परमाणु जखीरे पर अमेरिका की नजर : क्या ईरान से छीनकर पाकिस्तान में रखने की चल रही प्लानिंग?

नई दिल्ली:  डोनाल्ड ट्रंप के बुलावे पर वॉशिंगटन पहुंचे पाकिस्तानी आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने बुधवार को अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाकात की. ईरान-इजराइल युद्ध के बीच हुई इस मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं. ऐसी खबरें हैं कि ट्रंप ने ईरान के खिलाफ जंग में उतरने की योजना को हरी झंडी दे दी है. चर्चाएं तेज हैं कि ईरान की नकेल कसने के लिए ट्रंप ने मुनीर से सहयोग मांगा है. इस बीच अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के एक पूर्व अधिकारी माइकल रुबिन ने चौंकाने वाला दावा करते हुए कहा है कि ट्रंप की पाकिस्तान पर नजर इसलिए है क्योंकि ईरान पर संभावित सैन्य कार्रवाई के बाद उसके परमाणु जखीरे को पाकिस्तान में शिफ्ट किया जा सकता है.

…तो ईरान में उतारनी होगी अमेरिकी फौज

माइकल रुबिन अमेरिकी पेंटागन में अधिकारी रह चुके हैं और अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टिट्यूट के सीनियर एनालिस्ट हैं. एएनआई से बातचीत में रुबिन ने कहा कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को नेस्तनाबूद करने के लिए अमेरिकी फौजों को ईरान में घुसना होगा. ऐसे में एक संभावना ये भी है कि मामला ठंडा होने के बाद ईरान की न्यूक्लियर सप्लाई को पाकिस्तान की निगरानी में सौंपा दिया जाए. हालांकि रुबिन ने ये भी कहा कि ईरानी परमाणु सामग्री रखने या फिर सहयोग के लिए पाकिस्तान को फूटी कौड़ी भी नहीं दी जानी चाहिए. 

‘ईरान-पाकिस्तान असल में दोस्त नहीं’

रुबिन कहते हैं कि पाकिस्तान और ईरान भले ही कभी कभार एकदूसरे का सहयोग करते हैं, लेकिन असल में वे एकदूसरे के प्रतिद्वंदी हैं. 1998 में जब पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण किया था, तब ईरान में अधिकतर लोग मान रहे थे कि ये उसी के लिए किया गया है. ऐसे में अगर अमेरिका ईरान के परमाणु कार्यक्रम को बंद करवाता है तो यह पाकिस्तान के लिए अच्छा ही होगा. ईरानी परमाणु कार्यक्रम पाकिस्तान के लिए एक रणनीतिक चुनौती की तरह है.

पाकिस्तान को मिलेगा ईरानी एटमी जखीरा?

माइकल रुबिन ने कहा कि ट्रंप ईरान के परमाणु कार्यक्रम को ठप करने की ठान चुके हैं. ऐसा करने के लिए अमेरिका को अपनी फौज, स्पेशल फोर्सेज के कमांडो ईरान में उतारने होंगे. शायद इसकी मंजूरी भी मिल जाए. अगर ऐसा होता है और ईरान की परमाणु सामग्री को निकालकर ले आते हैं तो उसे कहीं न कहीं तो रखना होगा. शायद इसीलिए पाकिस्तान से बात हो रही है. हो सकता है कि इसके लिए पाकिस्तान को चुना जाए. हालांकि रुबिन ने ये भी कहा कि विदेश मंत्रालय के बोर्ड रूम में बैठकर जो अच्छी-अच्छी बातें होती है, जरूरी नहीं कि असल धरातल पर वह खरी उतरें. पाकिस्तान को किसी भी हाल में सहयोग या फिर ईरानी परमाणु सामग्री के लिए पैसे देकर मदद नहीं की जानी चाहिए. 

‘ट्रंप की मीठी बातों का सच कुछ और’

ट्रंप और अमेरिकी सैन्य अधिकारियों द्वारा पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ जंग में सहयोगी बताने और मीठी मीठी बातें किए जाने पर माइकल रुबिन ने कहा कि जो सामने दिखता है, अक्सर वैसा होता नहीं है. यह राजनयिक बयानबाजी से ज्यादा कुछ नहीं है. उन्होंने इसके लिए अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति फ्रेंकलिन रुजवेल्ट का उदाहरण दिया, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ के तत्कालीन प्रधानमंत्री जोसेफ स्टालिन को करीबी सहयोगी करार दिया था. 

ईरान से जंग में पाकिस्तान अहम

गौरतलब है कि पाकिस्तान और ईरान के बीच 900 किलोमीटर की साझा सीमा है. ऐसे में अमेरिका ईरान के खिलाफ अपनी फौजें उतारने का फैसला करता है तो उसे एक मजबूत ठिकाना मिल सकता है. ठीक उसी तरह, जैसे कि अफगानिस्तान में कार्रवाई के दौरान अमेरिका ने पाकिस्तान का इस्तेमाल किया था. ईरान के खिलाफ जंग में पाकिस्तान का साथ लेने का ट्रंप ने भी साफ संकेत दिया है. मुनीर के साथ मीटिंग के बाद ट्रंप ने कहा था कि पाकिस्तान ईरान को बहुत अच्छी तरह से जानता है और वहां जो हो रहा है, उससे वह खुश नहीं है. वह इजराइल के लिए भी बुरा नहीं है. 
(With Inputs from ANI)

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