब्लडस्ट्रीम में में जाती है। ब्लड शुगर के स्तर को कंट्रोल करने के लिए इंसुलिन की जरूरत होती है जो पैंक्रियाज का काम है। जब किसी को भी डायबिटीज होती है तो ये प्रणाली हाइजैक हो जाती है, या तो शरीर पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता या जो भी इंसुलिन बनता है उसका प्रभावी ढंग से इस्तेमाल नहीं कर पाता है।

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