17 साल तक चली मालेगांव बम विस्फोट मामले की सुनवाई, एक क्लिक में पढ़ें केस की पूरी टाइमलाइन

मुंबई, । गुरुवार को महाराष्ट्र के मालेगांव विस्फोट मामले के सभी सात आरोपियों को निर्दोष बरी कर दिया गया है। अभियुक्त को केवल संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इसलिए अदालत ने कहा कि सभी आरोपियों को बरी किया जाता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि फैसला 1,000 पृष्ठों से अधिक लंबा था। 29 सितंबर, 2008 को मालेगांव में हुए भीषण बम विस्फोट मामले में गुरुवार दिनांक 31 जुलाई को अदालत ने अपना फैसला सुनाया। एनआईए के अनुरोध पर विशेष एनआईए अदालत ने 2017 में मामले से मकोका को बाहर करने पर सहमति व्यक्त की थी।

हालांकि, यह स्पष्ट किया गया था कि साध्वी प्रज्ञा सिंह और छह अन्य आरोपियों के खिलाफ मामला जारी रहेगा। इसके बाद दिसंबर 2018 में मुंबई सत्र न्यायालय में मामला शुरू हुआ। सरकारी पक्ष ने इस मामले में 100 से अधिक प्रत्यक्षदर्शियों से पूछताछ की, जिनमें से कुछ घायल हुए थे, जबकि अन्य ने घटना में अपने रिश्तेदारों को खो दिया। इस मामले में कुल 323 गवाहों की भी जांच की गई। इनमें से 34 को अदालत में अपनी गवाही बदलने के बाद अयोग्य घोषित कर दिया गया। चूंकि यह मामला पिछले 17 वर्षों से लंबित था, इसलिए इस फैसले से पहले कुल 30 गवाहों की मृत्यु हो चुकी है। अयोग्य घोषित किये गये कई गवाहों ने अदालत को बताया कि एटीएस ने उन्हें बयान लिखने के लिए मजबूर किया था। सितंबर 2023 में, अदालत ने दोनों पक्षों की अंतिम दलीलें सुनना शुरू किया, तथा सभी गवाहों के साक्ष्य दर्ज किए।

अविनाश रसाल और उनकी बेटी अनुश्री रसाल ने इस मामले में विशेष सरकारी अभियोजक के रूप में काम किया। पूरा सरकारी पक्ष प्रत्यक्षदर्शियों के बयान और परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर निर्भर है। जिसमें आरोपियों के कॉल डेटा रिकॉर्ड और उनकी आवाज के नमूने शामिल हैं। आरोपियों का बचाव कर रहे प्रशांत मग्गू और रंजीत सांगले ने दावा किया है कि उनका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है और एटीएस ने उन्हें गलत तरीके से फंसाया है।

  • घटनाक्रम पर एक नजर
  • 29 सितंबर 2008 को रमजान के महीने में हुए बम विस्फोट में छह लोग मारे गये और सौ से अधिक घायल हो गये।
  • मालेगांव में अंजुमन चौक और भीकू चौक के बीच स्थित शकील गुड्स ट्रांसपोर्ट कंपनी के सामने 29 सितंबर 2008 को यह विस्फोट रात 9.35 बजे बाइक में हुआ।
  • बीजेपी नेता साध्‍वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित के साथ ही मेजर रमेश उपाध्‍याय, सुधाकर द्विवेदी, समीर कुलकर्णी, अजय रहीरकर और सुधाकर चतुर्वेदी आरोपी थे।
  • 19 अप्रैल को सुनवाई पूरी हो गई थी, कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
  • एनआईए ने आरोपियों के लिए उचित सजा की मांग की।
  • एनआईए ने आरोप लगाया कि मालेगांव में विस्फोट कराकर एक समुदाय में भय फैलाकर सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की साजिश थी।
  • एनआईएच का कहना है कि साक्ष्यों से स्पष्ट है कि आरोपी की पूरे समूह में प्रत्यक्ष संलिप्तता है
  • मालेगांव विस्फोट की प्रारंभिक जांच आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) द्वारा की गई थी, लेकिन 2011 में जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को स्थानांतरित कर दी गई थी।
  • वास्तविक सुनवाई 2018 में शुरू हुई जब सात आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए।
  • आरोपियों पर यूएपीए अधिनियम के तहत आतंकवादी कृत्य करने और आतंकवादी कृत्य करने की साजिश रचने के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता के तहत हत्या, हत्या का प्रयास और धार्मिक दुश्मनी पैदा करने का आरोप है।
  • सुनवाई के दौरान सरकार ने 323 गवाहों से पूछताछ की, जिनमें से 37 गवाह गवाही देने में विफल रहे।
  • एटीएस ने दावा किया कि जिस बाइक में विस्फोटक रखा गया था, वह साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की थी।
  • साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को 23 अक्टूबर 2008 को गिरफ्तार किया गया था।
  • इसके बाद शुरू हुए गिरफ्तारी सत्र में 14 नवंबर तक कुल 11 लोगों को गिरफ्तार किया गया।
  • एटीएस ने उसके खिलाफ केस दर्ज किया था लेकिन बाद में केस वापस ले लिया गया।
  • एटीएस ने दावा किया कि जनवरी 2008 में एक साजिश रची गई थी और आरोपियों ने फरीदाबाद, भोपाल और नासिक में बैठकें की थीं।

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