
Hasina Extradition India Bangladesh: बांग्लादेश की बर्खास्त प्रधानमंत्री शेख हसीना (Sheikh Hasina death sentence) को “मानवता के खिलाफ अपराध” के लिए उनकी अपने देश में अनुपस्थिति के चलते मौत की सजा (Hasina extradition treaty) सुनाने के बाद ढाका ने भारत से उन्हें तुरंत सौंपने की मांग की है। लेकिन भारत ने साफ तौर पर कह दिया है कि वह बांग्लादेश (India Bangladesh pact) के लोगों के हितों को प्राथमिकता देगा और सभी पक्षों से बातचीत जारी रखेगा। हसीना 2024 में छात्र आंदोलन के बाद भारत भाग आई थीं, जहां वे निर्वासन में हैं। अब सवाल उठ रहा है – क्या भारत उन्हें बांग्लादेश भेजेगा ? कानूनी तौर पर भारत (political extradition clause) के पास इनकार करने का पूरा हक है। आइए समझते हैं पूरी कहानी।
पांच मामलों में दोषी ठहराया
दरअसल हसीना को बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल ने पांच मामलों में दोषी ठहराया है। आरोप है कि उन्होंने छात्र प्रदर्शनों को कुचलने के लिए हेलीकॉप्टर, ड्रोन और घातक हथियारों का इस्तेमाल किया। खासकर 5 अगस्त 2024 को ढाका के चांखरपुल में छह प्रदर्शनकारियों की हत्या का केस उन पर आरोप है। मुख्य अभियोजक ताजुल इस्लाम ने कहा, “हसीना ही इन अपराधों का केंद्र थीं।” हसीना ने फैसले को “राजनीतिक बदला” बताया और कहा कि उन्होंने स्थिति को नियंत्रित करने की पूरी कोशिश की थी। उनकी अवामी लीग ने विरोध में राष्ट्रीय हड़ताल का ऐलान किया। अब कानूनी पेच यह है कि हसीना की अपील के लिए उन्हें 30 दिनों में समर्पण करना होगा, वरना सजा लागू हो जाएगी।
सभी हितधारकों से सकारात्मक संवाद जारी रखेगा भारत
बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने भारत को चेतावनी दी कि हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान कमाल को आश्रय देना “अमित्रता का कार्य” होगा। उनका कहना है कि 2013 की भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि के तहत यह नई दिल्ली की “अनिवार्य जिम्मेदारी” है। मंत्रालय ने कहा, “ये दोषी मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए सजा काटें।” लेकिन भारत ने प्रत्यर्पण पर सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी। विदेश मंत्रालय (MEA) ने बयान जारी कर कहा, “हम बांग्लादेश के लोगों के हितों के प्रति समर्पित हैं, जिसमें शांति, लोकतंत्र और स्थिरता शामिल है। हम सभी हितधारकों से सकारात्मक संवाद जारी रखेंगे।” यह बयान हसीना के प्रत्यर्पण को टालते हुए द्विपक्षीय रिश्तों पर फोकस करता है।
भारत के पास इनकार करने के मजबूत आधार
कानून के नजरिये से देखें तो भारत के पास इनकार करने के मजबूत आधार हैं। सन 2013 की संधि (2016 में संशोधित) के तहत प्रत्यर्पण के लिए “दोहरी आपराधिकता” जरूरी है – अपराध दोनों देशों में दंडनीय होना चाहिए। हसीना के मामले में यह शर्त पूरी होती है, लेकिन संधि के अनुच्छेद 6 में “राजनीतिक अपराध” के लिए इनकार करने का प्रावधान है। हालांकि, हत्या व यातना जैसे गंभीर आरोपों को राजनीतिक नहीं माना जा सकता। फिर भी, अनुच्छेद 8 भारत को इनकार करने की छूट देता है। अगर अनुरोध “अन्यायपूर्ण, दमनकारी या सद्भावना से रहित” लगे। MEA के विशेषज्ञों का कहना है कि हसीना का केस राजनीतिक प्रतिशोध का शिकार लगता है, इसलिए भारत इसे खारिज कर सकता है।
हसीना का मामला “राजनीतिक उत्पीड़न” के दायरे में आता है
बहरहाल भारत का प्रत्यर्पण अधिनियम 1962 भी नई दिल्ली को मजबूत हथियार देता है। धारा 29 कहती है कि अगर अनुरोध तुच्छ, राजनीतिक या न्याय के हित में न हो, तो इनकार किया जा सकता। केंद्र को किसी भी समय कार्रवाई रोकने, वारंट रद्द करने या व्यक्ति को रिहा करने का अधिकार है। विशेषज्ञों का मानना है कि हसीना का मामला “राजनीतिक उत्पीड़न” के दायरे में आता है, इसलिए प्रत्यर्पण असंभव है। भारत ने पहले भी ऐसे मामलों में इनकार किया है, जैसे निर्भया केस में आरोपियों को मालदीव से लाने के मामले में पेच उलझा था।















