एनसीआर की गाजियाबाद या नोएडा सीट आम आदमी पार्टी के लिए छोड़ी जा सकती है। अपना दल, वामपंथी पार्टिर्यों को भी एकाध सीट दी जा सकती है। यह भी संभव है कि छोटे दलों के एक-दो नेता बड़ी पार्टियों को सिंबल पर चुनाव लड़े।
गोरखपुर, फूलपुर व कैराना लोकसभा सीट तथा नूरपुर विधानसभा सीट पर विपक्षी दल महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़े थे। गोरखपुर व फूलपुर में कांग्रेस इस गठबंधन में नहीं थी लेकिन तमाम छोटे दलों ने सपा उम्मीदवार का समर्थन किया था।
कैराना व नूरपुर में कांग्रेस ने क्रमश: राष्ट्रीय व सपा प्रत्याशी का समर्थन किया था। कमोबेश इसी तरह के गठबंधन का स्वरूप लोकसभा चुनाव में बनाने की योजना है। गठबंधन से सबसे बड़े घटक सपा-बसपा ही रहेंगे। रालोद को जो सीट छोड़ी जाएगी वे पश्चिमी यूपी के जाट बहुल इलाकों की होंगी।
इनमें बागपत, मुजफ्फरनगर, कैराना व मथुरा जैसी सीट हो हो सकती है। वेस्ट यूपी में एनसीआर में आप को भी एक सीट देने पर विचार हो सकता है।
गोरखपुर में जिस तरह निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद को सपा ने प्रत्याशी बनाया, वैसा ही प्रयोग कुछ और सीटों पर हो सकता है। पीस पार्टी, अपना दल, वामपंथी पार्टियों समेत अन्य छोटे दलों के नेताओं को लोकसभा में पहुंचाने के लिए उन्हें दूसरे दलों के सिंबल पर चुनाव लड़ाया जा सकता है।
सपा के सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस को भी गठबंधन में शामिल रखने के प्रयास हो रहे हैं लेकिन यह इस पर निर्भर करेगा कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में इस साल के आखिर में होने वाले चुनाव को लेकर कांग्रेस का बसपा व सपा के प्रति क्या रुख रहेता है?