
मंडी । हिमाचल प्रदेश की देवभूमि अपने अनोखे मेलों और परंपराओं के लिए जानी जाती है। मंडी जिले की सराज घाटी में हर साल आयोजित होने वाला देव विष्णु मतलौड़ा, देव सुमुनाग और देव नलबाणी का मेला ऐसे ही प्रमुख उदाहरण हैं। पांच दिन तक चलने वाले इस मेले की शुरुआत श्रावण मास की पूर्णिमा से होती है। इसमें लोग झूमते-गाते और नाचते हुए देवताओं की प्राचीन रस्मों का निर्वहन करते हैं। मेले का सबसे खास और अद्भुत दृश्य है—कीचड़ फेंकने की परंपरा।
जानकारी अनुसार बरसात के इस मौसम में जब मैदान पूरी तरह कीचड़ से भर जाता है, तब इसकी शुरुआत होती है। पांचवें दिन जंगल से एक विशालकाय पेड़ काटकर मेले के स्थल तक लाया जाता है। इस दौरान लोग मज़ाक में गालियां देते और चुटीले तंज कसते हैं ताकि बुरी शक्तियों को दूर किया जा सके। इसके साथ ही जैसे ही पेड़ मैदान में पहुंचता है, लोग एक-दूसरे पर कीचड़ फेंकना शुरू कर देते हैं। इसमें सभी उम्र के लोग भाग लेते हैं और फिर उसी कीचड़ में पारंपरिक नाटी नृत्य भी किया जाता है।
देव सुमुनाग के लोग बताते हैं कि यह मेला प्राचीन काल से आयोजित किया जा रहा, जो कि परंपराओं का प्रतीक है। यही कारण है कि आज भी लोग इसे पूरी श्रद्धा और उल्लास से निभाते हैं।
मृत दिखाकर जीवित करने की अनोखी परंपरा
यही नहीं मंडी की सराज घाटी में ऐसे कई अनूठे मेले होते हैं जो देव आस्था और प्राचीन परंपराओं से जुड़े हैं। इन्हीं में से एक है काहिका उत्सव, जिसमें अश्लील तंज कसने और एक व्यक्ति को मृत दिखाकर फिर जीवित करने की अनोखी परंपरा भी निभाई जाती है। यह अनूठा मेला न सिर्फ देव आस्था का प्रतीक है बल्कि लोक संस्कृति की जीवंत झलक भी पेश करता है।