
घर खरीदारों की सुरक्षा के उद्देश्य से महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने घोषणा की कि आवास का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से दिवालियापन की कार्यवाही से गुजर रही संकटग्रस्त रियल एस्टेट प्रोजेक्ट के लिए वित्तपोषण प्रदान करने हेतु एक पुनरुद्धार कोष बनाने का आग्रह किया।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि इसका उद्देश्य अन्यथा व्यवहार्य रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स के परिसमापन को रोकना और वास्तविक घर खरीदारों के हितों की रक्षा करना होना चाहिए।
अदालत ने कहा,
“यह केवल घरों या अपार्टमेंटों का मामला नहीं है। बैंकिंग क्षेत्र, संबद्ध उद्योग और एक बड़ी आबादी का रोजगार भी दांव पर है।”
साथ ही यह भी कहा कि सरकार संवैधानिक रूप से घर खरीदारों और समग्र अर्थव्यवस्था के हितों की रक्षा करने के लिए बाध्य है।
अदालत ने NCLAT का फैसला बरकरार रखा, जिसमें यह निर्देश दिया और दिवालियापन की कार्यवाही में सट्टा खरीदारों के दावों को खारिज कर दिया गया था।
न्यायालय ने कहा कि विशुद्ध रूप से लाभ के उद्देश्य से सट्टा लगाने वाले प्रतिभागियों को दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC) का दुरुपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जो रुग्ण कंपनियों के पुनरुद्धार और संरक्षण के लिए एक सुधारात्मक ढांचा है।
निर्णय में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि “रियल एस्टेट के मामले में IBC का उद्देश्य वास्तविक घर खरीदारों की रक्षा करना है।” साथ ही स्पष्ट किया गया कि ऐसे सट्टा निवेशकों के पास उपभोक्ता संरक्षण कानूनों, रेरा या दीवानी अदालतों के माध्यम से वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हैं।
तत्काल अनुवर्ती कार्रवाई का निर्देश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि उसके निर्णय की कॉपी रजिस्ट्री द्वारा कैबिनेट सचिव और सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को भेजी जाए, जिन्हें जल्द से जल्द आवश्यक कदम उठाने होंगे।
अदालत ने कहा,
“केंद्र सरकार संबंधित योजना के तहत पुनरुद्धार कोष स्थापित करने पर विचार करेगी ताकि CIRP कार्यवाही से गुजर रही संकटग्रस्त प्रोजेक्ट्स के लिए ब्रिज फाइनेंसिंग प्रदान की जा सके, जिससे व्यवहार्य प्रोजेक्ट्स के परिसमापन को रोका जा सके और घर खरीदारों के हितों की रक्षा की जा सके… दुरुपयोग को रोकने के लिए हम निर्देश देते हैं कि CAG द्वारा व्यापक आवधिक निष्पादन लेखा परीक्षा की जाए, जिसकी रिपोर्ट आम लोगों के लिए भी समझने योग्य रूप में सार्वजनिक डोमेन में रखी जाए।”
अदालत ने ज़ोर देकर कहा कि सरकार “मूक दर्शक” नहीं बनी रह सकती और उसे घर खरीदारों और व्यापक अर्थव्यवस्था की सुरक्षा के अपने संवैधानिक कर्तव्य को पूरा करना होगा।
अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि बैंकिंग क्षेत्र, संबद्ध उद्योग और रोज़गार सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं।
अदालत ने कहा,
“अंततः, यह नीतिगत मामला है। सरकार के अनन्य अधिकार क्षेत्र में आने के कारण वह मूक दर्शक नहीं बनी रह सकती। सरकार संवैधानिक रूप से घर खरीदारों और समग्र अर्थव्यवस्था के हितों की रक्षा करने के लिए बाध्य है…। विदा लेने से पहले हम यह मानते हैं कि आवास का अधिकार केवल एक संविदात्मक अधिकार नहीं है, बल्कि अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार का एक पहलू है।”
