प्यार किसी रिश्ते का नाम नहीं बल्कि एक अहसास है। यह कब, क्यों, कैसे, कहां और किससे हो जाए इसकी न तो कोई गारंटी है और न ही कोई फॉर्मूला। जावेद की खता बस यही थी कि उसने प्यार किया था। प्रेम रूपी यह अहसास जावेद के लिए था, उसकी प्रेमिका के लिए भी। लेकिन मुल्क की सरहद शायद इस प्रेम को नहीं समझती। और समझे भी क्यों अखिर सरहद का अर्थ ही बंटवारा है, सीमा है।
सरहदों के पार प्यार करने की खता और उसकी सजा आपने फिल्मी पर्दे पर जरूर देखी होगी। तालियां बजाई होगी और गीत पर झूमे भी होंगे। लेकिन असल जिंदगी पर्दे से अलग है। यहां प्रेम की सजा मिलती है और हां, यहां फिल्मों की तरह अंत में सब ठीक नहीं होता। जावेद ने प्यार किया और प्यार की सजा के तौर पर उससे उसकी जिंदगी के बेशकीमती साढ़े ग्यारह साल छीन लिए गए।
मोहबब्त तोहमत बना दी गई और प्यार में देश से गद्दारी का रंग घोल दिया गया। वह आशिक था, लेकिन जमाने के दस्तूर ने उसे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के एजेंट के तौर पर सलाखों के पीछे धकेल दिया। रामपुर के जावेद की कहानी बस यही है। कहानी उन साढ़े ग्यारह वर्षों की जो उसने बिना किसी कुसूर के चारदीवारी में काटे।
एक आम गरीब घर में पैदा हुआ जावेद पढ़ाई बीच में ही छोड़ टीवी मरम्मत का काम सीख रहा था। जावेद अपने मां-बाप और भाई बहन के साथ रह रहा था। उस वक्त जावेद की उम्र करीब 18 साल थी। तभी 1999 में जावेद की जिंदगी में एक नया मोड़ आता है। वह अपनी मां को उनके रिश्तेदारों से मिलवाने भाई-बहन के साथ पहली बार कराची, पाकिस्तान जाने वाला था।
वर्ष 1999 में भारत-पाक के रिश्तों में पूरी तरह कड़वाहट आ चुकी थी। साल शुरू होते ही दोनों मुल्कों की सीमा पर जबरदस्त तनाव था। पाक में बैठे आतंकी पाकिस्तानी सेना की मदद से भारतीय सीमा में घुसपैठ कर रहे थे। पाक सेना सियाचिन पर कब्जा करने की साजिश रच रही थी और ऐसे ही वक्त में जावेद अपने परिवार के साथ पाकिस्तान जाने की तैयारी कर रहा था।
पाकिस्तान जाने से पहले जावेद की कराची में रिश्तेदार के घर कई बार फोन पर बातचीत होती थी। इसी दौरान फोन पर एक आवाज से उसे मोहब्बत हो गई। वो आवाज कराची में रहने वाली जावेद की दूर की रिश्तेदार मुबीना उर्फ गुड़िया की थी। गुड़िया की मोहब्बत में गुड्डू यानी जावेद पूरी तरह गिरफ्तार हो चुका था। वीजा की सारी कवायद पूरी करने के बाद आखिरकार फरवरी 1999 में जावेद कराची पहुंचता है। उसका गुड़िया से आमना-सामना होता है।
दोनों में प्यार बढ़ता है और तमाम कस्मे-वादों के बीच जावेद कुछ महीने बाद हिंदुस्तान लौट आता है। दोनों की प्रेम कहानी इसके बाद परवान चढ़ती है। खतों और फोन का सिलसिला चल पड़ता है। दोनों के प्यार में एक खास बात यह थी कि जावेद को उर्दू नहीं आती और गुड़िया को हिंदी। जावेद ने अपने दो दोस्तों ताज मोहम्मद और मकसूद से मदद मांगी। वो दोनों ना सिर्फ उसके लिए गुड़िया को उर्दू में खत लिखते बल्कि गुड़िया का उर्दू में लिखा खत भी पढ़ कर सुनाते।
इसी बीच 2001 में खास गुड़िया से मिलने गुड्डू दोबारा कराची जाता है। वो गुड़िया से वादा करता है कि जल्दी ही शादी कर वो उसे हिंदुस्तान ले आएगा। दोनों के घर वालों को भी इस रिश्ते से कोई एतराज नहीं था। गुड़िया से शादी का वादा कर गुड्डू रामपुर लौट आया। तभी 13 अगस्त 2002 को वो होता है जो न सिर्फ गुड्डू यानी जावेद और उसके घर वालों बल्कि पूरे रामपुर शहर को चौंका देता है।
उत्तर प्रदेश एसटीएफ यानी स्पेशल टास्क फोर्स की टीम जावेद और उसके दोनों दोस्तों ताज मोहम्मद और मकसूद को रामपुर से उठा लेती है। बताया जाता है कि उस उस वक्त जावेद दुकान पर टीवी मरम्मत कर रहा था। जावेद को पुलिस द्वारा उठाने के तीन दिन बाद अचानक अखबारों में खबर आती है कि आईएसआई एजेंट जावेद दो साथियों के साथ गिरफ्तार। यह भी बताया जाता है कि उनके पास से बरेली छावनी आर्मी फोर्स का नक्शा बरामद किया गया है।
