शरद ऋतु के बाद बसंत ऋतु और फसल की शुरूआत होने के साथ ही बसंत पचंमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस वर्ष बसंत पचंमी पर्व 10 फरवरी 2019 को मनाया जाएगा। बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की विशेष रूप से पूजा की जाती है। देवी सरस्वती को विद्या एवं बुद्धि की देवी माना जाता है। बसंत पंचमी के दिन उनसे विद्या, बुद्धि, कला एवं ज्ञान का वरदान प्राप्त किया जाता है।
इस दिन लोग पीले रंग के वस्त्र धारण करते हैं, पतंग उड़ाते हैं और मीठे पीले रंग के चावल का सेवन करते हैं। पीले रंग को बसंत का प्रतीक माना जाता है। बसंत ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा माना जाता है। इस ऋतु में न तो चिलचिलाती धूप होती है, न सर्दी और न ही वर्षा, बसंत में पेड़-पौधों पर ताजे फल और फूल आते हैं।
आज के दिन सरस्वती माता को प्रसन्न करने के लिए संपूर्ण सरस्वती चालीसा का पाठ रात के समय करना चाहिए जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं. आइए जानते हैं.
सरस्वती चालीसा-
दोहा
जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्टजनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।
जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥
जय जय जय वीणाकर धारी।
करती सदा सुहंस सवारी॥
रूप चतुर्भुज धारी माता।
सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती।
तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥
तब ही मातु का निज अवतारी।
पाप हीन करती महतारी॥
वाल्मीकिजी थे हत्यारा।
तव प्रसाद जानै संसारा॥
रामचरित जो रचे बनाई।
आदि कवि की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता।
तेरी कृपा दृष्टि से माता॥
तुलसी सूर आदि विद्वाना।
भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा।
केवल कृपा आपकी अम्बा॥
करहु कृपा सोइ मातु भवानी।
दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करहिं अपराध बहूता।
तेहि न धरई चित माता॥
राखु लाज जननि अब मेरी।
विनय करउं भांति बहु तेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा।
कृपा करउ जय जय जगदंबा॥
मधु-कैटभ जो अति बलवाना।
बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥
समर हजार पांच में घोरा।
फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।
बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।
पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता।
क्षण महु संहारे उन माता॥
रक्त बीज से समरथ पापी।
सुरमुनि हृदय धरा सब काँपी॥
काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा।
बार-बार बिन वउं जगदंबा॥
जगप्रसिद्ध जो शुंभ-निशुंभा।
क्षण में बांधे ताहि तू अम्बा॥
भरत-मातु बुद्धि फेरेऊ जाई।
रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहिविधि रावण वध तू कीन्हा।
सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥
को समरथ तव यश गुन गाना।
निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रुद्र जस कहिन मारी।
जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥
रक्त दन्तिका और शताक्षी।
नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।
दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥
दुर्ग आदि हरनी तू माता।
कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित को मारन चाहे।
कानन में घेरे मृग नाहे॥
सागर मध्य पोत के भंजे।
अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में।
हो दरिद्र अथवा संकट में॥
नाम जपे मंगल सब होई।
संशय इसमें करई न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई।
सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥
करै पाठ नित यह चालीसा।
होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै।
संकट रहित अवश्य हो जावै॥
भक्ति मातु की करैं हमेशा।
निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें सत बारा।
बंदी पाश दूर हो सारा॥
रामसागर बांधि हेतु भवानी।
कीजै कृपा दास निज जानी॥
दोहा
मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु परूं न मैं भव कूप॥
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥
पूजन का सबसे शुभ मुहूर्त
बसंत पंचमी पूजा मुहूर्त: सुबह 6.40 बजे से दोपहर 12.12 बजे तक
पंचमी तिथि प्रारंभ: माघ शुक्ल पंचमी शनिवार 9 फरवरी की दोपहर 12.25 बजे से आरंभ होकर
पंचमी तिथि समाप्त: रविवार 10 फरवरी को दोपहर 2.08 बजे तक रहेगी
पूजा विधि
सुबह स्नान करके पीले या सफेद वस्त्र धारण करें, मां सरस्वती की मूर्ति या चित्र उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करें। मां सरस्वती को सफेद चंदन, पीले और सफेद फूल अर्पित करें। उनका ध्यान कर ऊं ऐं सरस्वत्यै नम: मंत्र का 108 बार जाप करें। मां सरस्वती की आरती करें दूध, दही, तुलसी, शहद मिलाकर पंचामृत का प्रसाद बनाकर मां को भोग लगाएं।
प्रेरक घटनाक्रम
बसंत पंचमी का पर्व अनेक प्राचीन प्रेरक घटनाक्रमों से भी जुड़ा है। त्रेता युग में रावण द्वारा सीता के हरण के बाद प्रभु श्रीराम उनको खोजने दक्षिण की ओर अनेक स्थानों पर गए दंडकारण्य भी उनमें से एक था। यहीं पर श्री राम भक्त माता शबरी रहती थी जो कि भील जाति से सम्बंध रखती थी। जब राम उनकी कुटिया में आए, तो उन्होंने चख-चखकर मीठे बेर श्रीराम जी को खिलाए। प्रेम में पगे झूठे बेरों वाले इस भक्ति भाव को रामकथा के सभी गायकों ने भिन्न प्रकार से प्रस्तुत किया। भारत के गुजरात राज्य के डांग जिले में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम था। प्रभु श्री रामचंद्र जी बसंत पंचमी के दिन ही वहां आए थे। आज भी उस क्षेत्र के वनवासी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रद्धा है कि श्रीराम आकर उसी पर बैठे थे। शबरी माता का मंदिर भी वहीं है।
ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-“प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।”
अर्थात ये परम चेतना हैं। देवी सरस्वती के रूप में ये हमारे ज्ञान बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हमारे सदाचारों और मेधा का आधार मां भगवती सरस्वती ही हैं। मां सरस्वती की समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। शास्त्रों और पुराणों के अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण ने मां सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि बसंत पंचमी पर्व को आपकी भी पूजा आराधना की जाएगी और इस प्रकार भारत में बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक प्रचालन में है।