बहराइच : डोंगल के जरवल ब्लाकों मे हो रहा अजब-गजब का खेल !

दैनिक भास्कर ब्यूरो

जरवल/बहराइच। मुख्यमंत्री जी जरा अपनी नजरे विकास खण्ड जरवल में भी इनायत कर ले तो लाखों के नही करोणो रुपयों के सरकारी धन को किस तरह सफ़ाचट्ट किया जा रहा है कि पूंछो न जानकारों की माने तो ग्राम पंचायत में भुगतान के लिए लगाए जा रहे ग्राम प्रधान व पंचायत सचिव के डोंगल को जरवल ब्लाक में प्राइवेट कर्मी के द्वारा अपडेट किए जाने का मामला प्रकाश में आया है। प्राइवेट कर्मी बिल वाउचर बनाकर डोंगल से भुगतान करने की प्रक्रिया से ब्यवस्था पर सवाल उठ रहा है। जबकि ग्राम पंचायतो के पंचायत सचिवालय में कंप्यूटर लगाकर जनता को सुविधाएं देने का दावा खोखला साबित हो रहा है।

प्रधान जी कर रहे पंचायत सचिव से गलबहियां प्राइवेट आदमी निकाल रहा भुगतान

जहाँ से ग्राम प्रधान व पंचायत सचिव को वहाँ पर मौजूद कम्प्यूटर ऑपरेटर से ही सारे भुगतान करवाना चाहिए। लेकिन ग्राम प्रधान व पंचायत सचिवों की गलबहियां इसमें रोड़ा बन चुकी है।जिस पर शासन व प्रशासन का अंकुश लगना चाहिए। सूत्रों की माने तो जनपद की अन्य विकास खंडों की कौन कहे केवल जरवल विकास खण्ड के 78 ग्राम पंचायतों में कराए जा रहे विकास कार्यों के भुगतान प्रक्रिया एक प्राइवेट कर्मी द्वारा चलाए जाने की चर्चा है।ग्राम पंचायत प्रधान और पंचायत सचिव का डोंगल लगाकर प्राइवेट कर्मी द्वारा भुगतान करने से ग्राम पंचायत में वित्तीय घोटाले की आशंका प्रबल हो रही है। चर्चा है कि संदीप नामक ब्यक्ति सभी ग्राम पंचायतों के डोंगल का संचालन कर पेमेंट प्रक्रिया का संचालन करता है।

प्रधान जी कर रहे पंचायत सचिव से गलबहियां प्राइवेट आदमी निकाल रहा भुगतान

भुगतान में मनमानी का आलम यह है कि जो डोंगल ग्राम प्रधान के पास रहना चाहिए वह किसी और के पास रहता है। ग्राम प्रधान और सचिव का फोन आते ही कहीं भी कम्प्यूटर में डोंगल लगाकर भुगतान कर दिया जाता है। जबकि प्रदेश सरकार ने ग्राम पंचायत सचिवालय में लगे कम्प्यूटर से ही ग्राम पंचायतों के विकास कार्यों का भुगतान करने का आदेश है,जिससे सचिवालयों में लगे कंप्यूटर के द्वारा ई-स्वराज पोर्टल को प्रभावी किया जाए। परन्तु एसा होता नही।

डीपीआरओ का नही उठा फोन

जरवल।डीपीआरओ उमाकान्त को इस संबंध में कई बार फोन मिलाया गया लेकिन उनका फोन नही उठा। काँश बिल बाउचर पर ऑडिटर साहब की तीसरी नेत्र खुल जाती है। वहीं फर्जी बिल बाउचर का खेल का यहाँ बहुत पुराना रिस्ता है। तभी तो ऑडिटर को अडिड के समय भी उनकी तीसरी नेत्र भी नही खुलती।चर्चा है कि आडिड के समय अपने कोढ़ को छिपाने के लिए अधिकारी ऑडिटर की खूब आवाभगत तो करते ही है। ऊपर से मोटा सुकरना जिससे वित्तीय अनियमितता के सारे एब को हरी झण्डी दिख जाती हैं।

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