अयोध्या। अयोध्या के मंदिर मस्जिद विवाद की उच्चतम न्यायालय में सोमवार से शुरु हो रही सुनवाई की ओर सभी की निगाहें सुबह से ही लगी हुई हैं। दिल्ली में उच्चतम न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, दो अन्य न्यायमूर्ति की खण्डपीठ सुनवाई करेगी। इसके पूर्व में सुनवाई कर रहे मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा रिटायर्ड होने के बाद बनी नई पीठ सुनवाई करेगी।
अयोध्या के संत – धर्माचार्याें में आस जगी है कि कानूनी दांवपेंचों में 69 वर्षों से उलझे इस मसले का हल न्यायालय जल्द ही निकालेगा। श्रीरामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष एवं मणिराम दास छावनी के महंत नृत्य गोपाल दास ने हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत में कहा कि रामजन्मभूमि मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण बाबर ने करवाया था। तब देश की स्थिति दूसरी थी। अब मेयर, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक हमारे हैं। न्यायालय का हम सम्मान करते हैं। निर्णय से ही मंदिर बनेगा।
देश के हिन्दू समाज और संतों को यह विश्वास था कि मोदी के आने पर ही अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण होगा| दास ने यह दावा किया कि अगर मोदी अपने कर्तव्य से विमुख होते हैं तो संत समाज दबाव देकर राम मंदिर निर्माण के लिए बाध्य करेगा| जनता चाहती है कि मोदी के प्रधानमंत्रित्व काल में पुनः रामराज्य की स्थापना हो, राष्ट्रीय भावना, राष्ट्रहित का चिंतन हो। उन्होंने कहा कि जनता मोदी से आशान्वित है| संत-महात्माओं का भी मोदी को आशीर्वाद प्राप्त है। उन्होंने कहा कि अनेक सरकारों में आंदोलन हुआ, गोलियां खाए लोग जेलों में बंद हो प्रताड़ित हुए, फिर भी संकल्प से हटे नहीं और न आगे हटने वाले हैं| देश का संत समाज अब हर कीमत पर अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण चाहता है और इससे कम पर कोई समझौता नहीं होगा| देश समाज के विकास के साथ हम सब जुड़े हैं। मंदिर निर्माण होकर रहेगा।
विहिप के प्रांतीय मीडिया प्रभारी शरद शर्मा ने कहा कि हिंदू समाज राम मंदिर के लिए उच्चतम न्यायालय के फैसले का अनंतकाल तक इंतजार नहीं कर सकता। इसलिए विहिप गत पांच अक्टूबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से राजधानी दिल्ली में मिलकर उनसे सरकार से इस संबंध में कानून लाने के लिए कहने का अनुरोध कर चुका है। गत पांच अक्टूबर को संतों की उच्चाधिकार समिति की बैठक हुई थी। उसमें यह निर्णय हुआ कि उच्चतम न्यायालय के फैसले का अनिश्चितकाल तक इंतजार नहीं किया जा सकता है। मुकदमें से जुड़े विहिप पदाधिकारी कारसेवकपुरम् में रह रहे राम लला के सखा त्रिलोकी नाथ पाण्डेय का कहना है कि यदि कोई विशेष बात नहीं हुई और सुनवाई लगातार चली तो मुकदमें का फैसला जल्दी सुनाया जा सकता है। देशहित में इस मुकदमे का फैसला जल्द हो जाना चाहिए। राममंदिर के लिए आमरण अनशन कर सुर्खियों में आए तपस्वी जी की छावनी के महंत परमहंस दास ने कहा कि मंदिर के नाम पर हो रही राजनीति समाप्त होनी चाहिए। सरकार से उम्मीद की जा रही है। जल्द राम मंदिर का निर्माण किया जाए।
