वरुण सिंह
लालगंज/आजमगढ़ । उर्दू यहां की जबान अदालती अल्फाज आज भी उर्दू हैं । इसी उर्दू के लिए हफ्तों भूख हड़ताल करने वाले जय बहादुर सिंह के संघर्ष से इंदिरा गांधी ने इसे राष्ट्र की दूसरी भाषा का दर्जा दिया था। उक्त बातें वरिष्ठ अधिवक्ता हामिद अली एडवोकेट ने पूर्व प्रधान मिर्जा हकीम मकबूल बेग की स्मृति में बैरीडीह मे शब्बीर मेमोरियल स्कूल की ओर से आयोजित मुशायरे के उद्घाटन के अवसर पर कहीं।
मुशायरे का आरंभ समाज सेवी आरिफ नसीम के द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया । अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया गया। अध्यक्षता मास्टर अलीम पूर्व ब्लॉक प्रमुख ने तथा संचालन आरिफ सिद्दीकी ने किया। इसके बाद आरंभ हुआ मुशायरा देर रात तक चलता रहा। कई प्रदेशों से आए शायरों ने अपने कलाम से उपस्थित जनों की खूब वाह वाही लूटी जिसमें आगरा से आए अमान अकबराबादी ने जब पढ़ा कि ‘मां का दिल देखकर जब मचलने लगा आसमां अपनी गर्दिश बदलने लगा। एक मासूम की एड़ियों के सबब। रेत से आबे जमजम निकलने लगा।’ पढ़ा तो मुशायरा अपनी शान मेंं आचुका था और उपस्थित श्रोताओं ने खूब वाह वाह किया।
नसीम साज़ ने नात पाक पढ़ी कि ‘कुफ्रो बिदअत के अंधेरे जब जहां मे छा गए, रोशनी हाथों की ताकत तब नबी दिखा गये। आपके जितने सहाबा थे महकते फूल थे, गुलशने इंसानियत को सब के सब महका गए। थाम लो अल्लाह की रस्सी को मेरे उम्मती, जाते-जाते यह शहे बतहा हमें बतला गये।’
बैरीडीह के उभरते शायर मु. आमिर ने परदेशियों पर आधारित शेर ऐ मेरी जान मेरी तमन्ना, अब तेरी याद आने लगी है। मैं तड़पता हूं परदेश में अब, जिस्म से जान जाने लगी है। मऊ से आए शायर इम्तियाज साकिब ने पढ़ा क्या दोहराएं दर्द भरे अफसाने हम। इसके साथ ही रुबीना अयाज़, चांदनी शबनम, अल्ताफ जिया हसन काजमी हाशिम फिरोजाबादी, मैकश आजमी, शाह खालिद, सुहेल उस्मानी, अचानक मऊवी, इम्तियाज साकिब, मनमोहन मिश्रा, रूबिया अयाज, जमशेद कमर ने भी अपने कलाम पेश किए।
प्रबंधक रईस अहमद चुन्नू व जनरल सेक्रेट्री अशरफ बेग, मुख्य अतिथि तनवीर अली व प्रमुख अतिथि शेख सलाहुद्दीन दीदारगंज तथा मोहम्मद कासिम, नूर आलम प्रधान, एहतेशाम सम्मू, डा अली अख्तर, अशहद शेख, सादिक गुड्डू, मिर्जा असलम, मिर्जा सलीम, अबूजर, तकवीम अहमद उर्फ भुट्टो, इसरार अहमद महा प्रधान, इम्तियाज गुड्डू, मिर्जा एहसान, मुस्तकीम,नसीम अहमद मिस्त्री आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।