



अयोध्या। श्री राम जन्म और सीता-राम विवाह के हर्षोल्लास के बाद अब अयोध्या में चल रही चिन्मय मिशन दक्षिण अफ्रीका की 9-दिवसीय श्री राम कथा ने रामायण में अगला मोड़ ले लिया है।
इस आध्यात्मिक शिविर में विश्वभर से आए सभी 250 श्रोताओं को रामायण का दिव्य दर्शन करवा रहे हैं प्रसिद्ध कथावाचक एवं प्रवचनकर्ता, चिन्मय मिशन के, पूज्य स्वामी अभेदानन्द।
स्वामीजी ने आज इस बात पर प्रकाश डाला कि राजा दशरथ की राम राज्य की श्रेष्ठ इच्छा उनके काल में अपूर्ण रही, क्योंकि उनकी राम राज्य को लेकर समझ में किंचित दोष था। महारानी कैकेयी से मोहित होने के कारण, तथा राम राज्य को मात्र एक राजनैतिक प्रणाली मानने के कारण ही, उनकी इच्छा के विरुद्ध अयोध्या में दुर्घटनाएं घटित हुईं और 14 वर्ष के लिए अयोध्या नगरी श्री राम के अभाव में सूनी पड़ गई। इसका मूल कारण स्वामीजी ने मंथरा को बतलाया, जो हम साधकों के मन में भेदबुद्धि के रूप में है। भेदबुद्धि वह मानसिक रोग है जिसके कारण हम अपने आस पास के लोगों में ईश्वर को देखना भूल जाते हैं, और अपने राग-द्वेष से युक्त प्रतिक्रियाओं के कारण स्वयं तथा दूसरों को भी हानि पहुंचाते हैं।
स्वामीजी ने भगवान राम के स्वभाव की अद्भुत समता को दर्शाते हुए बताया कि, “जब कैकेयी ने भगवान राम को बड़ी कठोरता से वनवास जाने को कहा तो उनके श्रीमुख पर कोई भी शिकन नहीं थी। उनकी मुस्कुराहट सदैव वैसी ही बनी रही। वल्कल वस्त्र पहनकर भी वह उतने ही शांत थे जितने राजसी वेशभूषा में थे। मुलायम पलंग पर सोने वाले राम, अपने हाथ का तकिया बनाकर जंगल की भूमि पर भी सोते हुए उतने ही प्रसन्न थे। अपनी माता कौशल्या से आज्ञा लेते हुए भगवान राम ने यही कहा कि उनके पिता ने उन्हें अयोध्या से कहीं अधिक, कानन राज (वन वास) दिया है, और उन्होंने इस ओर भी इशारा किया कि उस वनवास के काल में उनके कई बड़े कार्य भी होने थे!”
भगवान राम के इन कार्यों की व्याख्या करते हुए स्वामीजी ने बताया कि राजा दशरथ के प्रशासन में एक कमी यह थी, कि अयोध्या में उनके राज्य में शांति और सुख अवश्य था, किंतु अयोध्या के अतिरिक्त बचे भारत में रावण, मारीच इत्यादि ने हाहाकार मचाया हुआ था, और केवट, निषाद, भील इत्यादि सभी को उपेक्षा का सामना करना पड़ा था। उस काल में भगवान राम ऐसे प्रथम राजा हुए जिन्होंने केवट की नाव में यात्रा की, भीलों के राजा निषाद को हाथ पकड़कर अपने पास बिठाया, श्रृंदैनिक भास्कर हर्ष से यह सूचनाएं एवं कथा के विशेष बिंदु प्रतिदिन आप तक पहुंचाता रहेगा! हमारे साथ जुड़े रहें! जय श्री राम!गवेरपुर इत्यादि क्षेत्रों के निम्न वर्गों और नीची जातियों के भी सभी लोगों को स्पर्श किया, आलिंगन दिया, प्रेम बांटा। और इस प्रकार से, भगवान राम के राज्य का आरंभ हुआ, राजनीति और युद्ध से नहीं, अपितु सभी के हृदयों में प्रवेश करके। स्वामीजी ने कहा कि, “राम राज्य का सर्वप्रथम नागरिक था केवट, और इस राज्य का सिद्धांत भगवान राम के प्रेम, करुणा, अभेद बुद्धि और समता पर ही टीका हुआ था।”










