अटल के सहारे ब्राम्हणों पर दांव, रिझाने की कोशिश

योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। राजनीति की क्षितिज पर एक बार फिर भाजपा के शलाका पुरुष एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की चर्चा होने लगी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं गत रविवार को अटल की कर्मभूमि लखनऊ में उन्हें याद करते हुए एक समृद्घ भारत की तस्वीर देश के जाने माने उद्योगपतियों के समक्ष पेश की। सूबे की सियासत में मोदी का अचानक बढ़ा अटल प्रेम इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। इसके पीछे कहीं ब्राम्हणों को साधने की कोशिश तो नहीं हो रही है। क्योंकि यह समाज इधर बीच संगठन एवं सरकार में दखल कम होने से नाराज बताया जा रहा है।
पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेयी की कर्मभूमि लखनऊ ही है
क्योंकि वह यहां लगातार पांच बार सांसद रहने के साथ ही देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। यहीं पर आयोजित गाउंड ब्रेकिंग सिरेमनी कार्यक्रम में पहुचे पीएम मोदी ने अटल का तरीफ करते हुए कहा कि वह कहते रहे हैं कि मँ एक ऐसा भारत देखना चाहता हू । जिसमें समृद्ध हो, सक्षमता हो और संवेदनशीलता हो। इससें गांव और शहरों के बीच खाई समाप्त हो जायेगी। इससे केंद्र और राज्य में तथा श्रम और पूंजी में, प्रशासन और नागरिक में फर्क नहीं रहेगा। इसके अलावा केन्द्र सरकार शहरों में बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए अटल अमृत योजना एवं बुजुर्गो के लिए अटल पेंशन योजना चलायी जा रही है।
सूत्रों की माने पीएम मोदी ने यं ही नहीं अटल का गुणगान किया है
उन्हें लगा है कि ब्राम्हण समाज में यहां नाराजगी है। यदि  ऐसा रहा तो लोकसभा चुनाव में नुकसान  हो सकता है। क्योंकि इस वर्ग की यूपी में करीब १० प्रतिशत आबादी है और ३० से अधिक लोकसभा सीटों इस समाज का दबदबा है। इन सीटों पर यह वर्ग हार जीत का समीकरण तय करता है। यूपी में भले ही ब्राम्हण समाज की आबादी 10 प्रतिशत हो लेकिन वह अपने दोगुने मतदाताओं को नियंत्रित करने की क्षमता रखता है। इसके अलावा इधर बीच सत्ता हो या फिर संगठन हर जगह पिछड़े एवं दलितों का सम्मान दिया जा रहा है इससे यह वर्ग स्वयं को उपेक्षित समझा रहा था। भाजपा अब अटल के सहारे इस वर्ग को आकर्षित करना चाहती है। क्योंकि यह समाज अटल बिहारी को अपना आदर्श मानता है औैर उनक ेनाम पर एक बार पिफर भाजपा के साथ आ सकता है।
राम मंदिर आंदोलन से फर्श से अर्श पर पहुंची भाजपा ब्राम्हण समाज को अपना बेस वोट बैंक मानती चली आ रही है। यह समाज भी हिदुत्व के नाम पर भाजपा के करीब बना रहा। यूपी के विधानसभा चुनाव में इस समाज ने जरूर सपा बसपा का ट्रायल किया, लेकिन वहां भी उसकी यारी ज्यादा दिन नहीं चली अंत: थक हार कर पुन: भाजपा के साथ आ गया। किंतु केन्द्र एवं प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद यह समाज उपेक्षित महशूस कर रहा है। इसका कारण सत्ता एवं संगठन में हमेशा अग्रिम पंक्ति में रहने वाला यह समाज आज सबसे निचले पायदान पर पहुंच गया है। मसलन इस समाज की अब न तो सत्ता में और न ही ंसगठन में तवज्जों दिया जा रहा है। रहीं सही कसर योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद पूरी हो गयी।
लोगों में यह संदेश चला गया कि यह सरकार तो एक खास वर्ग की है। अहम पदों पर इसका समाज की तैनाती भी कम हो गयी। भाजपा इस वर्ग को किसी भी कीमत पर दूसरे दलों के साथ नहीं जाने देना चाहती। इसीलिए भाजपा इसे जोडऩे का प्रयास कर रही है।

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