एक प्रभावशाली ‘बाबा’ और भौतिकवाद के प्रति कमजोरी रखने वाला उसका परिवार. एक कंपनी बेचने से मिले करीब 10 हजार करोड़ रुपये की नकदी के साथ दो युवा कारोबारी और उनके परिवार का एक बेहद करीबी. इन सबने मिलकर एक ऐसा कारनामा किया जो बॉलीवुड की किसी कहानी को भी फेल कर सकता है. उनके कारनामे से करीब 22,500 करोड़ रुपये हवा में उड़ गए.
कारोबारी जगत में मलविंदर सिंह और शिवेंदर सिंह दो साल पहले से चर्चा में हैं,
जब यह पता चला कि उनके ऊपर करीब 13,000 करोड़ रुपये का कर्ज हो गया है. यह तब है, जब 2008 में उन्होंने तबकी भारत की सबसे बड़ी दवा कंपनी रैनबैक्सी को जापान की दाइची सैंक्यो को बेचा था अौर इससे उनके पास 9,567 करोड़ रुपये की नकदी आ गई थी. यह कंपनी उन्हें अपने पिता परविंदर सिंह से विरासत में मिली थी.
तो सवाल यही है कि उनके पास से यह करीब 22,500 करोड़ रुपये (9,500 करोड़ नकदी और 13,000 करोड़ कर्ज) कहां हवा हो गए. यह भारतीय कॉरपोरेट जगत का अपने तरह का पहला उदाहरण है. इसे समझने के लिए बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लन और उनके परिवार के कारनामे को भी समझना होगा.
रैनबैक्सी को बेचने के बाद पिछले 10 साल में सिंह बंधु ने फोर्टिस हेल्थकेयर और रेलिगेयर एंटरप्राइजेज जैसे एनबीएफसी से भी अपना प्रभावी नियंत्रण खो दिया. जबकि सिंह बंधुओं द्वारा रैनबैक्सी बेचे जाने के दो साल बाद ही अजय और स्वाति पीरामल ने अपने फार्मा कारोबार को अबॉट लेबोरेटरीज को बेच दिया था और इससे उन्हें 18,000 करोड़ रुपये मिले थे. आज पीरामल परिवार ने इस पैसे को फिर से निवेश कर 25,000 करोड़ की संपत्ति बना ली है.
मलविंदर और शिवेंदर सिंह ने हमारे सहयोगी प्रकाशन बिजनेस टुडे के सवालों के ई-मेल से दिए जवाब में यह स्वीकार किया है, ‘आज हम अपने सभी प्रमुख कारोबार-फोर्टिस, एसआरएल और रेलिगेयर-पर नियंत्रण खो चुके हैं. अपने कर्ज चुकाने और बैंकों द्वारा हमारे गिरवी रखे गए शेयरों को भुनाने की वजह से ऐसा हुआ है.’
कौन हैं बाबा ढिल्लन और गोधवानी
गुरिंदर सिंह ढिल्लन राधा स्वामी सत्संग ब्यास (RSSB) के आध्यात्मिक गुरु हैं और ‘बाबाजी’ या ‘व्यास के संत’ के नाम से मशहूर हैं. सिंह परिवार इनका अनुयायी है और सिर्फ अनुयायी ही नहीं बल्कि ढिल्लन परिवार और सिंह परिवार में बहुत करीबी रिश्ता है. राधा स्वामी सत्संग ब्यास के करीब 20 लाख अनुयायी हैं और देश भर में उसके आश्रम आदि के रूप में काफी जमीन है. सिंह बंधुओं के परिवार का एक और करीबी व्यक्ति है सुनील नारायणदास गोधवानी.
ढिल्लन के पहले इसके उनके मामा चरण सिंह 1951 से 1990 से इस संस्था के आध्यात्मिक गुरु थे. चरण सिंह की बेटी निम्मी सिंह असल में सिंह बंधुओं की मां हैं और दिवंगत परविंदर सिंह की पत्नी हैं. इस तरह ढिल्लन रिश्ते में सिंह बंधुओं के मामा लगते हैं. ढिल्लन ने ही गोधवानी का सिंह बंधुओं से परिचय कराया और यह रिश्ता इतना करीबी हो गया कि गोधवानी को सिंह बंधुओं का ‘तीसरा भाई’ तक कहा जाने लगा. बाद में ढिल्लन के ही कहने पर सिंह बंधुओं ने गोधवानी को अपनी नॉन-बैंकिंग कंपनी रेलिगेयर इंटरप्राइजेज का प्रमुख बना दिया.
