
भारत के 11वें राष्ट्रपति के लिए भाजपा ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को राष्ट्रपति पद ऑफर किया था। पूर्व PM वाजपेयी के करीबी अशोक टंडन ने अपनी किताब ‘अटल संस्मरण’ में इसका खुलासा किया है।
इस किताब के मुताबिक भाजपा ने वाजपेयी से कहा था, ‘पार्टी चाहती है कि आपको राष्ट्रपति भवन चले जाना चाहिए। आप प्रधानमंत्री पद लाल कृष्ण आडवाणी को सौंप दीजिए।’ हालांकि, वाजपेयी ने इस प्रस्ताव को साफ ठुकरा दिया।
टंडन के अनुसार, वाजपेयी का मानना था कि बहुमत के आधार पर किसी लोकप्रिय प्रधानमंत्री का राष्ट्रपति बनना संसदीय लोकतंत्र के लिए गलत परंपरा स्थापित करेगा। वाजपेयी ने कहा था- मैं इस तरह के किसी कदम के पक्ष में नहीं हूं। मैं इस फैसले का समर्थन नहीं करूंगा।
अशोक टंडन की किताब ‘अटल संस्मरण’ वाजपेयी के जीवन, व्यक्तित्व, और राजनीतिक यात्रा पर आधारित है। किताब को प्रभात प्रकाशन ने छापा है। टंडन 1998 से 2004 तक वाजपेयी के मीडिया सलाहकार थे। वाजपेयी 1999 से 2004 तक, 5 साल का पूरा कार्यकाल पूरा करने वाले देश के पहले गैर-कांग्रेसी PM थे।

टंडन ने 17 दिसंबर, 2025 को वाजपेयी की बर्थ एनिवर्सरी पर ‘अटल स्मरण’ किताब लॉन्च की।
टंडन की किताब में बताया गया है कि वाजपेयी चाहते थे कि देश का 11वां राष्ट्रपति पक्ष-विपक्ष की सर्वसम्मति से बने। इसके लिए उन्होंने मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के सीनियर नेताओं को बातचीत के लिए आमंत्रित किया था। इस बैठक में सोनिया गांधी, प्रणब मुखर्जी और डॉ. मनमोहन सिंह शामिल हुए।
इसी बैठक में वाजपेयी ने पहली बार औपचारिक रूप से बताया कि NDA ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को अपना राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने का फैसला लिया। टंडन के अनुसार, इस घोषणा के बाद बैठक में कुछ देर के लिए सब मौन हो गए।
सोनिया गांधी ने चुप्पी तोड़ते हुए वाजपेयी से कहा, ‘हम लोग कलाम के नाम के सिलेक्शन को लेकर हैरान हैं। हालांकि, इस पर विचार करने के अलावा हमारे पास पास कोई ऑप्शन नहीं है। हम आपके प्रस्ताव पर चर्चा करेंगे और फिर फैसला लेंगे।’

‘वाजपेयी-आडवाणी में नीतिगत मतभेद, फिर भी रिश्ते खराब नहीं हुए’
अशोक टंडन ने अपनी किताब में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के संबंधों का भी जिक्र किया है। टंडन ने लिखा- कुछ नीतिगत मतभेदों के बावजूद दोनों नेताओं के रिश्ते कभी सार्वजनिक रूप से खराब नहीं हुए।
टंडन के अनुसार, आडवाणी हमेशा वाजपेयी को अपना नेता और प्रेरणा स्रोत बताते थे, जबकि वाजपेयी आडवाणी को अपना ‘अटल साथी’ बताते थे। किताब के अनुसार, वाजपेयी और आडवाणी की साझेदारी भारतीय राजनीति में सहयोग और संतुलन का प्रतीक रही। दोनों ने न केवल भाजपा का निर्माण किया, बल्कि पार्टी और सरकार, दोनों को नई दिशा दी।
संसद हमले के बाद सोनिया ने अटल से फोन पर खैरियत पूछी
टंडन ने अपनी किताब में 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए आतंकी हमले का भी जिक्र किया है। उस समय लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रहीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और वाजपेयी के बीच फोन पर बातचीत हुई थी। हमले के वक्त वाजपेयी अपने आवास पर थे और सहयोगियों के साथ टीवी पर सुरक्षाबलों की कार्रवाई देख रहे थे।
टंडन ने किताब में लिखा- हमले के दौरान वाजपेयी को सोनिया गांधी का फोन आया। उन्होंने वाजपेयी से कहा कि मैं आपकी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। इसके जवाब में वाजपेयी ने कहा- मैं सुरक्षित हूं। मुझे चिंता थी कि कहीं आप (सोनिया गांधी) संसद भवन में तो नहीं हैं। अपना ध्यान रखिएगा।















