भास्कर समाचार सेवा
काशीपुर। ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के उपरांत हृदय में जब भक्त और भगवान का नाता जुड़ जाता है, तभी वास्तविक रूप में भक्ति का आरंभ होता है। हमें स्वयं को इसी मार्ग की ओर अग्रसर करना है, जहां भक्त और भगवान का मिलन होता है। यह उद्गार सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज द्वारा वर्चुअल रूप में आयोजित भक्ति पर्व में व्यक्त किए गए। इसका लाभ मिशन की वेबसाइट के माध्यम द्वारा सभी भक्तों ने प्राप्त किया।
सतगुरु माता ने आगे कहा कि जीवन का जो सार तत्व है, वह शाश्वत रूप में यह निरंकार प्रभु परमात्मा है। इससे जुड़ने के उपरांत जब हम अपना जीवन इस निराकार पर आधारित कर लेते हैं तो फिर गलती करने की संभावनाएं कम हो जाती हैं। हमारी भक्ति का आधार यदि सत्य में है, तब फिर चाहे संस्कृति के रूप में हमारा झुकाव किसी भी ओर हो, हम सहजता से ही इस मार्ग की ओर अग्रसर हो सकते हैं। संत समागम में देश-विदेश से मिशन के अनेक वक्ताओं ने भक्ति के संबंध में अपने भावों को विचार गीत एवं कविताओं के माध्यम द्वारा प्रकट किया।