बरेली। ग्राम पंचायतों में मनरेगा के अलावा राज्य और केंद्र से मिलने वाले बजट के ऑडिट में प्रधानों से बड़े पैमाने पर धन उगाही का मामला सामने आया है। मनरेगा ऑडिट के नाम पर प्रधानों और पंचायत सचिवों से रिकॉर्ड ले लिए गए। फिर गबन दिखाकर ऑडिटरो ने उन पर पैसा देने का दबाव बनाया। जब मनमानी रकम नहीं मिली तो उन ग्राम पंचायतों का ऑडिट नहीं किया गया। ग्राम विकास अधिकारी ने अपने रिकॉर्ड वापस मांगे तो उन पर एफआईआर दर्ज कराने के साथ हत्या की भी धमकी दी गई। ग्राम विकास अधिकारी समेत ग्राम प्रधानों ने डीएम से मिलकर इस मामले में कार्रवाई की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि ग्राम पंचायतों में ऑडिट के नाम पर कुल निकासी धन बीस प्रतिशत तक वसूली हो रही है। इस मामले की जांच सीडीओ को सौंपी गई है।
ऑडिट करने के नाम पर लिए गए थे रिकॉर्ड, सीडीओ ने शुरू कराई जांच
ग्राम विकास अधिकारी विपिन पांडे का कहना है कि वह भदपुरा ब्लॉक के कुंवरपुर तुलापट्टी, बरुआ साहबगंज, खाई खेड़ा और बहादुरपुर करोड़ ग्राम पंचायतों में कभी तैनात नही रहे। फिर भी ऑडिटर ने ऑडिट में उन पर रिकवरी दिखाई, जो पूरी तरह से फर्जी है। उनकी तैनाती बिथरी चैनपुर ब्लॉक में है। यहां भी उन पर पत्नी की फर्म से माल सप्लाई करने का झूंठा आरोप लगाया गया। उन्होंने कभी भी पत्नी की फर्म से किसी ग्राम पंचायत में कोई सामान सप्लाई नही कराया। रिकार्ड में चेक किया जा सकता है।
नौ ग्राम प्रधानों ने डीएम से मिलकर खोली मनरेगा ऑडिट में भ्रष्टाचार की पोल
ग्राम विकास अधिकारी का कहना है कि उनकी पत्नी का फरीदपुर में व्यापार है। जबकि उनकी तैनाती ब्लॉक बिथरी चैनपुर में है। उनके खिलाफ साजिश रची जा रही है। विभागीय अधिकारी और ऑडिट टीम के कुछ लोग उनके पीछे पड़े हैं ताकि वह नौकरी न कर सकें। वीडीओ का कहना है कि मनरेगा में जिला समन्वयक और ग्राम पंचायत अधिकारी को वहां होने वाले कामों मे आपूर्ति होने वाले सामान खरीदने की जिम्मेदारी शासन ने तय की है। फिर भी इस मामले में उन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
प्रधानों ने लगाए अवैध वसूली के आरोप
दूसरी ओर ब्लॉक आलमपुर जाफराबाद की ग्राम पंचायत टाडा के प्रधान भूपेंद्र सिंह, ग्राम पंचायत करपिया के प्रधान भगवानदास, ग्राम पंचायत दलेलपुर की प्रधान रामकली, ग्राम पंचायत सरदारनगर के प्रधान संजय चौहान और ग्राम पंचायत सूरजपुर परोशिया ब्लॉक भदपुरा के प्रधान भगवानदास के अलावा ग्राम प्रधान किरण और रविंद्र सिंह ने भी मनरेगा समेत अन्य कामों में ऑडिट के नाम पर अवैध वसूली के आरोप लगाए। जिलाधिकारी ने इस पूरे मामले की जांच सीडीओ को सौंप दी है।
प्रधानों के आरोप पूरी तरह से निराधार
ऑडिटर गुरदेव सिंह का कहना है कि जब ग्राम पंचायतों में रिकॉर्ड नहीं मिलता है तो उनको पूरा अधिकार है की उतनी रकम को गबन माने। वह जब किसी ग्राम पंचायत में ऑडिट करने जाते हैं तो बैंक स्टेटमेंट और अन्य रिकॉर्ड ओरिजिनल न लेकर फोटो स्टेट कॉपी ही लेते हैं। अगर कोई रिकॉर्ड ओरिजिनल लेते हैं तो उसे वापस किया जाता है। वित्त लेखा अधिनियम 8 से सभी एडिटर बंधे हुए हैं। उनकी ऑडिट रिपोर्ट विधानसभा में भी पटल पर रखी जाती है। इसलिए वह कोई ऐसा काम नहीं करते हैं जिसमें गैर जिम्मेदारी झलकती हो। प्रधानों ने जो भी आरोप लगाए हैं, वह निराधार है