उत्तर प्रदेश शिया सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने दूरभाष पर कहा कि उन्होंने पिछले साल अगस्त माह में उच्चतम न्यायालय में शपथपत्र दाखिल कर विवादित धर्मस्थल को हिन्दुओं को सौंपने का आग्रह किया और लखनऊ में मुस्लिम बाहुल्य इलाके में अमन के नाम मस्जिद बनाने का आग्रह किया था। लेकिन कट्टरपंथी विभिन्न प्रकार से बाधा पहुंचाने का काम कर रहे हैं। रिजवी ने कहा कि बाबर के नाम से किसी भी मस्जिद का निर्माण देश में नहीं होना चाहिए। उन्होंने इस सम्बन्ध में राममन्दिर के निर्माण के लिए आमरण अनशन कर रहे महन्त परमहंस दास से मिलकर समर्थन दिया था। वे मंदिर निर्माण के लिए माहौल तैयार करने के लिए अयोध्या का दौरा समय-समय पर करते रहते हैं । दिगम्बर अखाड़े के महन्त सुरेश दास ने कहा कि हमारे महराज जी दिगम्बर अखाड़े के महन्त रहे रामचन्द्र परमहंस ने वर्ष 1950 में ने फैजाबाद की जिला अदालत में याचिका दाखिल कर रामलला के दर्शन पूजन की अनुमति मांगी। तब से मुकदमा चलता रहा। अब हिन्दुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए।
राममंदिर निर्माण के लिए मुहिम चलाने वाले मित्र मंच के प्रदेश अध्यक्ष बबलू खान ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में ज्यादा लंबा न खींचा जाए और मंदिर के पक्ष में जल्द फैसला आए| इसके लिए हम दरगाह पर अल्लाह से दुआ करने गए हुए थे। यह विवाद विनाश का कारण है। हम सब भगवान के वंशज हैं। अब हम लोग अपने देश का विनाश नहीं चाहते हैं। अब भगवान श्री राम टेंट से निकल कर भव्य मंदिर में पहुंचें| बबलू खान ने बताया कि दीपावली पर्व के बाद राम जन्मभूमि कार्यशाला में रखे तराशे गए पत्थर पर लगी काईयों को साफ करने का कार्य सैकड़ों मुस्लिम करेंगे|राम जन्मभूमि न्यास के वरिष्ठ सदस्य पूर्व सांसद रामविलास दास वेदान्ती ने कहा कि 2019 से मंदिर निर्माण शुरू हो जाएगा। नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनेंगे। बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी ने कहा कि कोर्ट में हमारा कोई दबाव नहीं है। सुप्रीम कोर्ट जब चाहे तब इस मसले का फैसला सुनाए। सभी को कोर्ट का सम्मान करना चाहिए। राम जन्मभूमि मंदिर मामले के हिंदू पक्षकार महंत धर्मदास ने कहा कि बहुत जल्द ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी राम मंदिर के पक्ष में आने वाला है। जैसे ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला आएगा वैसे ही तीव्र गति पर श्री राम मंदिर का निर्माण शुरू हो जाएगा। न्यायालय सुबूत के आधार पर ही फैसला सुनाएगी और जहां पर मंदिर बनाया जाना है, वह स्थान राम जी का है।
आज तय होगी सुनवाई की रूपरेखा
रामलला विराजमान की ओर से एडवोकेट ऑन रेकॉर्ड विष्णु जैन बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक 29 अक्टूबर को सुनवाई के लिए मामला लिस्ट हुआ है। सोमवार को तय हो पाएगा कि सुनवाई की रूपरेखा क्या होगी यानी सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान ये साफ हो जाएगा कि चीफ जस्टिस की बेंच ही मामले की सुनवाई करेंगे या कोई और बेंच गठित किया जाएगा।
जमीन किसकी इसकी होनी है सुनवाई
अयोध्या के राममंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। अयोध्या की जमीन किसकी इस पर अभी सुनवाई की जानी है। लेकिन मामले में एक सीमित सवाल को संवैधानिक बेंच भेजा जाए या नहीं इस पर फैसला आया था दरअसल, मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दलील दी गई थी कि 1994 में इस्माइल फारुकी केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में कहा है कि मस्जिद में नमाज पढना इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं है और ऐसे में इस फैसले को दोबारा परीक्षण की जरूरत है और इसी कारण पहले मामले को संवैधानिक बेंच को भेजा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर को फैसले में कहा था कि मामले को संवैधानिक बेंच रेफर नहीं किया जाएगा ऐसे में अब मुख्य मुद्दे की सुनवाई शुरू होगी। सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से कहा था कि मामले को साक्ष्यों के आधार पर परीक्षण किया जाएगा न कि धार्मिक महत्व के आधार पर देखा जाएगा।