ये खबर जावेद के घर वालों पर बम की तरह गिरती है, क्योंकि अब तक उन्हें लग रहा था कि जावेद को किसी ने अगवा कर लिया है। जावेद के मुताबिक, उसे कोई अंदाजा नहीं था कि उसे उठाने वाले लोग कौन हैं और कहां ले जा रहे हैं। उसे गाजियाबाद के नजदीक दो दिन तक रखा जाता है। इस दौरान उस पर तमाम जुल्म ढाए जाते हैं।
खाली पेपर पर दस्तखत कराए जाते हैं और तीसरे तिन पुलिस उसे लेकर रामपुर के गंज थाना पहुंचती है। तब पहली बार जावेद और उसके घर वालों को पता चलता है कि जावेद अगवा नहीं हुआ था बल्कि उसे सादी वर्दी में पुलिस उठा कर ले गई थी।
एसटीएफ पूरे तीन दिन तक जावेद को गैरकानूनी तरीके से हिरासत में रखती है पर उसकी गिरफ्तारी नहीं दिखाती। जावेद के खिलाफ देशद्रोह और देश के खिलाफ जंग समेत कई मामले दर्ज किए जाते हैं। इसके साथ ही उस पर बरेली, मेरठ, देहरादून और रुड़की में सेना से जुड़ी खुफिया जानकारी आईएसआई को देने का संगीन इल्जाम लगाया जाता है।
एसटीएफ जावेद के पास से हाथ से बना बरेली छावनी का नक्शा भी बरामदगी के तौर पर दिखाती है और दावा करती है कि वो नक्शा जावेद ने पाकिस्तान फैक्स किया था। जावेद पर इल्जाम लगा कि वो खत के जरिए कोड वर्ड में खुफिया जानकारी पाकिस्तान भेजता था। जावेद के जरिए कराची की जाने वाली कॉल को भी एसटीएफ ने बतौर सबूत पेश किया।
दरअसल जावेद के फंसने की दो अहम वजह थी। पहला रामपुर से लगातार कराची कॉल और दूसरा उर्दू में लिखा लव लेटर। पुलिस ने जिस कोड वर्ड का जिक्र किया वह J और M था। यानी जावेद और मुबीना। एक पाकिस्तानी लड़की से मोहब्बत करने की ऐसी सजा मिलेगी इसका अहसास जावेद और उसके घर वालों को अब पहली बार हो रहा था।
जावेद के वकील मोहम्मद जलालुद्दीन कहते हैं, ‘सबूत के नाम पर फोटोग्राफ नक्शा पेश किया गया, जबकि जावेद चौथी पास है।’ गिरफ्तारी के करीब डेढ़ महीने बाद जावेद पर एक और संगीन धारा जड़ दी गई। उस पर पोटा लगा दिया गया। वो कानून जो संदिग्ध आतंकवादियों को लेकर जांच एजेंसी को बेपनाह अधिकार देती थी। जावेद के पिता मोहम्मद शफीक कहते हैं, ‘पोटा लगते ही वकील एक लाख फीस मांगने लगे।’
रामपुर का गुड्डू अब कानूनी पन्नों में देशद्रोही और आईएसआई एजेंट था। पड़ोसी छोड़िए अपनों ने भी जावेद के घरवालों से किनारा कर लिया। जावेद का केस रामपुर से मुरादाबाद कोर्ट ट्रांसफर हो गया। अब हर पेशी पर पूरा परिवार रामपुर से मुरादाबाद जाता। घर में कमाने वाला बस एक बूढ़ा बाप और अदालत में तारीख पर तारीख। वक्त बीतता जा रहा था।
दूसरी तरफ सरहद पार की जिस मोहब्बत की वजह से जावेद आशिक से एजेंट बना था, वो मोहब्बत भी उससे दूर होती गई। मुबीना से जावेद के सारे रिश्ते लगभग टूट चुके थे। मुबीना को जावेद की गिरफ्तारी की खबर मिली भी या नहीं ये भी उसे नहीं पता था।
समय बीतता गया और इंसाफ की डगर लंबी होती चली गई। जावेद और साथियों के पास से जो डायरी और नक्शा मिला था उसकी जांच से साबित हो गया कि हैंडराइटिंग जावेद की नहीं है। पाकिस्तान के जिन फोन नंबरों का हवाला देकर जावेद को आईएसआई एजेंट बताया गया वो सारे नंबर भी पाकिस्तान में आम लोगों के निकले।
लिहाजा अदालत ने पूरे केस को नो एविंडेंस केस करार देते हुए 18 जनवरी 2014 को जावेद को रिहा कर दिया। लेकिन इस रिहाई से पहले जावेद को साढ़े ग्यारह लंबे साल जेल में बिताने पड़े। इस दौरान उसकी छोटी बहन बड़ी हो गई। तीन भाइयों की शादी हो गई। मां-बाप और उम्रदराज हो गए।
बेशक जावेद अब आजाद है। उसे रिहाई मिल चुकी है। पर उसकी जिंदगी के वो अनमोल साढ़े ग्यारह साल क्या कोई उसे लौटा पाएगा? वो बीता हुआ वक्त उसे कोई दे पाएगा? शायद नहीं। कभी नहीं।
जेल की सख्त दीवारों के पीछे साढ़े ग्यारह साल गुजारने के बाद भी जावेद अपनी गुड़िया को नहीं भूला है। वो उससे आज भी उतनी ही मोहब्बत करता है। लेकिन हां अब पाकिस्तान जाने की उसकी हिम्मत टूट चुकी है। उसने तय किया है कि वो अब कभी पाकिस्तान नहीं जाएगा। कभी नहीं।