नई पटना। एक वक्त बिहार की लता मंगेश्कर कर का खिताब पा चुकीं पुर्णिमा देवी आज भीख मांगकर अपना गुजारा करने को मजबूर हैं। अपनी आवाज का जादू चलाकर ये खिताब पाने वालीं पूर्णिमा देवी को जिंदगी ने आज इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी उनके लिए मुश्किल है। पटना में गंगा किनारे बैठकर भजन-कीर्तन कर वो किसी तरह अपने और अपने बेटे के जीवन बसर के लिए पैसों का इंतजाम कर रही हैं। वक्त के साथ-साथ प्रशासन और सरकार ने भी उनका साथ छोड़ दिया है।
बेटी ने छोड़ा साथ, बेटा अवसाद में
पूर्णिमा देवी को एक वक्त बिहार की लता मंगेश्कर कहा जाता था। उनकी आवाज में लोग स्वर कोकिला मंगेश्कर की परछाई तलाशते थे, लेकिन आज हालात कुछ और ही हैं। आज पूर्णिमा देवी पटना के कालीघाट पर भीख मांग कर गुजर-बसर करने को मजबूर हैं। उनका बेटा मानसिक रोगी है और बेटी ने साथ छोड़ दिया है। ऐसे में बेटे का बोझ भी पूर्णिमा देवी के कंधों पर ही आ गया है।
मिला था बिहार की लता मंगेश्कर का खिताब
75 वर्षीय पूर्णिमा देवी की शादी 1974 में बाराबंकी के मशहूर डॉक्टर एचपी दिवाकर से हुई थी। शादी के 10 साल बाद 1984 में एक जमीन विवाद के चलते उनती हत्या कर दी गई। पति की मृत्यु के बाद पूर्णिमा देवी अपने दोनों बच्चों को लेकर पटना आ गईं। पटना में उन्होंने कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। उनकी आवाज की खूब तारीफ हुई और वो कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का हिस्सा रहीं। साल 1995 में गाया उनका मगही गीत ‘यही ठईया टिकुली हेरा गईल’ को बिहार में खूब पसंद किया गया।
सरकार से भी नहीं मिली कोई मदद
उन्हें बिहार की लता मंगेश्कर का खिताब दिया गया, लेकिन वक्त ने ऐसा पासा पलटा की सब बिखर गया। उनका बेटा मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो गया। बेटी बूढ़ी मां का साथ छोड़कर मुंबई में जाकर बस गई। पूर्णिमा देवी को न बच्चों का साथ मिला और न ही प्रशासन का। उन्होंने बताया कि वो दिल्ली सरकार में रजिस्टर्ड आर्टिस्ट थीं, लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं आई। चारों तरफ से मार झेल रहीं पूर्णिमा देवी के पास अब बस भजन-कीर्तन का ही सहारा है।