मुख्य मामला जमीन विवाद
राम मंदिर के लिए होने वाले आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दिवानी मुकदमा भी चला। टाइटल विवाद से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई हाई कोर्ट ने दिए फैसले में कहा था कि तीन गुंबदों में बीच का हिस्सा हिंदुओं का होगा जहां फिलहाल रामलला की मूर्ति है। निर्मोही अखाड़ा को दूसरा हिस्सा दिया गया इसी में सीता रसोई और राम चबूतरा शामिल हैं बाकी एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया। इस फैसले को तमाम पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए यथास्थिति बहाल कर दिया। इस मामले में टाइटल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई और तमाम दस्तावेज के ट्रांसलेंशन किए गए। लेकिन पहले दिन ही सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकारों के वकील कपिल सिब्बल ने ये दलील देकर विवाद खड़ा कर दिया था कि सुनवाई में इतनी जल्दी क्यों है। सुनवाई जुलाई 2019 के बाद होनी चाहिए। उनका इशारा आम चुनाव के बाद सुनवाई करने को लेकर था। सिब्बल का कहना था कि ये साधारण जमीन विवाद नहीं है। वहीं हिंदू पक्षकारों के वकील हरीश साल्वे की दलील थी कि मामला सात साल से पेंडिंग है। कोर्ट को इससे मतलब नहीं होता कि बाहर क्या हो रहा है और जुलाई 2019 तक सुनवाई टालने से गलत संदेह जाएगा। बहरहाल सुप्रीम कोर्ट में जमीन विवाद पेंडिंग है चूंकि मामले को संवैधानिक बेंच रेफर नहीं किया गया ऐसे में सीधे अब जमीन विवाद पर सुनवाई शुरू होगी।
सोमवार को सुनवाई में क्या होगा जानें इन 10 पॉइंट्स में.
1. अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले में सोमवार को क्या होगा ? क्या सोमवार को मामले की अंतिम सुनवाई की रूपरेखा तय हो सकती है?
2. क्या ये प्रचलित परंपरा है कि ऐसे संवेदनशील मामलों में संबंधित धर्म से संबंध रखने वाले जज भी बेंच का हिस्सा होते है? जैसे लखनऊ बेंच में?
3. क्या नई बेंच इस मामले को फिर से पुराने बेंच के सामने भेज सकती है? पुरानी बेंच से केवल जस्टिस दीपक मिश्रा रिटायर्ड हुए है जबकि दो जस्टिस अभी भी कार्यरत है ? मामले को फिर से जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर के पास भेजा जाए और एक नए जज को इस बेंच में इसमें शामिल किया जाए जैसे CJI खुद?
4. नई बेंच बनने से क्या इस भूमि विवाद में सुनवाई के नए एंगल भी तय किए जा सकते हैं? जैसे इस मामले को संविधान पीठ में सुनवाई के लिए भेजे जाने पर विचार किया जा सकता है?
5. अगर यही बेंच मामले की सुनवाई करेगी तो फैसला नवंबर 2019 से पहले आ जाएगा क्योंकि CJI जस्टिस रंजन गोगोई नवंबर 2019 में रिटायर्ड होंगे?
6. इस मामले का असर 2019 के लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा तो क्या माना जाए कि कोर्ट से इस बाबत गुहार लगाई जा सकती है कि मामले की सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद करें?
7. क्या मुस्लिम पक्ष की तरफ से मामले को संविधान पीठ में भेजे जाने की फिर से मांग की जाएगी?
8. अगर फैसला 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले नहीं आता तो क्या सरकार अध्यादेश ला सकती है?
9. लखनऊ हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई में 90 दिनों का वक्त लगा था, अगर इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट रोजाना करता है तो कितना समय लगेगा?
10. अगर पुरानी बेंच के सामने ये मामला फिर जाता है तो क्या ये हितों का टकराव जैसा नही हो जाएगा जैसे जस्टिस अब्दुल नजीर ने कहा था कि इस्माल फारुखी के फैसले को पुनर्विचार के लिए संविधान पीठ में भेज जाना चाहिए?