बरेली। यूं तो लोकसभा चुनाव में अभी नौ महीने से ज्यादा का वक्त है। मगर, बरेली और आंवला में राजनीतिक सरगर्मियां अभी से तेज हैं। दोनों ही सीटों पर वर्तमान में भाजपा का कब्जा है। दोनों ही वर्तमान सांसदों की अगले चुनाव के लिए भाजपा से टिकट की तगड़ी दावेदारी भी हैं। लेकिन भगवा दल में कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। सांसद संतोष गंगवार यूं तो बरगद के पेड़ की तरह हैं, जो आासनी से किसी के हिलाए नहीं हिलते। 2024 में उनके चुनाव लड़ने की संभावना भी पूरी तरह से कायम है, लेकिन राजनीतिक हलकों में उनकी उम्र और स्वास्थ्य को लेकर भी चर्चाओ का बाजार गरम है। भाजपा के युवा नेताओं की उम्मीदें उनकी इसी कमजोरी और मोदी लहर पर टिकी हैं।
अभी भाजपा में टिकट के लिए सिर्फ एक ही नाम की चर्चा, बाकी दावेदार छुपे रुस्तम
झुमके के शहर में भाजपा से लोकसभा टिकट के लिए अभी तक फिलहाल एक ही नाम की चर्चा है। वह नाम है पूर्व केंद्रीय मंत्री और वर्तमान सांसद संतोष गंगवार का। उनके समर्थक भी अब तक आश्वस्त हैं कि पूर्व केंद्रीय मंत्री इस बार भी सभी बाधाओं को पार करते हुए दिल्ली पहुंचेंगे। मगर, पार्टी के कुछ युवा टिकट दावेदार छुपे रुस्तम के तौर पर लखनऊ से लेकर दिल्ली, नागपुर और गुजरात तक अपनी लॉबिंग तेज करने में जुटे हैं। आरएसएस और भाजपा में मजबूत पकड़ रखने वाले एक युवा भाजपा नेता ने बरेली से लोकसभा टिकट की मजबूत दावेदारी पार्टी हाईकमान के समक्ष की है। संघ नेतृत्व भी इन युवा नेता को बड़े पद पर देखना चाहता है। दिल्ली और नागपुर में इन युवा भाजपा नेता की पकड़ बहुत मजबूत मानी जाती है।
लखनऊ से लेकर दिल्ली, नागपुर और गुजरात तक दौड़ लगा रहे हैं राजनीतिक तिकड़बाज
कोई आश्चर्य नहीं कि भाजपा चौकाते हुए ऐन वक्त पर युवा नेता पर अपना दांव लगा दे। क्योंकि सब जानते हैं कि लोकसभा चुनाव तो मोदी लहर से जीतना है। भाजपा में सांसदों की छवि वैसे ही मायने नहीं रखती। जनता भी मोदी-योगी के नाम पर ही लोकसभा में वोट देगी। इसलिए किसी को भी टिकट मिल जाए तो वह चुनावी वैतरिणी पार कर ही लेगा। दूसरी ओर दूसरे दल के एक कद्दावर नेता पर भी भाजपा हाईकमान की नजर है। वह कई लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं।
मगर, भाजपा की मोदी लहर में हर बार उनको पराजय का मुंह देखना पड़ा। पिछले लोकसभा चुनाव में भी उनको 3.97 लाख से अधिक वोट मिले थे। वह सजातीय भी हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव में पुराने बुजुर्गों को किनारे करके 40 फीसदी युवाओं को मौका देने की तैयारी में है। इसके लिए पार्टी में अंदरूनी तौर पर सर्वे भी चल रहा है। उसमें वर्तमान सांसदों की खराब रिपोर्ट भी हाईकमान तक पहुंची है। रुहेलखंड में कुछ सांसदों की रिपोर्ट काफी निगेटिव है कि वह पांच साल में जनता से न मिलकर अपना कारोबार खड़ा करने में व्यस्त रहे। ऐसे सांसदों का टिकट इस बार खतरे में पड़ सकता है।
ये है बरेली लोकसभा सीट का इतिहास
बरेली लोकसभा सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है। अब तक 17 बार चुनाव हो चुके हैं। इनमें 10 बार से ज्यादा इस सीट पर भाजपा या विपक्षी दलों का कब्जा रहा है। बाकी पांच बार यह सीट कांग्रेस के खाते में रही। वर्ष 1962 में बरेली लोकसभा सीट पर भाजपा (तब जनसंघ) से ब्रजराज सिंह पहली बार चुनाव जीते थे। उसके बाद वर्ष 1967 में ब्रजभूषण लाल ने कांग्रेस प्रत्याशी को पीछे छोड़कर जनसंघ का दीपक जलाया था। मगर, उसके बाद वर्ष 1971 में इस सीट पर कांग्रेस के सतीशचंद्रा ने फिर से जनसंघ को हराकर कांग्रेस की खोई साख वापस लौटाने में सफलता हासिल की।
जनता पार्टी की लहर में वर्ष 1977 में राममूर्ति बरेली लोकसभा सीट जीतकर संसद पहुंचे। 1980 में जनता पार्टी सेक्युलर से मिसिर यार खां सांसद बने। वर्ष 1981 और 84 में कांग्रेस की आबिदा बेगम चुनाव जीतकर बरेली से दिल्ली की संसद पहुंची। फिर शुरू हुआ भाजपा का दौर। वर्ष 1989 में भाजपा से संतोष गंगवार ने पहली बार जो चुनाव जीता तो वर्ष 2009 तक किसी दूसरे को इस सीट से दिल्ली पहुंचने का मौका ही नहीं दिया। वर्ष 2009 में कांग्रेस के प्रवीण सिंह ऐरन ने भाजपा का किला ध्वस्त किया और वह भगवा दल के कद्दावर नेता संतोष गंगवार को हराकर संसद पहुंचे। मगर, वर्ष 2014 और 2019 की मोदी लहर में संतोष गंगवार ने दोनों बार यह सीट जीतकर भाजपा की झोली में डाली।