
जब अर्जुन द्रोपदी से विवाह करके घर लाये तो उन्होंने सबसे पहले अपनी माता को यह शुभ समाचार दिया पर उनकी माता की एक गलती से अनर्थ हो गया कि उन्होंने अर्जुन और पांच पांडवों को कह दिया बेटा जो कुछ भी लाये हो पांचों भाई आपस में बांट लो। इसके बाद माता की आज्ञा का पालन करने के लिए द्रोपदी पर अधिकार पांचों पांडवों का बराबर- बराबर हो गया, जब द्रोपदी की सुहागरात थी तो आइए जानते है कि उस रात क्या हुआ कि द्रोपदी को कुत्तों को श्राप देना पड़ा।
उस रात द्रोपदी की सुहागरात के दिन जब वह बारी-बारी पांचों पांडवो के साथ अपना पत्नी धर्म निभा रही थी तो एक शर्त रखी गई कि जब एक पाण्ड के साथ द्रोपदी अपना पत्नी धर्म निभा रही हो तो दूसरे पांडव का कक्ष में आना वर्जित था।
इसकी निशानी ये रखी गई कि जब कोई पांडव कक्ष में हो तो वह अपना बटुख(चप्पल) कक्ष के बाहर निकले जिस से यह पता चल जाये कि कक्ष में कोई है।
इसी तरह अर्जुन के साथ द्रोपदी ने अपना पत्नी धर्म निभाया उसके बाद बारी आई युधिष्टिर की तब ही एक बहुत बड़ा अनर्थ हुआ कि बाहर से 2 कुत्ते आये और उनके बटुख उठा कर ले गए।
इतने में तीसरे पांडव आये और उन्होंने बटुख को ना पाया देख कक्ष में प्रवेश कर दिया। ओर उन्होंने दूसरे पांडव को एक साथ कक्ष में देख लिए इस पर द्रोपदी को बड़ा क्रोध आया।
उसी समय उस पांडव ने बटुख वाली बात बताई ओर उसी समय सारे पांडव महल के बाहर गए और उन्होंने देखा कि वो बटुख से कुत्ते खेल रहे है। कुत्तों की इस गलती के कारण उन्हें श्राप मिला कि आज के बाद तुम्हे खुले में सहवास करना पड़ेगा और दुनिया तुम्हे देखेगी।