BJP और गुलाम नबी आजाद के बीच क्या चल रहा है ?

कभी कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे गुलाम नबी आजाद इन दिनों अलग कारणों से सुर्खियों में है। जब से उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता छोड़ी है, तब भाजपा के साथ उनका मेल-जोल बढ़ रहा है। जिस प्रकार से गुलाम नबी का भाजपा सत्कार कर रही है, उससे कयास लगाए जा रहे हैं कि कहीं आजाद भाजपा में तो नहीं शामिल होने वाले।हाल ही में दिल्ली में जिस प्रकार से गुलाम नबी आजाद की एक पार्टी में मेजबानी की गई है, उससे यह अटकलें काफी तेज हो चुकी हैं। केन्द्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय की ओर से एक सांस्कृतिक उत्सव का आयोजन किया गया था, जिसमें राज्यसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष की केंद्र सरकार ने काफी आवभगत भी की।

शनिवार को अंबेडकर इंटेरनेशनल सेंटर में आयोजित मुशायरा कार्यक्रम में गुलाम नबी आजाद को बतौर ‘विशिष्ट अतिथि’ आमंत्रित किया गया था। इस कार्यक्रम में केन्द्रीय अल्पसंख्यक मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह भी शामिल थे, जिन्होंने स्वयं आगे आकर गुलाम नबी आजाद का स्वागत किया गया।

https://youtu.be/2Mgp_pSLL34गुलाम नबी जम्मू कश्मीर प्रांत के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं और काफी समय से वे राज्यसभा में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष भी रहे हैं। राजनीति में उनका एक अहम कद भी है, यही कारण है कि उनके विदाई भाषण के दौरान नरेंद्र मोदी ने न केवल उनकी प्रशंसा की, बल्कि उनके बारे में अपने विचार रखते हुए भावुक भी हो गए।

परन्तु वर्तमान में कांग्रेस पार्टी में उनका कद पहले जैसा नहीं रहा। कारण अपनी पार्टी में राष्ट्रीय नेतृत्व को लेकर उनका स्पष्ट रुख। 2020 के मध्य में जब 23 नेताओं ने कांग्रेस हाईकमान के वर्तमान नेतृत्व को अस्वीकार करते हुए व्यापक बदलाव की बात की, तो उनमें अग्रणी नेताओं में आजाद, शशि थरूर, कपिल सिब्बल जैसे नेता शामिल थे।

राहुल गांधी ने जब इन नेताओं को भाजपा का एजेंट करार देने की कोशिश की, तो इसका सर्वाधिक विरोध कपिल सिब्बल और गुलाम नबी जैसे नेताओं ने ही किया। सोनिया गांधी से बातचीत के बाद अधिकतम विद्रोही नेताओं ने अपना रुख तो बदल लिया, परंतु आजाद अपने विचारों से टस से मस नहीं हुए, और परिणामस्वरूप अब पार्टी में वे सिर्फ नाम के लिए रह गए हैं।

आजाद का कश्मीर घाटी में प्रभाव काफी अहम है, जिसके कारण कांग्रेस को वर्षों बाद 2002 में सत्ता प्राप्त हुई, और जिसके कारण वे 2005 से 2008 तक कांग्रेस की ओर से जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री भी रहे।

ऐसे में यदि गुलाम नबी आजाद वास्तव में भाजपा में शामिल होते हैं, जैसे कि कयास लगाए जा रहे हैं, तो ये भाजपा के लिए फायदेमंद साबित होगा। आजाद एक कद्दावर नेता हैं, जो कश्मीर घाटी में अभी भी काफी प्रभाव डालते हैं, जिसका फायदा निस्संदेह भाजपा को मिलेगा। इसके अलावा जिस प्रकार से उन्हें कांग्रेस द्वारा दरकिनार किया गया है, वो भी कई लोग भूले नहीं हैं, जिसका लाभ भी काफी हद तक भाजपा को मिलेगा। इसीलिए जिस प्रकार से आजाद का आदर सत्कार किया जा रहा है, उससे संकेत स्पष्ट है – आने वाले दिनों में गुलाम नबी आजाद के राजनीतिक करियर में एक अहम बदलाव होने वाला है। ये अच्छा है या बुरा, ये तो अभी भविष्य के गर्भ में है।

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