अदालत ने आगे कहा,
“वास्तविक घर खरीदार भारत के शहरी भविष्य की रीढ़ हैं। उनकी सुरक्षा संवैधानिक दायित्व और आर्थिक नीति के संगम पर स्थित है। इन निर्देशों के माध्यम से यह न्यायालय नियामक और दिवाला ढांचे में विश्वास बहाल करना चाहता है, दुरुपयोग की बेहतर कल्पना करना चाहता है। यह सुनिश्चित करना चाहता है कि भारत के नागरिकों का सपनों का घर जीवन भर के दुःस्वप्न में न बदल जाए।”
मामले की पृष्ठभूमि
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने NCLAT के 2020 के के फैसले से उत्पन्न मामले की सुनवाई की, जिसमें आवंटी फर्नांडीस-अपीलकर्ता द्वारा दायर IBC की धारा 7 याचिका खारिज कर दी गई। ट्रिब्यूनल ने पाया कि बिल्डर के साथ उनका समझौता ज्ञापन (AOU) मानक बिल्डर-खरीदार समझौता नहीं था, बल्कि अनिवार्य बायबैक क्लॉज वाली वित्तीय निवेश योजना थी।
अपीलकर्ता ने ₹35 लाख का निवेश किया और उसे 12 महीने बाद ₹1 करोड़ देने का वादा किया गया, जिसके लिए पोस्ट-डेटेड चेक दिए गए। जब चेक बाउंस हो गए तो उसने दिवालियेपन की कार्यवाही की मांग की। NCLAT ने उसे एक “सट्टा निवेशक” के रूप में वर्गीकृत किया, जो IBC का दुरुपयोग जबरदस्ती वसूली तंत्र के रूप में करने का प्रयास कर रही थी, यह देखते हुए कि उसने पहले ही निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (NI Act) के तहत उपाय अपना लिए थे।
NCLAT के फैसले के खिलाफ उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
निर्णय
NCLAT के फैसले की पुष्टि करते हुए जस्टिस महादेवन द्वारा लिखित निर्णय में सट्टा निवेशकों द्वारा दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (IBC) के दुरुपयोग के विरुद्ध निर्णय दिया गया। निर्णय में कहा गया कि “निवेशक किसी भी उद्योग का अभिन्न अंग हैं और उनके हितों की सुरक्षा आवश्यक है। केवल लाभ के उद्देश्य से प्रेरित सट्टा प्रतिभागियों को दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता का दुरुपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जो कंपनियों के पुनरुद्धार और संरक्षण के लिए और रियल एस्टेट के वास्तविक घर खरीदारों के मामले में सुधारात्मक ढांचा है।”
अदालत ने दोहराया कि IBC उन सट्टा निवेशकों के लिए कोई वसूली तंत्र नहीं है, जो लाभ के उद्देश्य से प्रेरित होते हैं। उन्हें संबंधित कानूनों के तहत निहित अन्य वैकल्पिक उपायों की तलाश करनी चाहिए।
अदालत ने कहा,
“ऐसे निवेशकों के पास उपभोक्ता कानून या रेरा के तहत वैकल्पिक उपाय हैं और उचित मामलों में वे दीवानी अदालतों का भी सहारा ले सकते हैं। सट्टा दावों को दिवालियेपन की कार्यवाही में शामिल करने से विधायी योजना में अंतर्निहित स्पष्ट अंतर कमज़ोर हो जाएगा, आवासीय अचल संपत्ति क्षेत्र अस्थिर हो जाएगा। आवास को मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित सामाजिक उद्देश्य का ह्रास होगा। इसलिए यह मामला उन वास्तविक घर खरीदारों के लिए सुरक्षा उपायों को मज़बूत करने का अवसर प्रदान करता है, जिन्होंने अपनी जीवन भर की बचत अचल संपत्ति बाजार को सट्टेबाज़ी और कृत्रिम मुद्रास्फीति से बचाने के लिए निवेश की है। अदालत द्वारा निर्धारित त्वरित और समयबद्ध निर्णय सुनिश्चित करने के लिए।”
तदनुसार, अपील खारिज कर दी गई।