इजराइल ने हमास से जारी जंग में किसी भी तरह के युद्ध विराम से इनकार कर दिया है। इसकी वजह से गाजा से बाहर निकलने के सारे रास्ते बंद हो चुके हैं। UN और कुछ दूसरे देश सीजफायर की मांग कर रहे हैं, ताकि गाजा पट्टी तक मानवीय मदद पहुंचाई जा सके। कई दिनों तक चली बहस और बाइडेन के इजराइल दौरे के बाद आज (21 अक्टूबर) राफा क्रॉसिंग खुल गई।
इजराइल के मुताबिक, इस बॉर्डर को पार करके विदेशी नागरिक भी गाजा से इजिप्ट जा सकते हैं, जिससे भगदड़ मचने की भी आशंका है। फिलहाल इस रास्ते से सिर्फ 200 ट्रकों के जरिए बमबारी में बेघर हुए लोगों तक मदद पहुंचाई जाएगी। राहत सामग्री से भरे कई ट्रक गाजा पहुंचने लगे हैं। इजराइली सेना यहां बमबारी कर रही है। इसके चलते राहत सामग्री गाजा तक नहीं पहुंच पा रही है। गाजा पट्टी तक आने और जाने का सिर्फ एक ही रास्ता है, जिसे राफा क्रॉसिंग कहा जाता है। इस पर इजराइल का कंट्रोल नहीं है।
राफा क्रॉसिंग का इतिहास
1 अक्टूबर 1906 को ऑटोमन शासकों और ब्रिटिश सरकार के बीच एक समझौता हुआ था। इसके तहत फिलिस्तीन और इजिप्ट के बीच एक सीमा रेखा तय करने पर सहमति बनी थी। यह बॉर्डर ताबा इलाके से राफा शहर तक था। इजिप्ट में उस वक्त ऑटोमन साम्राज्य था, जबकि फिलिस्तीन ब्रिटिश शासन के अधीन था।
1979 में इजिप्ट और इजराइल का शांति समझौता
1979 में इजिप्ट और इजराइल के बीच 1906 के समझौते को बहाल करने पर सहमति बनी। इसके तहत इजिप्ट को सिनाई प्रायद्वीप (सिनाई का इलाका) पर अधिकार मिल गया। वहीं इजराइल को गाजा पर कब्जा मिल गया। समझौते के बाद इजराइली सेना ने सिनाई छोड़ना शुरू कर दिया।
इजराइली सेना के सिनाई से निकलने के बाद राफा क्रॉसिंग को इंटरनेशनल बॉर्डर का दर्जा मिल गया। फिलहाल, गाजा और इजिप्ट के बीच जो राफा बॉर्डर है, वह पूरी तरह 1982 में शुरू हुआ। इसके लिए कैम्प डेविड समझौता हुआ था। हालांकि फिलिस्तीनी कई साल तक इजराइल के कब्जे वाली सीमा को लेकर असमंजस में थे।
1994 का गाजा-जेरिको एग्रीमेंट
फिलिस्तीन में पहले विद्रोह (अरबी भाषा में इसे इंतिफादा कहा जाता है) के बाद 1994 में गाजा-जेरिको एग्रीमेंट हुआ। इससे फिलिस्तीन को स्वायत्तता देने के लिए एक नया सिस्टम बना। इसके तहत ही यह तय हुआ कि राफा बॉर्डर का इस्तेमाल इजराइल और फिलिस्तीन दोनों कर सकेंगे। फिलिस्तीन की सत्ता पर काबिज PA (फिलिस्तीन अथॉरिटी) को सुरक्षा और जांच से जुड़े कुछ अधिकार मिल गए। हालांकि सच्चाई यह है कि बॉर्डर क्रॉसिंग से जुड़ी सिक्योरिटी का ज्यादातर अधिकार इजराइल के पास ही रहा।
इतना ही नहीं, इजराइल के पास यह अधिकार भी था कि वह किसी को राफा बॉर्डर पार करने की मंजूरी दे या न दे। बाद में गाजा-जेरिको एग्रीमेंट का यह हिस्सा अमान्य घोषित कर दिया गया और इसकी जगह ओस्लो-2 एग्रीमेंट हुआ। इस समझौते के एक साल बाद तब के इजराइली प्रधानमंत्री यित्जाक रेबिन की तेल अवीव में हत्या कर दी गई। रेबिन की हत्या एक कट्टरपंथी यहूदी ने की थी, जो इस समझौते के खिलाफ था।
