
प्रयागराज। हाल के वर्षों में यह बात साफ़ हो गई है कि टाइप 2 डायबिटीज़ सिर्फ़ एक मेटाबॉलिज़्म की दिक्कत नहीं है। यह प्रजनन स्वास्थ को भी प्रभावित करती है। डॉ. मधुलिका सिंह, फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट, बिरला फर्टिलिटी एंड आईवीएफ, प्रयागराज बताते हैं कि कई बार जो बात नज़रअंदाज़ हो जाती है, वह है खून में बढ़ती हुई शक्कर की मात्रा की परेशानी, गिरते टेस्टोस्टेरॉन का स्तर और पुरुषों की फर्टिलिटी के बीच छिपा हुआ यह त्रिकोण। असिस्टेड रिप्रोडक्शन (जैसे आईयूआई या आईवीएफ) पर विचार कर रहे दंपत्तियों के लिए इस त्रिकोण को समझना बहुत ज़रूरी है।
खून में शक्कर की मात्रा और शुक्राणु की सेहत
अनियंत्रित डायबिटीज़ वाले पुरुषों में रीप्रोडक्टिव क्षमता में स्पष्ट बदलाव देखे गए हैं। एक बड़े अध्ययन में, जिसमें 20,000 से ज़्यादा मोटापे से ग्रस्त पुरुषों और 1,300 से अधिक डायबिटिक पुरुषों को शामिल किया गया, यह पाया गया कि डायबिटीज़ वाले पुरुषों में वीर्य आयतन, शुक्राणु की संख्या और गतिशीलता उन पुरुषों की तुलना में कम थी जिन्हें डायबिटीज़ नहीं थी। एक अन्य रिसर्च में यह भी पाया गया कि डायबिटीज़ न सिर्फ़ शुक्राणु की संख्या और गतिशीलता को प्रभावित करती है, बल्कि शुक्राणु के डीएनए में विखंडन और एपिजेनेटिक बदलाव भी कर सकती है।
इसका मतलब यह है कि अगर खून में शक्कर की मात्रा नियंत्रण में नहीं है, तो कई बार फर्टिलिटी उपचार शुरू होने से पहले ही शुक्राणु की गुणवत्ता प्रभावित हो चुकी होती है।
टेस्टोस्टेरॉन: बीच की महत्वपूर्ण कड़ी
कम टेस्टोस्टेरॉन अक्सर टाइप 2 डायबिटीज़ के साथ पाया जाता है। एक अध्ययन में, जिसमें टाइप 2 डायबिटीज़ और मेटाबॉलिक सिंड्रोम वाले पुरुष शामिल थे, यह दिखा कि उनमें कम टेस्टोस्टेरॉन बहुत आम था और ऐसे पुरुषों का मेटाबॉलिक प्रोफ़ाइल और भी ख़राब पाया गया। वही रिसर्च, जिसमें वीर्य परिमापों को देखा गए, इस बात की ओर भी इशारा करती है कि डायबिटीज़ वाले पुरुषों में सामान्य पुरुषों की तुलना में औसतन टेस्टोस्टेरॉन के स्तर नीचे होते हैं।
टेस्टोस्टेरॉन कई तरीकों से फर्टिलिटी के लिए ज़रूरी है। यह अंडकोष के भीतर शुक्राणु बनने वाले वातावरण में सहायता करता है, यौन इच्छा और इरेक्शन पर असर डालता है, और साथी के साथ समय एवं अंतरंगता को प्रभावित करता है। जब टेस्टोस्टेरॉन कम होता है, तो सबसे उन्नत उपचार भी अपेक्षाकृत कम मज़बूत शुरुआत से काम शुरू करते हैं।
फर्टिलिटी केयर में यह त्रिकोण क्यों ज़रूरी है
जब कोई दंपत्ति फर्टिलिटी विकल्पों के बारे में सोचता है, तो आम तौर पर ध्यान वीर्य विश्लेषण (संख्या, गतिशीलता, संरचना) और महिला साथी के अंडकोष पर रहता है। लेकिन अगर पुरुष के मेटाबॉलिक और हार्मोनल स्वास्थ को नज़रअंदाज़ कर दिया जाए, तो उपचार के नतीजे कमज़ोर हो सकते हैं या बीच में अनपेक्षित बाधायें सामने आ सकते हैं। टाइप 2 डायबिटीज़ वाला पुरुष कभी‑कभी बॉर्डरलाइन रिपोर्ट के साथ आता है, लेकिन उसके पीछे कम टेस्टोस्टेरॉन, अधिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और अनियमित खून में शक्कर की मात्रा छिपी हो सकती है। इस त्रिकोण को पहचानने का मतलब है कि:
● डायबिटीज़ या प्री‑डायबिटीज़ वाले पुरुषों में शुरू से ही टेस्टोस्टेरॉन और वीर्य स्वास्थ की स्क्रीनिंग की जाए।
● मेटाबॉलिक अनुकूलन (आहार, व्यायाम, वज़न प्रबंधन और ग्लाइसेमिक नियंत्रण) पर सक्रिय रूप से काम किया जाए, जिससे टेस्टोस्टेरॉन स्तर और शुक्राणु परिमापों बेहतर हो सकें और कुल मिलाकर फर्टिलिटी प्लान मज़बूत बने।
● ध्यान सिर्फ़ इस बात पर न रहे कि “क्या हम आईवीएफ करा सकते हैं?”, बल्कि बातचीत इस दिशा में हो कि “पहले आपके शरीर को सर्वोत्तम संभव स्थिति में लाया जाए, ताकि किसी भी ट्रीटमेंट का परिणाम बेहतर हो सके।”















