वैश्विक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने डब्ल्यूएचओ की तंबाकू नियंत्रण नीति की समीक्षा की

India, 2025 – कंज़्यूमर चॉइस सेंटर ने इस महीने फिलीपींस में ‘हार्म रिडक्शन और एफसीटीसी की छूटी हुई संभावनाएँ’ विषय पर एक प्रेस ब्रीफिंग आयोजित की। इसमें सात देशों से आए डॉक्‍टरों, शोधकर्ताओं और उपभोक्ता प्रतिनिधियों ने भाग लिया और विश्व स्वास्थ्य संगठन (ड्ब्‍ल्‍यूएचओ) के फ़्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल (एफसीटीसी) की वर्तमान नीतियों की समीक्षा करते हुए तंबाकू से होने वाले नुकसान को कम करने के वैकल्पिक उपायों पर चर्चा की।

कंज़्यूमर चॉइस सेंटर के प्रेसिडेंट और हेल्‍थ इकोनॉमिस्‍ट फ्रेड रोएडर ने कहा, “हमें एक ईमानदार बातचीत की ज़रूरत थी कि वैश्विक तंबाकू नियंत्रण में क्या काम कर रहा है और क्या नहीं। कई देशों ने हार्म रिडक्शन (हानि-नियंत्रण) रणनीतियों से सकारात्मक नतीजे देखे हैं, फिर भी दक्षिण-पूर्व एशिया की नीतिगत चर्चाओं में इन्हें नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।”

वर्तमान तंबाकू नीतियों का आर्थिक असर

क्रिस्टोफर कबुआय, पीएचडी, एसोसिएट प्रोफेसर (इ‍कोनॉमिक्‍स -डे ला सेले यूनिवर्सिटी), ने आँकड़ों के आधार पर बताया कि तंबाकू-जनित बीमारियों से 2019 में फिलीपींस की अर्थव्यवस्था को करीब 9.8 अरब डॉलर (GDP का 2.48%) का नुकसान हुआ।

कबुआय ने कहा कि तंबाकूजनित बीमारियों पर होने वाला खर्च दरअसल अर्थव्यवस्था की अक्षमता को दर्शाता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि मूल्यवान संसाधन बीमारियों के इलाज में लग रहे हैं, जबकि असली संसाधन केवल पैसा नहीं बल्कि देश के लोग हैं, और वही किसी राष्ट्र की सबसे बड़ी पूंजी हैं।

कबुआय के आर्थिक मॉडल के अनुसार, यदि वयस्क धूम्रपान करने वाली आबादी का सिर्फ 10% भी हार्म रिडक्शन अपनाए, तो फिलीपींस सालाना 687 मिलियन डॉलर बचा सकता है। वहीं यदि आधे स्‍मोकर्स इस दिशा में कदम उठाएँ, तो सालाना बचत 3.4 अरब डॉलर (करीब 195 अरब पेसो) तक पहुँच सकती है।

उपभोक्ता दृष्टिकोण ने नीति से जुड़ी चर्चाओं को बढ़ावा दिया

निकोटिन कंज़्यूमर यूनियन फिलीपींस से जुड़े एंटन इस्राएल ने उपभोक्ता अनुभवों और नीतिगत निर्णयों के बीच गहरी खाई की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा, “हम उपभोक्ताओं को नीतियाँ बनाने की प्रक्रिया में नज़रअंदाज़ किया जाता है, हमें कलंकित किया जाता है और हमारी आवाज़ दबा दी जाती है। जो नियम और दिशानिर्देश बनाए जाते हैं, वे हमें, यानी निकोटीन उपभोक्ताओं का, प्रतिनिधित्व ही नहीं करते।”

मलेशिया की स्थिति पर भी चर्चा हुई, जहाँ नीतिगत उतार-चढ़ाव और असंगत लागू करने की प्रक्रिया ने उपभोक्ताओं को अवैध बाज़ार की ओर धकेलने का खतरा पैदा किया है। इससे न सिर्फ़ स्वास्थ्य लक्ष्य प्रभावित होते हैं बल्कि आर्थिक नुकसान भी होता है।

अंतरराष्ट्रीय नीति ढाँचा और बाज़ार की सच्‍चाई

नैन्सी लूकस (केफरा- न्यूज़ीलैंड) ने बताया कि अत्यधिक प्रतिबंधात्मक नीतियाँ उपभोक्ताओं को अवैध बाज़ार की ओर ले जाती हैं। उन्होंने कहा, “जब आप किसी चीज़ पर पाबंदी लगाते हैं या इतनी सख्ती कर देते हैं कि लोग उसे वैध रूप से नहीं ले पाते, तो वे अवैध रास्ते खोज लेते हैं। इससे सरकार को कर राजस्व का घाटा तो होता ही है, साथ ही खरीदी जाने वाली वस्तुओं पर कोई नियंत्रण भी नहीं रहता।”

वर्ल्ड वेपर्स एलायंस के माइकल लैंडल ने रिस्क-आधारित टैक्सेशन (जोखिम-आधारित कर प्रणाली) का उदाहरण पेश किया। उन्होंने बताया कि स्वीडन ने उत्पादों पर उनके नुकसान के स्तर के हिसाब से कर लगाया, जिससे धूम्रपान दर 6% से नीचे आ गई, जबकि निकोटिन का उपभोग यूरोप के अन्य देशों के बराबर बना रहा।

उन्होंने कहा, “स्मार्ट देश जोखिम के स्तर के हिसाब से कर लगाते हैं। इससे धूम्रपान करने वालों को स्वास्थ्य के अलावा आर्थिक कारणों से भी कम हानिकारक विकल्प अपनाने की प्रेरणा मिलती है।” इसके उलट जर्मनी में हार्म रिडक्शन उत्पादों पर ऊँचे कर ने न सिर्फ़ लोगों को हतोत्साहित किया बल्कि अपेक्षित कर-राजस्व का केवल 30% ही मिल सका, क्योंकि उपभोक्ताओं ने सीमा पार जाकर सस्ते विकल्प खरीदे।

क्षेत्रीय अर्थव्‍यवस्‍था पर असर

विशेषज्ञों ने माना कि अप्रभावी तंबाकू नीतियों का असर पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है, ख़ासकर विकासशील देशों में, जहाँ संसाधनों का बेहतर उपयोग उत्पादक गतिविधियों में होना चाहिए। चर्चा का निष्कर्ष यह रहा कि नीतिगत दृष्टिकोण उपभोक्ता की पसंद और बाज़ार की वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर बनाए जाने चाहिए, ताकि सार्वजनिक स्वास्थ्य और आर्थिक दक्षता दोनों लक्ष्य पूरे हों।

अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की संयुक्त घोषणा : “हम डब्‍ल्‍यूएचओ एफसीटीसी और सभी देशों के प्रतिनिधियों से आह्वान करते हैं कि वे तंबाकू नियंत्रण में हार्म रिडक्शन को पूरी तरह शामिल करें। तथ्य स्पष्ट हैं: मारक तत्व निकोटिन नहीं, बल्कि धुआँ है। सुरक्षित विकल्प उपलब्ध हैं और कारगर भी हैं। अब समय है कि विज्ञान और साक्ष्यों के साथ खड़े होकर सबके लिए स्वास्थ्य सुनिश्चित किया जाए।”