सितंबर 2000 में एरियल शेरॉन अल अक्सा मस्जिद गए
साल 2000 में इजराइली नेता एरियल शेरॉन यरुशलम की अल-अक्सा मस्जिद पहुंचे। यह मुस्लिमों की तीसरी सबसे बड़ी मस्जिद है। यहूदियों का दावा है कि अल-अक्सा वास्तव में उनका पवित्र धार्मिक स्थल ‘टेम्पल माउंट’ है।
बहरहाल, शेरॉन की अल-अक्सा विजिट से फिलिस्तीन में जबरदस्त गुस्सा फैला और यही दूसरे विद्रोह की वजह बनी। इसके चलते राफा क्रॉसिंग एक बार फिर विवादों में फंस गई। 2001 में इजराइल ने फिलिस्तीनियों के राफा बॉर्डर से आने-जाने पर रोक लगा दी। इस पर फिर इजराइल का कंट्रोल हो गया। यह सिलसिला 8 सितंबर 2005 तक चला।
2005 में कुछ राहत
सितंबर 2005 में इजराइल और फिलिस्तीन अथॉरिटी के बीच इसी राफा बॉर्डर को बतौर रास्ता इस्तेमाल करने पर नया समझौता हुआ। इसे एग्रीमेंट ऑफ मूवमेंट एंड एक्सेस (AMA) कहा गया। हालांकि इस बार भी इजराइल को यह अधिकार मिला कि वह चाहे तो इस राफा बॉर्डर को बंद कर सकता है। इजराइल को यह हक भी हासिल हुआ कि वह चाहे तो किसी भी शख्स को आने-जाने से रोक भी सकता है।
फिर, 25 जून 2006 को एक नई घटना हुई। फिलिस्तीनी कट्टरपंथियों ने एक इजराइली सैनिक गिलाड शालित को किडनैप कर लिया। जवाब में इजराइल ने राफा क्रॉसिंग बंद कर दी। एक साल तक फिलिस्तीनी इसका इस्तेमाल नहीं कर सके।
कुछ वक्त बाद हमास का गाजा पट्टी पर कब्जा हो गया और इसकी वजह से 2005 का एग्रीमेंट (AMA) ठंडे बस्ते में चला गया। हमास की वजह से गाजा तक आने-जाने का कोई रास्ता ही नहीं बचा। हमास वास्तव में फिलिस्तीन अथॉरिटी का ही हिस्सा था। यह कट्टरपंथी और हिंसा की राह पर चलने वाला ग्रुप है और इसने खुद को फिलिस्तीन अथॉरिटी से अलग करने के बाद गाजा पर कब्जा किया था। इसके बाद 2009 तक इजिप्ट और गाजा के बीच का यह रास्ता खुलता और बंद होता रहा।
2011 का अरब विद्रोह
बात 2011 की है। उस वक्त होस्नी मुबारक इजिप्ट के राष्ट्रपति थे और वे हमास के सख्त खिलाफ थे। उनके खिलाफ देश में विद्रोह हुआ और उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी। इसके बाद राफा बॉर्डर फिर खुला, लेकिन यह राहत ज्यादा वक्त तक जारी नहीं रह सकी। उस वक्त मोहम्मद मोरसी इजिप्ट के राष्ट्रपति थे। उनकी ही सेना के जनरल अब्देल फतेह अल सीसी ने मोरसी का तख्तापलट कर दिया। खास बात यह है कि सीसी हमास के समर्थक थे और इसकी वजह से यह बॉर्डर फिर बंद हो गया।
कोरोना का दौर
2020 में जब कोविड का दौर आया तो इस बार हमास ने इस बॉर्डर को बंद कर दिया। खास बात यह रही कि फिलिस्तीन या हमास की तरफ से यह कदम उठाया गया। इससे पहले इजराइल यह काम करता रहा था। 2021 में जब कोरोना का असर कम होने लगा तो हमास और इजिप्ट ने काहिरा में एक मीटिंग की। इसमें राफा बॉर्डर फिर शुरू करने का फैसला किया गया।