बरेली : मुस्लिम मतदाताओं में बिखराव से सपा प्रत्याशी के माथे पर छाई चिंता की लकीरें

बरेली। नगर निगम चुनाव की तस्वीर धीरे-धीरे साफ होने लगी है। सपा हाईकमान को महापौर के लिए निर्दलीय प्रत्याशी को समर्थन देने की खातिर अपना सिंबल वापस लेकर पार्टी के सम्मान से समझौता करना पड़ा। मगर, इसका फायदा भी पार्टी को मिलता नहीं दिख रहा है। इसकी वजह है मुस्लिम मतों में बिखराव की आहट। सपा का सिंबल न होने से मुस्लिम मतदाताओं में विभाजन स्पष्ट नजर आने लगा है। मुस्लिमों का रुझान बसपा और कांग्रेस की ओर दिखने से सपा समर्थित प्रत्याशी चिंतित हैं। वहीं दूसरी ओर पसमांदा मुसलमानों की पहली पसंद भाजपा है क्योंकि भगवा दल ने इस बार वार्डों के अलावा नगरपालिका और नगर पंचायत अध्यक्ष के लिए भी पसमांदा मुस्लिमों को टिकट दिए हैं। कुछ समय पहले तक सपा के अधिकृत प्रत्याशी रहे संजीव सक्सेना की नाराजगी अब भी बरकरार है। वह सपा की मीटिंग में शामिल नहीं हुए। इसके चलते कायस्थ मतदाता भी सपा समर्थित प्रत्याशी से दूर हैं। भाजपा की स्थिति बूथों पर दिनों दिन मजबूत होती दिखाई देने लगी है।

साइकिल निशान न होने से मुस्लिमों का रुझान बसपा और कांग्रेस की ओर

समाजवादी पार्टी के नेताओं ने चुनाव के शुरूआती दौर में राजनीतिक चाल चलकर भाजपा को घेरने की कोशिश की थी। तब भाजपा का प्रत्याशी घोषित नहीं हुआ था। मगर, अब उसी चाल में सपा खुद फंसती नजर आ रही है। पहले सपा से कायस्थ बिरादरी के संजीव सक्सेना को टिकट दिया गया। वह लखनऊ से सिंबल भी ले आए। मगर, उनके प्रत्याशी बनने से स्थानीय सपा नेता नाराज हो गए क्योंकि वह पूर्व महापौर डॉ. आईएस तोमर को चुनाव लड़ाना चाहते थे। स्थानीय सपा नेताओं ने लखनऊ जाकर पूर्व महापौर डॉ. तोमर को समर्थन देने की पैरवी की। उसमें सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को बताया गया कि संजीव सक्सेना कमजोर प्रत्याशी हैं। उनकी जगह पूर्व महापौर का समर्थन करना ठीक रहेगा।

संजीव सक्सेना का नामांकन वापस होने से कायस्थों में भी नाराजगी, बूथों पर भी निष्क्रियता

यह स्थिति तब थी जबकि नगर निगम क्षेत्र में कायस्थ मतदाताओं की संख्या निर्णायक है। स्थानीय नेताओं के कहने पर सपा हाईकमान ने संजीव सक्सेना का सिंबल वापस कराकर निर्दलीय प्रत्याशी डॉ. आईएस तोमर को अपना समर्थन दे दिया। अब सपा के समर्थन से पूर्व महापौर डॉ. तोमर चुनाव मैदान में हैं। मगर, सपा का यह गणित अभी से उल्टा पड़ता नजर आने लगा है।

