सोमवार से सजेगी ‘कल्पवासियों’ की भक्तिमय ‘राम नगरिया’

सीतापुर : तीर्थ नैमिषारण्य हमेशा से श्रद्धालुओं की अगाध आस्था का केंद्र बिंदु रहा है। इस तीर्थ में सनातन काल से धार्मिक अनुष्ठानो व यज्ञ आदि का पावन क्रम चलता चला आ रहा है। उसी धर्म की अटूट परम्परा को पोषित करते हुए तीर्थ नैमिषारण्य के देवदेवेश्वर गोमती तट के पास बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण फूस से बनी 50 से अधिक झोपडियों में 13 जनवरी सोमवार से 12 फरवरी माघी पूर्णिमा दिन बुधवार तक की अवधि में एक महीने तक चलने वाले ‘कल्पवास’ में श्रद्धा और भक्ति से प्रभु संकीर्तन में समय बिताएंगे।

आजकल के ऐसे ठण्ड भरे मौसम में जब हर कोई घर से निकलते हुए भी कई बार सोचता है ऐसे में ये सभी आयु वर्ग के भक्त प्रतिदिन सुबह गोमती स्नान व पूजन के साथ अपनी दिनचर्या प्रारम्भ करते है और फिर राम नाम संकीर्तन के साथ पूरा दिन ऐसे ही बीत जाता है। इनमे से कई श्रद्धालु जहां भंडारे में भोजन पाते है वहीं कई अपना भोजन स्वयं ईंटों के चूल्हे पर लकड़ी की जंगल में उपलब्ध लकड़ी की मदद से बनाते है। ऐसी हांड कंपा देने वाली ठण्ड में ये कल्पवासी हरिनाम संकीर्तन करते हुए वैराग्य भाव से फूस पैरा से बने बिस्तरों पर ही रात को सोते है।

क्या है कल्पवास

कल्पवास’ के अर्थ के संदर्भ में विद्वानों के कई विचार सामने आते हैं। पौराणिक मान्यता है कि एक ‘कल्प’ कलि युग-सतयुग, द्वापर-त्रेतायुग चारों युगों की अवधि होती है और प्रयाग, गंगातट में नियमपूर्वक संपन्न एक कल्पवास का फल चारों युगों में किये तप, ध्यान, दान से अर्जित पुण्य फल के बराबर होता है। हालांकि तमाम समकालीन विद्वानों का मत है कि ‘कल्पवास’ का अर्थ ‘कायाशोधन’ होता है, जिसे कायाकल्प भी कहा जा सकता है।

संगम तट पर महीने भर स्नान-ध्यान और दान करने के उपरांत साधक का कायाशोधन या कायाकल्प हो जाता है, जो कल्पवास कहलाता है। अगर कुंभ के दौरान कल्पवास की परंपरा की बात की जाये, तो सबसे पहला उपलब्ध इतिहास चीनी यात्री ह्वेन-सांग के यात्रा विवरण में मिलता है। यह चीनी यात्री सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल में (617-647 ई.) के दौरान भारत आया था। सम्राट हर्षवर्धन ने ह्वेन-सांग को अपना अतिथि बनाया था। सम्राट हर्षवर्धन उन्हें अपने साथ तमाम धार्मिक अनुष्ठानों में ले जाया करते थे। ह्वेन-सांग ने लिखा है, ‘सम्राट हर्षवर्धन हर पांच साल बाद प्रयाग के त्रिवेणी तट पर एक बड़े धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेते थे जहां वो बीते सालों में अर्जित अपनी सारी संपत्ति विद्वानों-पुरोहितों, साधुओं, भिक्षकों, विधवाओं और असहाय लोगों को दान कर दिया करते थे।

28 वर्षों से समिति ने बखूबी संभाली है बागडोर

आदि गंगा गोमती तट रामनगरिया सेवा समिति द्वारा पिछले 27 वर्षों से लगातार पौराणिक कल्पवास की परंपरा के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में सराहनीय प्रयास किया जा रहा है। समिति अध्यक्ष राजेंद्र पाल सिंह, प्रबंधक अरविंद कुमार सिंह, सचिव रामबाबू द्विवेदी सहित समिति पदाधिकारियों व सहयोगियों द्वारा कल्पवास में प्रवास करने वाले श्रद्धालुओं को कुटी, जलपान व भोजन आदि की निःशुल्क सुविधा दी जाती हैं वहीं कल्पवास के दौरान राम कथा सहित विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम, भंडारा आयोजित होते रहते हैं।

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