हिंदी सिनेमा में किवदंती बन चुके देवानंद को संसार से गुजरे हुए साल दर साल होते जा रहे हैं, लेकिन हिंदी सिनेमा में किए गए उनके काम को किसी ना किसी तरह से सिनेमा में दोहराया जा रहा है। हिंदी सिनेमा में हरदम कुछ नया करने के जज्बे की वजह से देवानंद हिंदी सिनेमा प्रेमियों के जेहन से कभी ना निकल पाएंगे। उनमें सिनेमा सृजन को लेकर जो ललक थी वो उन्हें अपने समकालीन सितारों से अलग करती है। देव आनंद अपने जीवन में तीन महिलाओं से बेहद प्यार करते थे, उनका पहला प्यार सुरैया, उनकी पत्नी कल्पना कार्तिक और बॉलीवुड स्टार जीनत अमान थी। देव आनंद को जीनत अमान से उनकी फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा में काम करने के दौरान प्यार हो गया था।
जानिए देवानंद का सिनेमा सृजन
देव जब अपने करियर के प्रारंभ में प्रभात फिल्मस में काम कर रहे थें, तो उन्होंने संघर्षरत गुरुदत्त को निर्देशक बनाने का वादा किया और अपने बैनर नवकेतन की दूसरी फिल्म बाजी से बतौर फिल्म निर्देशक मौका दिया। मानो उन्होंने अपने बैनर का भविष्य पहले से ही तय कर रखा था। वे लगातार इस कोशिश में रहे कि वे बतौर अभिनेता और निर्माता ही नहीं बल्कि एक निर्देशक कौ तौर पर भी कोई सफल कहानी कहें। वे इसी उधेड़बुन में थे अचानक से उनकी जिंदगी में आई मॉडल जीनत अमान ने उनके अंदर के सिनेमा सृजक को जागृत कर दिया।
रोमांस के बादशाह देव आनंद
किसी भी हालत में जीनत अमान को हिंदी सिनेमा में बतौर अभिनेत्री लाना चाहते थे लेकिन इसमें आड़े आ रही थी जीनत अमान की हिंदी पर कमजोर पकड़। देव इस कमी को कैसे दूर किया जाए इसी पॉइंट पर सोच रहे थे कि इसी दौरान अपनी काठमांडू यात्रा के दौरान उन्होंने हिप्पियों के एक समूह को देखा और वहीं से हरे रामा हरे कृष्ण की कहानी ने जन्म लिया। हालांकि इस फिल्म से उनका लक्ष्य जीनत अमान का सिनेमा में पदार्पण कराना था लेकिन इसके साथ ही वे इस फिल्म से बतौर निर्देशक भी सफलता की सीढिय़ा चढना चाहते थे।
फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास कमाल नहीं कर पाई
वे इससे पहले फिल्म प्रेम पुजारी का साल 1970 में निर्देशन कर चुके थे, लेकिन ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास कमाल नहीं कर पाई। उन्होंने इस फिल्म में एक एसी लडक़ी का जैनेश का किरदार जीनत को निभाने के लिए दिया जो बिल्कुल उनके जैसा ही था। उनकी टूटी फूटी हिंदी जैनेश के किरदार में काम कर गईं। इस फिल्म की कहानी का धारा भाई बहन थे। इसलिए उन्होंने फिल्म में जीनत को अपनी बहन का किरदार दिया।
देव और जीनत की खूब छपे किस्से
उन दिनों देव आनंद और जीनत अमान की नजदीकियों के किस्से फिल्मी मैगजीसं में निरंतर छप रहे थे। जबकि फिल्म में वे भाई बहन का किरदार निभा रहे थे। इसलिए संगीतकार सचिन देव बर्मन इस फिल्म के संगीत से अलग हो गए। फिर इस फिल्म के संगीत की कमान संभाली युवा राहुल देब वर्मन ने और फिल्म के संगीत ने इतिहास रच डाला। उस समय आध्यात्म की आड़ में नशे में डूब रहे देशी- विदेशी युवाओं की कहानी बयां करती इस फिल्म को दर्शकों ने हाथों हाथ लिया।
सिगनेचर ट्यून बना दम मारो दम का इंट्रो म्यूजिक
फिल्म के गीत संगीत को काफी सराहा गया। गीत दम मारो दम का इंट्रो म्यूजिक तो उस जमाने की सिगनेचर ट्यून बन गया। यहीं से देवानंद सिर्फ अभिनेता और निर्माता ही नहीं बल्कि बतौर निर्देशक हिंदी सिनेमा में स्वीकार्य कर लिए गए। देश परदेश (1978) से लेकर चार्जशीट (201 ) तक उन्होंने नवकेतन की अधिकतर फिल्मों का निर्देशन खुद ही किया।