क्या बांग्लादेश की कमान संभालेंगे तारिक रहमान? क्रिकेट जगत में आज भी गूंजता है कोको का नाम….पढ़ें इनसाइड स्टोरी

ढाका । बांग्लादेश की बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के बीच पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बड़े बेटे और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के कार्यकारी अध्यक्ष तारिक रहमान अपने वतन वापस लौट आए हैं। तारिक अब अपने दिवंगत पिता जियाउर रहमान और मां खालिदा जिया की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए फरवरी में होने वाले आम चुनावों की तैयारियों में जुट गए हैं। जहां ढाका की सड़कों पर तारिक का स्वागत एक भावी प्रधानमंत्री के रूप में हो रहा है, वहीं बांग्लादेश के गलियारों में उनके छोटे भाई अराफात रहमान कोको की यादें भी ताजा हो गई हैं, जिन्होंने राजनीति के बजाय क्रिकेट की सेवा को अपना लक्ष्य चुना था।

अराफात रहमान कोको एक ऐसे शख्सियत थे, जिन्होंने सत्ता के करीब होने के बावजूद सक्रिय राजनीति से दूरी बनाए रखी। उनका पूरा ध्यान बांग्लादेश में क्रिकेट के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने और युवा प्रतिभाओं को तराशने पर रहा। 2001 में बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड (बीसीबी) की डेवलपमेंट कमेटी के चेयरमैन के रूप में उन्होंने मुशफिकुर रहीम, शाकिब अल हसन और तमीम इकबाल जैसे खिलाड़ियों की उस पीढ़ी को तैयार किया, जिसे आज बांग्लादेश क्रिकेट का स्वर्ण युग कहा जाता है। कोको की दूरदर्शी सोच का ही परिणाम था कि 2004 में बांग्लादेश ने आईसीसी अंडर-19 वर्ल्ड कप का सफल आयोजन किया। सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने बोगुरा के शहीद चंदू स्टेडियम को अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाया। इसी मैदान पर 2006 में बांग्लादेश ने श्रीलंका जैसी दिग्गज टीम को हराकर विश्व क्रिकेट को अपनी उपस्थिति का अहसास कराया था। कोको ने ही मीरपुर के शेर-ए-बांग्ला स्टेडियम को आधुनिक क्रिकेट स्टेडियम में बदलने का प्रस्ताव दिया और ऑस्ट्रेलिया से इसके लिए मुफ्त आर्किटेक्चरल डिजाइन हासिल किया। आज बांग्लादेश में खेली जाने वाली प्रीमियर लीग (बीपीएल) का विचार भी सबसे पहले उन्होंने ही 2003 में रखा था।

क्रिकेट के प्रति उनके समर्पण का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके नेतृत्व में ओल्ड डीओएचएस स्पोर्ट्स क्लब ने अपने डेब्यू सीजन में ही प्रीमियर डिवीजन का खिताब जीता था। उन्होंने खिलाड़ियों के लिए पेशेवर कोच, फिजियो और बॉलिंग मशीन जैसी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराईं। तमीम इकबाल जैसे विस्फोटक बल्लेबाज की खोज का श्रेय भी कोको के क्लब विजन को ही जाता है। हालांकि, कोको का जीवन केवल उपलब्धियों तक सीमित नहीं रहा; उन्हें राजनीतिक उथल-पुथल के कारण कठिन समय भी देखना पड़ा।

2007 में उन्हें अपनी मां के साथ गिरफ्तार किया गया और बाद में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों का सामना करना पड़ा। स्वास्थ्य कारणों से पैरोल मिलने के बाद वे इलाज के लिए बैंकॉक और फिर मलेशिया चले गए। 24 जनवरी 2015 को महज 45 वर्ष की आयु में मलेशिया में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। आज जब तारिक रहमान बांग्लादेश की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू करने जा रहे हैं, तब देश को अराफात रहमान कोको का वह निस्वार्थ योगदान भी याद आ रहा है जिसने बांग्लादेश को क्रिकेट के वैश्विक मानचित्र पर स्थापित किया। कोको का जाना बांग्लादेशी खेल जगत के लिए एक ऐसी क्षति थी, जिसकी भरपाई आज भी मुश्किल नजर आती है।

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