बैलेट पेपर पर साइकिल चुनाव निशान न होने की वजह से यादव और मुस्लिम मतदाता भ्रम में हैं कि वह किसे समर्थन करें क्योंकि सपा का बेस मतदाता केवल साइकिल चुनाव चिन्ह देखता है। बैलेट पेपर पर साइकिल चुनाव चिन्ह न होने से मुस्लिम मतदाताओं का रुझान अपने सजातीय बसपा प्रत्याशी के अलावा कांग्रेस की ओर है। दूसरी ओर भाजपा ने पसमांदा मुसलमानों को बड़ी संख्या में टिकट दिए हैं। इसलिए वार्डों में पसमांदा के अलावा मुस्लिमों की कुछ अन्य जातियों का समर्थन भी कमल के फूल को भी मिलने लगा है। इसके चलते भाजपा की वार्डों में स्थिति मजबूत है। राजनीतिक सूत्रों के अनुसार सपा समर्थित प्रत्याशी की बूथों पर भी सक्रिय टीम नहीं है। इसका फायदा भी भाजपा को मिलता दिख रहा है। सपा समर्थित प्रत्याशी के अब तक वार्डों में स्टिकर और पंपलेट तक छपकर नहीं पहुंचे। इस वजह से सपा के मतदाताओं में निराशा का माहौल है। अब तक चुनाव प्रचार में फिलहाल भाजपा विपक्षियों से काफी आगे दिख रही है।

कायस्थ मतदाताओं में भी नाराजगी

संजीव सक्सेना का सिंबल वापस होने से बहुतायत संख्या में कायस्थ मतदाता भी सपा से फिलहाल नाराज है। कायस्थ महासभा के एक पदाधिकारी ने नाम न प्रकाशित करने की गुजारिश पर बताया कि लंबे समय बाद उनकी बिरादरी के किसी व्यक्ति को महापौर पद का टिकट मिला, लेकिन बाद में उसका सिंबल वापस करके समस्त कायस्थ बिरादरी का अपमान किया गया। इसका परिणाम मतदान के दिन देखने को मिल सकता है। सपा के पूर्व प्रत्याशी संजीव सक्सेना अपना नामांकन वापस लेने के बाद सपा समर्थित प्रत्याशी के साथ एक बार भी नहीं दिखे। यहां तक कि उनकी पहली प्रेस कांफ्रेंस में भी नहीं आए। इसके बाद सपा के अंदर कानाफूसी का दौर शुरू हो गया। कुल मिलाकर सपा ने नामांकन से पहले चुनाव लड़ने की जो बिसात बिछाई थी, उसमें वह स्वयं ही घिर चुकी है। पार्टी के चुनावी रणनीतिकारों की रणनीति पर भी सवाल उठने लगे हैं।

चुनाव प्रचार में भी सपा मुख्य प्रतिद्वंदी से पीछे

राजनीति के जानकारों का कहना है कि भाजपा संगठन बूथों से लेकर मतदान केंद्रों तक पहले से ही बेहद मजबूत है। संगठन की मानीटरिंग लखनऊ से प्रतिदिन हर घंटे होती है। भाजपा का प्रत्येक कार्यकर्ता अपने महापौर और वार्डों के पार्षद प्रत्याशियों को जिताने में जी जान से जुटा है। भाजपा के बड़े नेता भी प्रत्याशी के साथ रोजाना डोर टू डोर जाकर वोट मांग रहे हैं। पार्टी के प्रदेश मुख्यालय से रोजाना चुनाव प्रचार के रूटीन से लेकर रात के वापस लौटने तक का फीड बैक लिया जाता है। वहीं सपा में इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है। चुनाव चिन्ह साइकिल न होने से बूथों पर सपा कार्यकर्ता उस तरह सक्रिय नहीं है, जिस तरह सिंबल मिलने पर होते हैं। निर्दलीय चुनाव चिन्ह कार भी सपाईयों को पूरी तरह आकर्षित नहीं कर पा रहा है। कुल मिलाकर मतदान में अभी 10 दिन का वक्त बाकी है, लेकिन हवा-हवाई चुनावी माहौल छोड़ दें तो सपा समर्थित प्रत्याशी की जमीन पर सक्रियता बहुत ज्यादा नहीं है।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें

थाईलैंड – कंबोडिया सीमा विवाद फिर भड़का तारा – वीर ने सोशल मीडिया पर लुटाया प्यार हिमाचल में तबाही, लापता मजदूरों की तलाश जारी न हम डरे हैं और न यहां से जाएंगे एयर इंडिया विमान हादसे पर पीएम मोदी की समीक्षा बैठक