
UP school merger: उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में कम छात्र संख्या वाले प्राथमिक स्कूलों के बड़े स्तर पर विलय की प्रक्रिया शुरू कर दी है. इस कदम के पीछे तर्क दिया गया है कि संसाधनों का बेहतर उपयोग और गुणवत्ता सुधार जरूरी है, लेकिन इस फैसले से हज़ारों शिक्षकों की नौकरी और नई भर्ती पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.
अब तक क्या हुआ है?
- 5,000 से अधिक प्राथमिक स्कूलों को बंद कर दूसरे में किया जा रहा विलय, सबसे पहले यह प्रक्रिया गोरखपुर से शुरू हुई.
- जिन स्कूलों में 20 या उससे कम छात्र हैं, उन्हें आसपास के बड़े स्कूलों में समायोजित किया जा रहा है.
- इस फैसले को 2023 के शिक्षा विभागीय समीक्षा के आधार पर लागू किया जा रहा है
लेकिन सबसे बड़ा सवाल: शिक्षकों का क्या?
जिन स्कूलों का विलय हो रहा है, वहां कार्यरत शिक्षक या तो स्थानांतरित किए जा रहे हैं या फिर ‘संकलन’ प्रक्रिया के तहत अन्य स्कूलों में अटैच किए जा रहे हैं. नए शिक्षक पदों पर भर्ती (जिसका लंबे समय से इंतजार है) वह अब इस फैसले के कारण अस्थायी रूप से रोक दी गई है. प्रशिक्षित बेरोज़गारों में भारी नाराज़गी है क्योंकि कई जिलों में पहले ही शिक्षक कम हैं, और अब भर्ती ही नहीं होगी.
विपक्ष और संगठनों का विरोध
लखनऊ, प्रयागराज, कानपुर जैसे शहरों में शिक्षक संघ और विपक्षी दल इस फैसले का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि सरकार संख्या देखकर स्कूल बंद कर रही है, जबकि बच्चों की पढ़ाई और ग्रामीण क्षेत्र में पहुंच पर इसका बुरा असर पड़ेगा. कई स्कूलों में तो केवल एक या दो शिक्षक ही थे, और अब वहां के छात्रों को दूर तक जाना पड़ेगा.
आंकड़ों में स्थिति
श्रेणी | विवरण |
विलय किए जा रहे स्कूल | 5,000+ (2025 में प्रस्तावित) |
औसत छात्र संख्या | 8–15 छात्र प्रति स्कूल |
शिक्षकों पर प्रभाव | हजारों को स्थानांतरित या समायोजित किया जाएगा |
भर्ती की स्थिति | नई शिक्षक भर्ती फिलहाल रोक दी गई है |
राज्य सरकार के अनुसार, यह कदम ‘शिक्षा व्यवस्था के पुनर्गठन’ के लिए जरूरी है, लेकिन यह सवाल अभी अनुत्तरित है कि क्या शिक्षकों की नौकरियां स्थिर रहेंगी? क्या भविष्य की भर्तियों का रास्ता बंद हो जाएगा? स्कूलों का विलय भले आर्थिक रूप से सही लगे, लेकिन यदि यह युवाओं के रोजगार, शिक्षा की पहुंच और शिक्षक-छात्र अनुपात को बिगाड़ता है, तो सामाजिक और शैक्षिक दृष्टिकोण से यह एक गंभीर मुद्दा है.
लखनऊ के 445 स्कूलों पर असर
एक रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में संचालित परिषदीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों की संख्या लगभग 1.32 लाख है. इनमें से उन स्कूलों को मर्ज करने की योजना बनाई गई है, जहां छात्रों की संख्या 50 से कम है. इस संबंध में हाल ही में बेसिक शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार ने आदेश जारी किया है. आदेश में कहा गया है कि ऐसे स्कूलों को नज़दीकी स्कूलों में विलय किया जाएगा, ताकि संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सके और छात्रों को बेहतर शैक्षणिक माहौल मिल सके.
आदेश में यह भी उल्लेख किया गया है कि अगर किसी स्कूल तक पहुंचने में कोई बाधा है, जैसे रास्ते में नाला, नदी, हाईवे या रेलवे ट्रैक हो, तो ऐसे स्कूलों को भी दूसरे स्कूलों में मर्ज किया जा सकता है.
हर जिले में खुलेंगे मुख्यमंत्री अभ्युदय कंपोजिट स्कूल
राज्य सरकार इस पहल को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के अनुरूप एक सकारात्मक कदम मान रही है. सरकार का उद्देश्य है कि छात्रों को बेहतर और समान शिक्षा मिल सके, इसके लिए प्रत्येक जिले में ‘मुख्यमंत्री अभ्युदय कंपोजिट स्कूल’ खोले जाएंगे. इन आधुनिक स्कूलों में होंगे:
- स्मार्ट क्लास
- लाइब्रेरी
- कंप्यूटर रूम
- डायनिंग हॉल और मिड-डे मील किचन
- वाई-फाई
- ओपन जिम
- स्वच्छ शौचालय आदि
लखनऊ में 445 स्कूलों का विलय तय
लखनऊ ज़िले में इस फैसले का बड़ा असर पड़ने वाला है. यहां 445 प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों का विलय प्रस्तावित है. विभागीय तैयारियां शुरू हो चुकी हैं और जुलाई से इन स्कूलों के छात्र नजदीकी स्कूलों में शिफ्ट किए जाएंगे. लखनऊ के बीएसए राम प्रवेश ने स्पष्ट किया है कि स्कूल बंद नहीं होंगे, बल्कि उनमें पढ़ने वाले बच्चों को निकट के स्कूलों में पढ़ाई के लिए भेजा जाएगा. इन विलयित स्कूल परिसरों में भविष्य में आंगनबाड़ी, बाल वाटिका, पुस्तकालय और खेलकूद गतिविधियां चलाई जाएंगी.