
नई दिल्ली )। बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण के मामले पर सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने साफ किया कि आधार कार्ड नागरिकता का सबूत नहीं माना जा सकता है। चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि आधार कार्ड फायदा पाने के लिए बनाया गया है। सिर्फ इसलिए कि किसी शख्स को राशन के लिए आधार दिया गया है, तो क्या उसे वोटर भी बना देना चाहिए। मान लीजिए कोई पड़ोसी देश का है और मजदूर के तौर पर काम करता है, तो क्या उसे वोट देने की इजाजत दी जाएगी।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि विशेष गहन पुनरीक्षण आम वोटर्स पर गैर-संवैधानिक बोझ डालता है, जिनमें से कई को कागजी काम में समस्या हो सकती है और नाम हटाए जाने का खतरा हो सकता है। सिब्बल ने कहा कि ये प्रक्रिया असल में लोकतंत्र पर असर डालती है। तब कोर्ट ने कहा कि ये तर्क कि ऐसा पुनरीक्षण पहले कभी नहीं किया गया निर्वाचन आयोग के अधिकार को कमजोर करने के लिए नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि वोटर लिस्ट से किसी भी नाम को हटाने से पहले सही नोटिस दिया जाना चाहिए।
उच्चतम न्यायालय ने केरल मामले की अगली सुनवाई 2 दिसंबर को, जबकि तमिलनाडु के मामले की सुनवाई 4 दिसंबर को करने का आदेश दिया है। पश्चिम बंगाल से जुड़े मामले की सुनवाई 9 दिसंबर को होगी।