खेल हुआ खत्म, पैसा हुआ हजम
सिंह बंधुओं की सफलता की चमकदार कहानी में ट्रेजडी का सिलसिला शुरू हुआ रैनबैक्सी के बेचने और उससे मिली नकदी के बाद. रैनबैक्सी बेचने से मिली करीब 9,500 करोड़ रुपये की नकदी में से सिंह बंधुओं ने 2,000 करोड़ रुपये टैक्स और पुराने लोन चुकाने में लगाए. बचे 7,500 करोड़ रुपये में से 1,750 करोड़ रुपये रेलिगेयर में लगाए गए ताकि कंपनी में और तरक्की हो. इसी तरह 2,230 करोड़ रुपये फोर्टिस में ग्रोथ के लिए लगाए गए.
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात है कि 2,700 करोड़ रुपये गुरु ढिल्लन के परिवार की कंपनियों को ट्रांसफर कर दिया गया. इसके अलावा रेलिगेयर और फोर्टिस में मनमाने तरीके से विस्तार के लिए पैसे लगाए गए, जिससे काफी नुकसान हुआ. सिंह बंधु अब आरोप लगा रहे हैं कि इसमें गोधवानी ने काफी मनमानी की, लेकिन गोधवानी से जुड़े सूत्र कहते हैं कि सिंह बंधुओं को हर कदम की जानकारी थी और उन्होंने सभी जरूरी दस्तावेजों पर दस्तखत किए थे.
सिंह बंधुओं से मिले पैसे की वजह से ढिल्लन परिवार ने रियल एस्टेट सेक्टर में जमकर निवेश किया. मंदी के दौर में रेलिगेयर और फोर्टिस को लोन चुकाने में काफी दिक्कत होने लगी. इसी तरह रियल एस्टेट में मंदी आने से ढिल्लन परिवार को भी काफी नुकसान हुआ. इसमें सबसे ज्यादा नुकसान में सिंह परिवार ही रहे. कुल मिलाकर कहें तो भारी नकदी से लबालब एक बड़ा कारोबारी परिवार आज बर्बाद होने की कगार पर पहुंच गया है.
नहीं मिल रहे इन सवालों के जवाब
यह सबको चकित करता है. कुछ सवालों के जवाब अनुत्तरित हैं. बिजनेस टुडे ने सिंह बंधुओं से निम्न सवाल पूछे थे, लेकिन जवाब नहीं मिल पाए हैं.
1. क्या सिंह बंधु इतने भोले थे कि उन्होंने न सिर्फ एक बड़ी रकम ढिल्लन परिवार और आरएसएसबी को ट्रांसफर कर दी, बल्कि गोधवानी जैसे परिवार से बाहर के व्यक्ति को मनमाने तरीके से काम करने की आजादी दी?
2. कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्होंने ढिल्लन परिवार से पैसा उधार लिया था, जिसकी वजह से उन्होंने जो नकदी इस परिवार को दी वह वापस नहीं दी गई?
3. कहीं ऐसा तो नहीं शिवेंदर सिंह खुद राधा स्वामी सत्संग ब्यास के अगले आध्यात्मिक गुरु बनना चाहते हैं और इसी वजह से उन्होंने इस संस्था को बड़ी रकम लोन के रूप में दी?
हमारे सवालों के जवाब में सिंह बंधुओं ने बस इतना कहा, ‘हमारा तात्कालिक ध्यान अभी के सभी मसलों को हल करने और सभी कर्ज एवं देनदारी चुका कर उनको खत्म करना है. अपने कर्जों को चुकाने के लिए हम कोर्ट के आदेश के मुताबिक अपने एसेट बेचेंगे.’
(www.businesstoday.in से साभार)