
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष भाद्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है. हिंदू धर्म में यह त्योहार सभी महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में बड़ी ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है. इस साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 16 अगस्त को मनाया जाएगा.
इस दिन घरों और मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है और जैसे ही रात के 12 बजता है तब जन्मोस्सव का पर्व मनाया जाता है. कृष्ण जन्माष्टमी पर भक्त भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल की पूजा करते हैं. आइए जानते हैं श्री कृष्ण जन्माष्टमी कैसे करें पूजा और क्या हैं इसके खास नियम.
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि
- भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर सुबह जल्दी उठे और स्नान करके व्रत-पूजा का संकल्प करें.
- पूजा स्थल की साफ-सफाई करके गंगाजल का छिड़काव करें.
- इसके बाद चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर और वहां पर लड्डू गोपाल की मूर्ति को रखें.
- इस बात का विशेष ध्यान रखें कि लड्डू गोपाल को झूले पर विराजमान करें.
- फिर सभी पूजा सामग्री को एकत्रित करते हुए लड्डू गोपाल को बारी-बारी से पंचामृत , तुलसी पत्र, मिश्री, रोली, चंदन, अक्षत, फल, फूल, बांसुरी मोरपंख और पान-सुपारी अर्पित करें.
- इसके बाद लड्डू गोपाल की प्रतिमा के सामने दीप प्रज्वालित करें.
- भोग में पंजीरी और तुलसी पत्र को भोग में जरूर अर्पित करें. बिना तुलसी पत्र के कान्हा भोग को स्वीकार्य नहीं करते हैं.
- भोग के बाद भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप और आरती करें.
- रात 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण के जन्म समय पर शंख और घंटियां बजाकर आरती करें और जय कन्हैया लाल की… गूंज के साथ जन्मोत्सव मनाएं.
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजा का महत्व
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में अवतार लिया था इस कारण से जन्माष्टमी पर बाल स्वरूप की पूजा करने से विशेष कृपा मिलती है जिससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और वैवाहिक जीवन में प्रेम और सामंजस्य बढ़ता है, संतान सुख प्राप्त करने और मानसिक शांति के लिए अत्यंत फलदायी होता है.
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजा के नियम
जन्माष्टमी तिथि पर लड्डू गोपाल की पूजा करने के लिए विशेष नियमों के अनुसार पूजा करना जरूरी होता है. पूजा से पहले स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनें और पूजा स्थल को स्वच्छ रखें. प्रतिदिन भगवान को ताजे फूल और प्रसाद अर्पित करें. उन्हें तुलसी पत्र अर्पित करना अनिवार्य है. पूजन के समय मन को शांत रखें और श्रद्धा-भक्ति के साथ मंत्रोच्चारण करें. रात 12 बजे अवश्य आरती करें और जन्मोत्सव मनाएं.