
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बुधवार को कहा कि उन्होंने संसद में अच्छी-खासी उपस्थिति वाले कई दलों को पत्र लिखकर मौजूदा मानसून सत्र में जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए एक विधेयक पेश करने में उनका समर्थन मांगा है।
केंद्र ने 5 अगस्त, 2019 को पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था।
अब्दुल्ला ने श्रीनगर में संवाददाताओं से कहा कि मैंने उन सभी दलों को पत्र लिखा है जिनके संसद में अच्छी संख्या में सांसद हैं और उनसे अनुरोध किया है कि वे जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने के वादे पर मदद करें और संसद में इस मुद्दे को उठाएं ताकि इसी सत्र में एक विधेयक लाया जा सके और जम्मू-कश्मीर को उसका राज्य का दर्जा वापस मिल सके।
मुख्यमंत्री का यह कदम जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा वापस करने की बढ़ती मांग के बीच आया है। उनका यह प्रयास केंद्र को जम्मू-कश्मीर के लोगों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए जवाबदेह ठहराने का एक नया प्रयास है।
29 जुलाई को अब्दुल्ला ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे सहित 42 राजनीतिक दलों के अध्यक्षों को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने केंद्र पर जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए मानसून सत्र में एक विधेयक लाने का दबाव बनाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि इसे रियायत के रूप में नहीं बल्कि एक आवश्यक सुधार के रूप में देखा जाना चाहिए।
उन्होंने लिखा कि किसी राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदलना एक गहरी और परेशान करने वाली मिसाल कायम करता है और एक संवैधानिक लाल रेखा है जिसे कभी भी पार नहीं किया जाना चाहिए।
तीन पन्नों के पत्र में कहा गया है कि 2019 में जम्मू-कश्मीर को एक राज्य से केंद्र शासित प्रदेश में बदलने की कार्रवाई और पूर्ण राज्य के रूप में उसका दर्जा बहाल करने में लंबी देरी भारतीय राजनीति के भविष्य पर गहरा प्रभाव डालती है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश में पुनर्गठित करने को एक अस्थायी और संक्रमणकालीन उपाय के रूप में प्रस्तुत किया गया था और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बार-बार दिए गए सार्वजनिक आश्वासनों का हवाला दिया जिसमें इस साल की शुरुआत में कश्मीर में किया गया एक वादा भी शामिल है जिसे उन्होंने मोदी का वादा कहा था।
अब्दुल्ला ने सर्वाेच्च न्यायालय के समक्ष केंद्र के रुख का भी हवाला दिया जिसमें उन्होंने जल्द से जल्द राज्य का दर्जा बहाल करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
हालाँकि उन्होंने कहा कि जल्द से जल्द या जितनी जल्दी हो सके जैसे शब्दों की व्याख्या वर्षों या दशकों तक नहीं खींची जा सकती। जम्मू-कश्मीर के लोग पहले ही काफी इंतज़ार कर चुके हैं – राज्य का दर्जा अब बहाल होना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने चेतावनी देते हुए कहा कि ऐसे पलों को यूँ ही गुज़र जाने देना संकीर्ण पक्षपातपूर्ण गणनाओं के कारण अनदेखा करना या प्रतिक्रिया न देना, निस्संदेह एक बड़ी भूल होगी। उन्होंने प्रसिद्ध कवि मुज़फ़्फ़र रज़्मी कैरानवी को उद्धृत किया कि लम्हों ने ख़ता की थी, सदियों ने सज़ा पाई।