
जब बारिश होती है तो हम सबको बहुत अच्छा लगता है क्योंकि हमारे लिए पानी बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण चीज है और जब पानी आसमान से बरसता है तो यह बात हमें सबसे अच्छी लगती है। लेकिन कभी-कभी यह पानी इतना ज्यादा बरस जाता है कि इससे तबाही मच जाती है। हमारे अंतरिक्ष में अरबों-खरबों ग्रह हैं लेकिन हम जिस ग्रह पर रहते हैं ऐसा कोई और ग्रह आज तक हमें नहीं मिल पाया है। हो सकता है की आने वाले समय में हमें पृथ्वी जैसा दूसरा ग्रह मिल जाए।
जो कुछ पृथ्वी पर होता है वैसी चीजें दूसरे ग्रहों पर तो बिल्कुल भी नहीं होती हैं। हम हमेशा पृथ्वी पर रहे हैं इसलिए पृथ्वी पर होने वाली सभी चीजें हमें नॉर्मल लगती हैं और दूसरे ग्रहों पर हो रही चीजें काफी हैरान कर देने वाली लगती हैं। इसीलिए हमारा उन ग्रहों पर रहना भी काफी मुश्किल है। हमारे सोलर सिस्टम में कुल 8 ग्रह हैं जिनमें बहुत सी अजीब चीजें होती रहती हैं। इन सभी ग्रहों में झीलें है पहाड़ है तूफ़ान भी आते हैं और बारिश भी होती है, लेकिन सब कुछ हमारी पृथ्वी से काफी अजीब और अलग होता है।
जैसे जुपिटर पर एक तूफान पिछले 350 सालों से चल रहा है और यह तूफान जितने एरिया में चल रहा है उसमें डेढ़ पृथ्वी समा जाएगी। इस तूफान में हवाओं की स्पीड 618 किलोमीटर प्रति घंटा है। हमारे ग्रह पर तो तूफान नॉर्मली एक दिन भी नहीं टिक पाता है जबकि जुपिटर पर 350 सालों से तूफान चल रहा है। इस तरह की स्थिति दूसरे ग्रहों पर नॉर्मल हैं। आज हम बात करेंगे हमारे यूनिवर्स के कुछ ग्रहों पर बारिश कैसी और किन चीजों की होती है।
हीरे
जुपिटर यानि बृहस्पति और सैटर्न यानी शनि ग्रह पर वह चीज आसमान से बरसती है जिसके लिए लोग यहां पर एक दूसरे की जान भी ले सकते हैं और कुछ भी कर सकते हैं। हर साल लगभग एक हजार टन हीरों की बरसात शनि ग्रह पर होती है। इसके अलावा यूरेनस और नेपच्यून प्लेनेट पर भी हीरें बरसते हैं।
बहुत ज्यादा तेज इलेक्ट्रिक तूफान मीथेन को कार्बन में बदल देते हैं जो जमा होकर ग्रेफाइट बन जाता है और प्रेशर ग्रेफाइट को हीरे में बदल देता है। ग्रेफाइट को हीरें में बदलने के लिए बहुत ज्यादा प्रेशर की आवश्यकता पड़ती है जो हमारी पृथ्वी पर नहीं है। लेकिन इन ग्रहों के वातावरण में जरूरत से ज्यादा प्रेशर मौजूद है। अगर किसी को हीरें चाहिए तो वह इन प्लेनेट पर जा सकता है।
सल्फ्यूरिक एसिड
हमारी पृथ्वी के साइज के लगभग बराबर का एक ग्रह है जिसे हम वीनस कहते हैं। अच्छा हुआ कि हम इस प्लेनेट पर नहीं रहते हैं क्योंकि यहां आसमान से पानी नहीं बल्कि तेजाब बरसता है। वीनस का वातावरण बहुत घना है। यहां का वातावरण इतना घना है कि वीनस प्लेनेट की सरफेस से आसमान नहीं दिखाई पड़ेगा तथा ना ही कोई दूसरे तारे दिखेंगे।
आपको यहां पर सिर्फ घने और खतरनाक तेजाब के बादल दिखाई देंगे। यहां एटमोस्फियरिक प्रेशर पृथ्वी से 93 गुना ज्यादा है। यहां सल्फ्यूरिक एसिड की बारिश होती है। वीनस ग्रह पर टेंपरेचर 479 डिग्री सेल्सियस होता है। इसलिए बारिश में बरसा हुआ सल्फ्यूरिक एसिड प्लेनेट की सरफेस तक पहुंचने पहुंचने से लगभग 25 किलोमीटर ऊंचाई पर ही वापस गैस बन जाता है।
लिक्विड मीथेन
शनि ग्रह का एक चांद टाइटन है। इसमें पृथ्वी की तरह बहुत सी चीजें होती हैं। जैसे यहां झीलें हैं। ज्वालामुखी हैं। यह सोलर सिस्टम का एकलौता चांद है जिसका अपना घना वातावरण है। यह पृथ्वी के अलावा इकलौती ऐसी जगह है जहां लिक्विड सतह पर स्थाई तौर पर पाया जाता है।
यहां बर्फीली मीथेन की तूफानी बारिश होती है। अजीब बात यह है कि पृथ्वी पर साल में कई बार बारिश होती है लेकिन यहां एक हजार सालों के बाद ही बारिश होती है। इस उपग्रह का टेंपरेचर माइनस 143 डिग्री सेल्सियस है। इसलिए मीथेन यहां की झीलों में लिक्विड फॉर्म में मौजूद होती है।
शीशा
हमारे सोलर सिस्टम से 63 प्रकाश वर्ष की दूरी पर “एचडी 189733 बी” नामक एक ग्रह है। यह प्लेनेट देखने में तो काफी खूबसूरत ब्लू कलर का नजर आता है लेकिन यह प्लेनेट काफी खतरनाक है। इसकी वजह पिघला हुआ कांच है।
यह प्लेनेट अपने सूरज के काफी पास मौजूद है। इस प्लेनेट का टेंपरेचर 982 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा है। इस प्लेनेट पर पिघले हुए कांच की बारिश होती है और यहां पर हवाएं भी बहुत तेज चलती हैं। यहां की बारिश में खड़े होने पर मौत बहुत ही खतरनाक होगी।
चट्टानों की बारिश
“कोरोट एक्सो 7 बी” एक प्लेनेट है जिसका साइज पृथ्वी से 2 गुना है। इस प्लेनेट का एक साइड हमेशा इसके सूरज की तरफ रहता है और इस साइड का टेंपरेचर 2326 डिग्री सेल्सियस तक रहता है। इसकी गर्मी चट्टान को भाप में बदल सकती है। इसीलिए जब यहां मौसम बदलता है तो पत्थरों की बरसात होती है।
आयरन
“ओग्ले टीआर 56 बी” एक एक्सो प्लेनेट है जो पृथ्वी से 4892 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। यहां पहुंचना नामुमकिन है। इसकी अपनी सूरज से दूरी हमारी पृथ्वी और सूरज के बीच की दूरी से 20 गुना कम है। इसी वजह से इसका टेंपरेचर इतना गर्म है कि यहां पिघले हुए लोहे की बरसात होती है।
इसकी सरफेस का टेंपरेचर 1704 डिग्री सेल्सियस है। इसके वातावरण में आपको बादल दिखाई देंगे लेकिन पानी के भाप के बादल नहीं बल्कि लोहे के एटम्स के बादल दिखाई देंगे। इसलिए यहां का मौसम काफी अजीब है।