हिंदी की अद्वितीय बोली है ब्रजभाषा, 14 राज्यों में है बोलबाला

भास्कर समाचार सेवा

आगरा। ब्रज भाषा की मधुरता के चर्चे ना सिर्फ दुनिया भर में होते हैं बल्कि इसके अपने पन और प्रेम माधुर्य की गाथा भी दुनिया भर में गाई जाती है। हिंदूवादी नेता और सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष ढल ने बताया कि भारत के करीब 14 राज्यों में हिंदी भाषा का बोलबाला है। जिसमें हिंदी की प्रमुख उपभाषा (ब्रजभाषा) ने एक स्वर्णिम दौर की मांग को तय किया था। प्रख्यात कवियों सूरदास, रहीम, घनानंद, केशव, रसखान, बिहारी,आदि तमाम कवियों एवं साहित्यकारों ने ब्रजभाषा को प्रतिष्ठापित किया और एक नई दिशा दी। ब्रजभाषा हमारे यहां मथुरा, आगरा, एटा, मैनपुरी, अलीगढ़, हाथरस, बदायूं, बरेली, धौलपुर, आदि जनपदों की महारानी एक युग में अपने स्वर्णिम सौंदर्य से सम्मानित थी। घर-घर ब्रजभाषा बोलने का रिवाज धीरे-धीरे कम होता चला गया। सुभाष ढल ने आगे कहा कि वे पंजाबी हैं, उन्हें पंजाबी उपभाषा से बहुत प्यार है, जब भी दो पंजाबियों को देखता हूं तो वे पंजाबी भाषा में बात करते हैं। पंजाब छोड़े 75 वर्ष से भी ऊपर हो गये, पर उनकी भाषा उनकी जुबान से नहीं गई है कितना प्यार और आत्मीयता अपनी भाषा से है। इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं। शिक्षित पंजाबी अपनी भाषा में बात करने पर गर्व महसूस करता है। पर मुझे ब्रजभाषा सर्वोच्च लगती है। क्योंकि मेरे जीवन के परमाणु इसी भाषा में संगठित हुए हैं। मेरा जन्म बृज की माटी में हुआ है और इस माटी में प्रेम, संगीत, और भक्ति का समावेश है। यहां कृष्ण की बांसुरी बजती है तो होली के रसिया गाए जाते हैं। सावन की मल्हारें ऐसी लगती है जैसे कानों में कोयल कूक रही हो। सब कुछ ब्रज भाषा में है। ब्रजभाषा की कुछ विधाएं लुप्त होने की कगार पर हैं, जिसमें रास, नौटंकी, भगत, चोबेले आदि हैं। कौन है इसका जिम्मेदार?
जिसमें अपनी मां जैसी भाषा का तिरस्कार किया? उत्तर एक ही आएगा कि मैं स्वयं हूं? मुझे अपनी भाषा बोलने में शर्म महसूस होती है? दूसरे की मां को मैं अपनी मां बोल सकता हूं पर अपनी मां को अपनी मां बोलने में मुझे अपमानित महसूस होता है? मैं अनुभव करता हूं कि अगर यह भाषा बोलूंगा तो लोग मुझे गंवार समझेंगे। इस घिनोनी सोच से मैंने अपनी ही भाषा पर क्रूरतम प्रहार किया है।
कितनी भारी हानि मैंने अपनी पहुंचाई है। गुरु ग्रंथ साहिब में भी मुख्य रूप से ब्रज भाषा में बहुत कुछ लिखा गया है। जब उनके शबद बोले जाते हैं तो कानों को जो राहत मिलती है जिन का बयान शब्दों में नहीं किया जा सकता। हम ज्यादा तो नहीं कर सकते पर जब दो ब्रजवासी आपस में मिले तो कम से कम ब्रजभाषा के सरल वाक्यों का प्रयोग करके तो देखें। हमारे बाबूपन पर बट्टा नहीं लगेगा। अपनी भाषा से प्रेम और उसके रस का आनंद ले कर तो देखिए।

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