बहराइच l कैसरगंज रोज़ा एक ऐसी बदनी इबादत है जिसकी बरकत से आदमी जाहिरी गुनाहों के साथ साथ बातनी गुनाहों से अपने आप को बचा सकता है। अगर कोई व्यक्ति ज़ाहिर तौर पर रोज़ा हो लेकिन अपने आप को गुनाहों से ना बचा सके तो उसको रोज़ा रखने का मक़सद हासिल नहीं हो सकता। इसीलिए हमारे पैगंबर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया: जो कोई झूठी और बुरी बात कहना और उसपर अलम करना ना छोड़े तो अल्लाह तआला को उसके भूखा, प्यासा रहने की कोई जरूरत नहीं।
मौलाना शम्से आलम मिस्बाही प्रेजिडेंट एमएसओ
अगर आप रोजा रख रहे हैं तो अपने आप को झूठ, गीबत, चुगली, नमाज़ कज़ा करना, फिल्में ड्रामें देखना, बद निगाही करना, लोगों को धोका देना, दूसरों की मां और बहनों पर नजरें जमाना, मोबाइल के जरिए फहश वीडियो देखना इन तमाम बुराइयों से खुद को बचाना बहुत ज़रूरी है नही तो आप के रोज़ा रखने का जो मक़सद है वह हासिल नहीं होगा।
रब तबारक व तआला को ऐसे रोजेदार के रोज़ा की कोई जरूरत नहीं है। जो अपने आप को बुराइयों से ना बचा सके। इसलिए हमारी और आपकी जिम्मेदारी है कि अगर हम और आप रोजा रख रहे हैं तो जाहिरी बुराइयों के साथ-साथ बातनी बुराइयों से भी बचें।अल्लाह तआला हम सब रोजेदारों को नेक निय्यति के साथ रोज़ा रखने और तमाम बुराइयों से बचने की तौफीक दे।